रोम, 17 मई, 2012 (ज़ेनित) अन्तरधार्मिक वार्ता के लिये स्थापित ‘जोन पौल द्वितीय इंटररेलिजियस
डायलॉग सेन्टर’ ने ‘रसेल बेरिये फाउन्डेशन’ के सहयोग से ‘पोंतिफिकल अन्जेलिकुम युनिवर्सिटी
रोम’ में ख्रीस्तीय यहूदी संबंध पर 16 मई बुधवार को एक सेमिनार का आयोजन किया। सेमिनार
की विषयवस्तु थी ‘बिल्डिंग ऑन नोस्तरा आयेताते:फिफ्टी इयरस ऑफ क्रिश्चियन जूस डायलॉग’
(नोस्तरा आयेताते:ईसाई-यहूदी वार्ता के 50 वर्ष)। ख्रीस्तीय एकता को बढ़ावा देने के
लिये बनी परमधर्मपीठीय समिति के अध्यक्ष कार्डिनल कुर्त्त कोच ने वाटिकन दस्तावेज़ ‘नोस्तरा
आयेताते’ (हमारे युग में) के 50 वर्ष पूरे होने के अवसर पर बोलते हुए कहा कि नोस्तरा
आयेताते आज भी रोमन कैथोलिक कलीसिया और यहूदी धर्म की वार्ता की नींव या ‘मगना कार्ता’
है।
विदित हो कि नोस्तरा आयेताते द्वितीय विश्व युद्ध के बाद प्रकाशित किया गया
था।
उन्होंने बताया कि राष्ट्रीय समाजवादियों द्वारा यूरोप के यहूदियों को समाप्त
करने की योजना बनाना और उसे बारीकी से पूरा करने के बाद ख्रीस्तीय बहुल पश्चिम में
एक गंभीर आत्मविश्लेषण की ज़रूरत महसूस की गयी। दस्तावेज़ ‘नोस्तरा आयेताते’ ‘होलोकोस्ट’
की घटना से उबरने का एक ठोस कदम था।
कार्डिनल कूर्त्त ने बतलाया कि ‘नोस्तरा
आयेताते’ में यहूदियों के मूलभूत सिद्धांतों का सम्मान किया गया है और इसीलिये वर्षों
तक एक-दूसरे के विरोधी रहे दोनों समुदाय धीरे-धीरे विश्ववसनीय और अच्छे मित्र बन गये
हैं और संकटों का सकारात्मक समाधान खोजने का प्रयास कर रहे हैं।
कार्डिनल ने
प्रतिनिधियों से कहा कि वे उन सभी योगदानों का स्वागत करते है जो ईसाई-यहूदी वार्ता के
विस्तार में मदद दे ताकि ईसाई और यहूदी एक साथ मिलकर ईश्वर की प्रजा के समान शांति और
मेल-मिलाप का साक्ष्य दें जो कि पूरी मानवता के लिये एक वरदान सिद्ध हो।