2012-05-22 08:02:55

प्रेरक मोतीः सन्त रीता (1381-1457)
(22 मई)


वाटिकन सिटी, 22 मई सन् 2012:

रीता का जन्म, इटली के स्पोलेत्तो नगर में सन् 1381 ई. में हुआ था। बाल्यकाल से ही रीता मठवासी जीवन के प्रति आकर्षित रही थीं किन्तु माता पिता के आदेश के आगे उनकी एक नहीं चल पाई जिन्होंने उनके विवाह का बदोबस्त कर दिया था। विवाह के बाद रीता एक धर्मपरायण पत्नी एवं एक अच्छी माँ सिद्ध हुई किन्तु उनके पति बड़े क्रोधी स्वभाव के थे जो बात बात पर पत्नी को उत्पीड़ित किया करते थे तथा बच्चों को भी अपनी ही तरह बनाना चाहते थे।

उत्पीड़न के बीच रीता निष्ठापूर्वक अपने कर्त्तव्यों का निर्वाह करती रहीं। काम से समय निकाल कर वे प्रार्थना में लग जाया करती थीं तथा ख्रीस्तयागों में शामिल हुआ करती थीं। लगभग बीस वर्ष के वैवाहिक जीवन के बाद उनके पति को किसी ने छुरा भोंक दिया। मरने से पूर्व पति ने पश्चाताप किया क्योंकि रीता पति के लिये अनवरत प्रार्थना किया करती थीं। पति की मौत के कुछ ही समय बाद रीता के दोनों बेटों की भी मृत्यु हो गई तथा रीता अकेली हो गई। प्रार्थना, मनन चिन्तन, पश्चाताप एवं भले कर्मों में उन्होंने अपना मन लगा लिया तथा इटली के उमब्रिया प्रान्त के काश्या स्थित सन्त अगस्टीन धर्मसंघ में प्रवेश पा लिया।

धर्मबहनों के अधीन उन्होंने पूर्ण आज्ञाकारिता एवं उदारता का जीवन यापन आरम्भ कर दिया। प्रभु येसु के दुखभोग पर वे अक्सर चिन्तन किया करती थीं यहाँ तक कि एक दिन उन्होंने प्रभु येसु से प्रार्थना की कि वे उन्हें उन्हीं की तरह पीड़ा सहने का मौका दें। बताया जाता है कि इस प्रार्थना के तुरन्त बाद रीता के सिर में एक काँटा लग गया जो गहरे घाव में परिणित हो गया। अपने जीवन के अन्त तक रीता इस घाव के कहर को सहती रहीं तथा सन् 1457 ई. में, 22 मई को, घोर पीड़ा के बाद उनका निधन हो गया। सन्त रीता असम्भव कामों की संरक्षक सन्त हैं। उनकी मध्यस्थता से कई चमत्कार हुए हैं। इटली के काश्या में उनका तीर्थस्थल है जहाँ प्रति वर्ष लाखों तीर्थयात्री दर्शन को आते हैं।

चिन्तनः प्रार्थना एवं मनन चिन्तन द्वारा हम भी जीवन की कठिनाइयों को सहने का सम्बल प्राप्त करें तथा पीड़ाओं को प्रभु के प्रति अर्पित कर अपना जीवन साकार करें।








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