2012-05-31 16:16:19

परिवार और बच्चे समाज और बाजार के लिए सबसे मह्त्वपूर्ण निधि


मिलान इटली 31 मई 2012 एशिया न्यूज इटली के मिलान शहर के कन्वेंशन सेन्टर में 30 मई से आरम्भ हुए परिवारों के 7 वें विश्व सम्मेलन के तहत ईशशास्त्रीय मेषपालीय कांफ्रेंस के पहले दिन के सुबह के सत्र में आयोजित समारोह और नाच में विश्व के 150 देशों के लगभग 4 हजार लोगों ने भाग लिया। इसके बाद दो मुख्य वक्ताओं संस्कृति संबंधी परमधर्मपीठीय समिति के अध्यक्ष कार्डिनल ज्यांफ्रांको रवासी तथा मिलान बिकोका यूनिवर्सिटी में अर्थशाश्स्त्र के प्रोफेसर लुईजिनो ब्रुनी ने अपने विचार व्यक्त किये।

कार्डिनल रवासी ने अपने संबोधन में परिवार को ईश्वर की उपस्थिति में घर के रूप में प्रस्तुत किया जहाँ इंसान की विशिष्ट मर्यादा है तथा दुःख, कष्ट और तकलीफों, जीवन की क्षणभंगुरता सहित अंत में प्रकाशना ग्रंथ के वर्णित स्वर्णिम शहर की भव्य आशा भी है। सन 2009 के यूरोपीय वैल्यूज स्टडीज के अनुसार सब यूरोपीय नागरिकों के 84 फीसदी मानते हैं कि परिवार बुनियादी संस्था है। सर्वे किये गये 47 में से 46 देशों में काम, मित्रता, धर्म और राजनीति से भी पहले परिवार को सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक सच्चाई स्वीकार किया गया है। प्रोफेसर ब्रूनी ने पूंजीवादी तथा घोर व्यक्तिवादी सामाजिक और पारिवारिक मूल्यों के कारण हो रहे संघर्षों के समाधान के लिए पारिवारिक मूल्यों तथा ख्रीस्तीय मानववाद पर आधारित सामाजिक क्रांति की जरूरत पर बल दिया।

अपराहन काल के सत्र में बोलोन्या यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर पियेर पाउलो दोनाती ने परिवार, समाज की निधि पर किये गये अध्ययन के परिणाम को प्रस्तुत किया। यह अध्ययन विगत वर्ष इटली में किया गया था जिसमें 3500 लोगों ने अपने जवाब दिये थे। इस अध्ययन के निष्कर्ष को अन्य देशों के लिए भी लागू किया जा सकता है जिसमें दिखाया गया कि पारम्परिक परिवार जिसमें दो या दो से अधिक बच्चे एक स्त्री और एक पुरूष के निष्ठापूर्ण बंधन की छाया में रहते हैं बच्चों के व्यक्तित्व को स्थायित्व मिलता है, दूसरों की सहायता करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित करता है तथा काम में जिम्मेदारी लेने और रचनात्मकता से पूर्ण सक्षम व्यक्तित्व का निर्माण कर सामाजिक समन्वयन को बढावा देता है।

यह निष्कर्ष दिखाता है कि परिवार और बच्चों में निकटता का बंधन बनता है, बुजुर्गों की सहायता करना तथा शिक्षा, नैतिकता, सामाजिक समर्पण और सहृदयता जैसे मूल्यों को बढ़ावा देता है। इससे परिवारों को मान्यता देने और सहायता करने की माँग मजबूत होती है ताकि इसे न केवल निजी या आंतरिक मूल्यों के लिए लेकिन समाज के लिए भी मूल्यवान माना जाये। इस अध्ययन के परिणाम के अनुसार माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी और बच्चों के योगदान को मूल्य या महत्व नहीं दे पाने की अक्षमता के लिए राजनैतिक प्रशासनिक व्यवस्था को दोष दिया गया है जो परिवारों पर टैक्स बढाकर, उन्हें कम महत्व देकर तथा अन्य कारणों से दंडित करती है। अध्ययन के अनुसार कहा गया कि प्रशासनिक राजनैतिक पद्धति और बाजारवाद से समर्थन पाता घोर व्यक्तिवाद और उपभोक्तावाद, निजी स्वतंत्रता की प्रवृति से उत्पन्न संकट का सामना तथा सामाजिक सौहार्द को बनाये रखने का बोझ मजबूत परिवारों को वहन करना पड़ता है जो अल्पसंख्यक हैं। पारम्परिक परिवारों में गरीबी होने पर भी अधिक प्रसन्नता है।








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