2012-05-25 16:41:22

मरिया दर्शनों की सत्यता के निर्धारण के लिए वाटिकन द्वारा नियमों की प्रकाशना


वाटिकन सिटी 25 मई 2012 (ऊकान) माता मरिया का दर्शन पाने या होने की विश्वसनीयता का निर्धारण करने की प्रक्रिया संबंधी 1978 की नियमावली का वाटिकन द्वारा लैटिन भाषा से अन्य प्रमुख भाषाओं में अनुवाद और प्रकाशन किये जाने से धर्माध्यक्षों को मदद मिलेगी।
विश्वास और धर्मसिद्धांत संबंधी परमधर्मपीठीय समिति के अध्यक्ष कार्डिनल विलियम जे लेवादा के अनुसार यह उपयुक्त समय है कि इन नियमों को प्रमुख भाषाओं में अनुवाद कर प्रकाशित किये जायें। दिसम्बर 2011 को लिखी गयी अपनी टिप्पणी में कार्डिनल महोदय ने कहा कि इस अनुवाद से माता मरिया के दर्शन होने, प्रकाशनों, संदेशों और सामान्य तौर पर तथाकथित दिव्य प्रकृति के दावों का निर्धारण करने के कठिन काम में धर्माध्यक्षों को सहायता मिलेगी। उन्होंने कहा कि विगत तीन दशकों में नियमों का अनाधिकारिक रूप से किये गये अनुवाद दिखाई देते रहे हैं लेकिन इस संदर्भ में अब नये अनुवादित नियमों की जानकारी परमधर्मपीठीय समिति की वेबसाइट में उपलब्ध है।
संत पापा पौल षष्टम ने मरियम दर्शन होने या संदेश पाने के दावों की सत्यता की जाँच प्रक्रिया के लिए नियमों को 1978 में स्वीकृति प्रदान की थी। विश्व भर के धर्माध्यक्षों के लिए इसका वितरण किया गया था लेकिन इस नियमावली का आधिकारिक रूप से अनुवाद या प्रकाशन आधुनिक भाषाओं में नहीं किया गया था।
कार्डिनल लेवादा ने अपनी टिप्पणी में लिखा उनकी आशा है कि इन नियमों से ईशशास्त्रियों और कलीसिया के इस क्षेत्र के विशेषज्ञों को सहायता मिलेगी। विश्व भर में माता मरिया के दर्शन होने के 1500 से अधिक मामलों की रिपोर्टिंग हुई है लेकिन पिछली सदी में केवल 9 मामलों को विश्वास योग्य मानते हुए कलीसिया की स्वीकृति मिली। दर्शन की सत्यता का निर्धारण करने का दायित्व स्थानीय धर्माध्यक्ष को होता है तथा इस प्रक्रिया को मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए आस्था और धर्मसिद्धांत संबंधी परमधर्मपीठीय समिति ने नियमों का निर्धारण किया।
नियमों के अनुसार स्थानीय धर्माध्यक्ष मरियम दर्शन पाने या होने के दावों की सत्यता की जाँच करने के लिए विशेषज्ञों की समिति बनायेंगे जिसमें ईशशास्त्री, कलीसियाई कानून के विशेषज्ञ, मनोवैज्ञानिक और चिकित्सक होंगे जो मरियम दर्शन देखने या पानेवाले व्यक्ति की मानसिक नैतिक, आध्यात्मिक स्थिति एवं गंभीरता की जाँच करेंगे तथा विचार करेंगे कि संदेश या साक्ष्य ईशशास्त्रीय या धर्मसैद्धांतिक त्रुटियों से मुक्त हैं तथा दावों का निर्धारण करने के लिए धर्माध्यक्षों को सहायता मिलेगी।
एक धर्माध्यक्ष तीन निष्कर्षों पर पहुँच सकते हैं पहला- वे दर्शन के सच होने तथा विश्वास करने योग्य होने का निर्णय दे सकता है। दूसरा वे कह सकते हैं कि यह सच नहीं है और अपील करने के लिए संभावना का रास्ता मिल सकता है। तीसरा वे कह सकते हैं कि उस क्षण वे नहीं जानतें है तथा उन्हें और अधिक सहायता की जरूरत है।
अंतिम परिदृश्य में जाँच को राष्ट्रीय धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के सामने लाया जाता है। यदि यह सम्मेलन भी निष्कर्ष तक नहीं पहुँच सकता है तो यह मामला संत पापा के पास लाया जाता है जिसे वे धर्मसिद्धान्त संबंधी परमधर्मपीठीय समिति को दे सकते हैं ताकि वह सलाह दे या फिर जाँच के लिए किसी को नियुक्त करें।







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