कोलोम्बो, 17 मई, 2012 (एशियान्यूज़) श्रीलंका की सरकार की थलसेना जलसेना, वायुसेना और
पुलिस परिवार में जन्म लेने वाले तीसरे बच्चे को दस लाख रुपये देने की घोषणा का लोगों
ने विरोध किया है। अंगलिकन पुरोहित और मानवाधिकार कार्यकर्ता फादर मरिमुत्तु सातीवेल
के अनुसार सरकार का ऐसा प्रस्ताव भेदभावपूर्ण है। बौद्धधर्मी कार्यकर्ता प्रियदर्शिनी
अरियाराथना ने एक आम जनता के हित मे एक कार्ययोजना बनायी है और सरकार की वर्त्तमान योजना
का विरोध किया और कहा कि तीसरे बच्चे के लिये अनुवृत्ति देने के प्रस्ताव का विस्तार
पूरे देशवासियों के लिये कर देने चाहिये। विदित हो कि राष्ट्रपति महिन्द्रा राजपक्षा
ने सन् 2010 के बजट प्रस्ताव में देश के तीनों सेनाओं के लिये और सन् 2011 के बजट में
पुलिस अधिकारियों के परिवारों में पैदा होनेवाले तीसरे बच्चे के लिये मदद राशि का प्रस्ताव
रखा है। लोगों का मानना है कि सरकार की नीति में विरोधाभास है। हाल के वर्षों में
सरकार ने परिवार नियोजन का प्रचार-प्रसार जोर-शोर से किया था और दो बच्चों की वक़ालत
की थी। इतना ही उन्होंने इस बात का भी प्रयास किया था कि गर्भपात को कानूनी मान्यता
प्राप्त हो। और अब देश के सैन्य अधिकारियों को तीसरे बच्चे का प्रोत्साहन दे रही है।
काथलिक कलीसिया ने परिवार संबंधी नीतियों का आरंभ से ही विरोध किया है। उनका कहना
है कि सरकार पारिवारिक मूल्यों को पर बढ़ावा देने के बदले अन्य भेदभावपूर्ण बातों पर
अपना ध्यान केन्द्रित कर रही है। चर्च का मानना है कि ऐसा होने से देश "सामुदायिक
संकट में उलझ जायेगॉ क्यों कि मिलिटरी में 98 प्रतिशत सिंहली और बौद्धधर्मी है। ऐसा होने
से देश की जनसंख्या एक जाति और धर्म की बनकर रह जायेगी। ग़ौरतलब है कि श्रीलंका में
सिंहलीस की संख्या 74 प्रतिशत स्थानीय तमिल 12.6 प्रतिशत भारतीय तमिल 5.1 मुस्लिम 7.4
और बरगेरस 0.2 प्रतिशत है। धर्म के अनुसार विभाजन करने से 70 प्रतिशत लोग बौद्ध धर्मी
15 प्रतिशत हिन्दु तथा इस्लाम और ईसाई 7.5 प्रतिशत हैं। ईसाइयों में 88 प्रतिशत लोग
काथलिक हैं।