सन्त पेत्रुस को हम सिमोन पेत्रुस, सन्त पीटर
तथा साईमन पीटर के नाम भी जानते हैं। सन्त पेत्रुस प्रभु येसु के 12 प्रेरितों में थे
तथा आरम्भिक कलीसिया के अग्रणी थे जिनके विषय में नये व्यवस्थान के चारों सुसमाचारों
एवं प्रेरित चरित ग्रन्थ में हम पढ़ते हैं।
प्रभु येसु के शिष्य पेत्रुस योहन
के पुत्र थे। गलीलिया के बेथसाईदा में उनका जन्म हुआ था। पेत्रुस के भाई अन्द्रेयुस भी
एक प्रेरित थे। मूल रूप से पेत्रुस मछुआ समुदाय के थे जिन्हें प्रभु येसु ने अपने अनुसरण
के लिये चुना था। बाद में पेत्रुस प्रभु येसु के प्रथम प्रेरित एवं काथलिक कलीसिया के
प्रथम परमाध्यक्ष बने। नवीन व्यवस्थान के अनुसार पेत्रुस प्रभु येसु ख्रीस्त के जीवन
की कई महत्वपूर्ण घटनाओं जैसे पर्वत पर येसु के रूपान्तरण और पानी पर येसु के चलने की
घटना के साक्षी बने थे। फिर, अन्तिम भोजन कक्ष में जब येसु ने अपने शिष्यों के पैर धोये
थे तब भी उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही थी। अपनी मानवीय कमज़ोरियों की वजह से दुखभोग की
रात को पेत्रुस ने येसु का मित्र और शिष्य होने से इनकार कर दिया था तथापि, पेत्रुस ही
थे जिन्होंने सबके समक्ष येसु को मसीह घोषित किया था। पेत्रुस या पीटर का अर्थ है चट्टान
और इसी चट्टान पर प्रभु येसु ने अपनी कलीसिया स्थापित की थी जिसके प्रथम परमाध्यक्ष सन्त
पेत्रुस ही थे।
प्रभु येसु के स्वर्गारोहण के बाद पेत्रुस ने आन्ताखिया में कलीसिया
की स्थापना की तथा सात वर्षों तक यहाँ के बिखरे विश्वासियों को एकता के सूत्र में बाँधते
रहे। उन्होंने पोन्तुस, गलातिया, कप्पादोसिया तथा एशिया माईनर में यहूदियों, इब्रानियों
एवं ग़ैरविश्वासियों में प्रभु ख्रीस्त के सुसमाचार का प्रचार किया। तदोपरान्त, वे रोम
के लिये निकल पड़े। रोम में, क्लाऊदियुस के शासन के दूसरे वर्ष में पेत्रुस ने साईमन
मागुस को अपदस्थ कर 25 वर्षों तक याजक का पद सम्भाला। सम्राट नीरो के शासन काल में जब
ख्रीस्तीयों का उत्पीड़न हुआ तब पेत्रुस को भी मार डाला गया। पेत्रुस को भी क्रूस पर
ठोंका गया था किन्तु प्रभु येसु के प्रति श्रद्धाभाव का प्रदर्शन कर उन्होंने अपने आततायियों
से कह दिया था कि वे उन्हें सीधे नहीं अपितु उलटे क्रूस पर ठोंक दें। सन्त पेत्रुस के
पवित्र अवशेष रोम स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के तलघर में सुरक्षित हैं। रोमी काथलिक
कलीसिया के प्रथम सन्त पापा होने के कारण सन्त पेत्रुस को रोम शहर का संरक्षक माना जाता
है। सन्त पेत्रुस का पर्व 29 जून को मनाया जाता है।
सन्त पौलुस
का पर्व भी सन्त पेत्रुस के साथ 29 जून को ही मनाया जाता है। पौलुस या पौल का जन्म
