2012-05-10 17:35:18

विद्यार्थियों द्वारा जातिवाद आधारित पूर्वाग्रहों को अंत करने का संकल्प


बंगलोर 10 मई 2012 (ऊकान) बंगलोर में इस सप्ताह सम्पन्न एक सम्मेलन के दौरान प्रोटेस्टंट और आर्थोडोक्स ईशशास्त्र विद्यार्थियों ने कलीसिया और समाज से जातिवाद और जातिगत पूर्वाग्रहों के खिलाफ काम करने का संकल्प लिया है। सम्मेलन के अंत में लगभग 125 प्रतिभागियों द्वारा जारी अंतिम संदेश में कहा गया कि ईशशास्त्रीय प्रशिक्षण चर्च में काम पाने के लिए डिग्री मात्र नहीं है। यह गरीबों और शोषितों के प्रति सहानुभूतिपूर्ण जीवन जीने के लिए मन परिवर्तन का समय है। विद्यार्थियों ने भारत में चर्चों से माँग की कि वे समानता और न्याय पाने के लिए दलितों के संघर्ष के प्रति सह्दयता दिखायें। भारत में 70 फीसदी ईसाई दलित हैं। यद्यपि जातिवाद या जाति आधारित भेदभावों को 1950 में ही गैरकानूनी घोषित किया गया लेकिन बड़े स्तर पर दलितों को अशिक्षा, गरीबी और अन्याय का सामना करना पड़ता है।
वक्तव्य में कहा गया कि हम परिवर्तन के संभावित एजेंट हैं और हम जन आन्दोलनों के साथ संयुक्त होना चाहते हैं ताकि समाज में व्याप्त शोषण और प्रभुत्व के खिलाफ संघर्ष कर सकें। विद्यार्थियों ने राजनैतिक संघर्षों में शामिल होने तथा विभिन्न धर्मों के लोगों के साथ काम करने का संकल्प व्यक्त किया ताकि शोषणमुक्त, स्वतंत्र और न्यायी समाज की रचना की जा सके।
इस सम्मेलन में पूरे भारत से 37 ईशशास्त्रीय संस्थानों के प्रतिभागी शामिल हुए जिसका आयोजन Board of Theological Education of the Senate of Serampore (BTESS) College. द्वारा किया गया था। इसके अध्यक्ष मार थोमा चर्च के धर्माध्यक्ष इसाक मार फिलोकसेनोस ने सम्मेलन का उदघाटन करते हुए सामाजिक न्याय तथा शांति के लिए संघर्ष को ख्रीस्त के प्रति आज्ञाकारिता कहा। उन्होंने कहा कि जहाँ जीवन से इंकार किया जाता है वहाँ ईश्वर को, न्याय और शांति को इंकार किया जाता है। सेरामपुर विश्वविद्यालय की सीनेट एकमात्र ईसाई विश्वविद्यालय है जिसे भारत सरकार और दक्षिण एशिया में प्रोटेस्टं चर्चों द्वारा मान्यता प्राप्त है। इस विश्वविद्यालय के साथ 52 ईशशास्त्रीय संस्थानों की सम्बद्धता है जहाँ प्रतिवर्ष लगबग 8 हजार विद्यार्थी स्नातक स्तर का अध्ययन सम्पन्न करते हैं।








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