तुर्की के तारसुस में हुआ था। उनका नाम पौल न होकर सौल था। वे यहूदी माता पिता के सुपुत्र
थे जिनकी शिक्षा दीक्षा उस युग के प्रभावशाली फ़रीसी समुदाय के नियमों के अनुकूल हुई
थी। फ़रीसी समुदाय के होने के नाते सौल तथा उनके माता पिता को रोमी नागरिकता प्राप्त
थी। सौल के पिता पेशे से तम्बुओं के निर्माता और व्यापारी थे। सौल ने अपने जीवन काल में
प्रभु येसु ख्रीस्त से कभी मुलाकात नहीं की थी। जब उन्हें जैरूसालेम भेजा गया तब ख्रीस्त
के अनुयायियों की विरुद्ध चली अत्याचार की धारा में वे भी बह गये तथा ख्रीस्तीयों का
उत्पीड़न करने लगे।
एक बार ख्रीस्तीयों के एक दल को गिरफ्तार करने सौल जैरूसालेम
से दमिश्क जा रहे थे कि अचानक आँधी चली, बिजली चमकी तथा सौल अपने घोड़े से ज़मीन पर गिर
गये। उसी क्षण उनकी दृष्टि छिन गई तथा उन्हें कुछ भी नज़र नहीं आया। कड़कती बिजली के
बीच ही उन्हें एक आवाज़ सुनाई दी "सौल, सौल मुझे क्यों सता रहे हो?" मानों यह वाणी सुनकर
सौल का मनपरिवर्तन हो गया। ख्रीस्तीयों के उत्पीड़न के बजाय उन्होंने बपतिस्मा ग्रहण
किया तथा सौल से पौल बन गये।
इस घटना के बाद पौल ने कई मिशनरी यात्राएँ कीं तथा
सुसमाचार प्रचार हेतु अपना जीवन अर्पित कर दिया। इसी दौरान, जैरूसालेम की पाँचवी यात्रा
करते समय, पौल को गिरफ्तार कर लिया गया तथा कैसरिया में, दो वर्ष तक, क़ैद रखा गया। अपने
कारावासी जीवन के समय पौल ने अपनी रोमी नागरिकता का दावा किया जिसके बाद सन् 60 ई. में
उन्हें रोम प्रेषित कर दिया गया। जैरूसालेम से रोम की जलयात्रा के दौरान उनका पोत भंग
हो गया जिसके कारण पौल ने रोम के रास्तें में पड़नेवाले माल्टा द्वीप में पड़ाव किया
तथा रोम जाने तक वहीं पर सुसमाचार का प्रचार करते रहे।
रोमी सम्राट नीरो के शासनकाल
में सन् 63-64 ई. में पौल रोम पहुँचे। कुछ समय तक रोम में भी उन्होंने अपना प्रचार कार्य
जारी रखा किन्तु 64 ई. के अन्त में दुष्ट नीरो ने रोम को आग के हवाले कर दिया तथा इसका
आरोप ख्रीस्तीयों पर मढ़ दिया। रोम को नष्ट करने के आरोप में समस्त ख्रीस्तीयों को गिरफ्तार
कर मार डाला गया। पौल इन्हीं में से थे जिन्हें गिरफ्तार कर प्राण दण्ड दे दिया गया था।
इतिहासकारों के अनुसार, पौल का सिर उनके धड़ से अलग कर रोमी सैनिकों ने उन्हें मार डाला
था। ख्रीस्तीय धर्म के महान प्रेरित एवं शहीद सन्त पौलुस को भी रोम शहर का संरक्षक माना
जाता है। सन्त पेत्रुस के साथ साथ सन्त पौलुस का पर्व भी 29 जून को मनाया जाता है।
चिन्तनः कठिन क्षणों में ख्रीस्तीय विश्वास के तत्वों को अक्षुण रखने तथा प्रभु
ख्रीस्त के साक्षी बनने के लिये अनवरत प्रार्थना की नितान्त आवश्यकता है।