2012-04-16 08:42:53

वाटिकन सिटीः स्वर्ग की रानी आनन्द मना प्रार्थना से पूर्व दिया गया सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें का सन्देश


वाटिकन सिटी, 16 अप्रैल सन् 2012 (सेदोक): वाटिकन स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में, देश विदेश से एकत्र तीर्थयात्रियों को, रविवार 15 अप्रैल को, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने इस प्रकार सम्बोधित कियाः

"अति प्रिय भाइयो एवं बहनो,
प्रति वर्ष पास्का मनाते समय हम येसु के आरम्भिक शिष्यों का अनुभव पाते हैं, पुनर्जीवित प्रभु के साक्षात्कार का अनुभवः सन्त योहन रचित सुसमाचार बताते हैं कि उन्होंने, पुनःरुत्थान की सन्ध्या, अन्तिम भोजन कक्ष में उनके दर्शन किये, सप्ताह के प्रथम दिन, और फिर "आठ दिन बाद" (दे. योहन 20,19:26)। वह दिन जो बाद में "प्रभु का दिन" कहा गया, सहमिलन का दिन है, ख्रीस्तीय समुदाय के सहमिलन का दिन जो भक्तिभाव के साथ "यूखारिस्त" में सबको एकता के सूत्र में बाँधता है, इसी दिन से नई तथा प्राचीन व्यवस्थान के विश्राम दिवस से अलग भक्ति आरम्भ हो जाती है। वास्तव में, प्रभु के दिन का समारोह ख्रीस्त के पुनःरुत्थान का एक शक्तिशाली प्रमाण है क्योंकि केवल एक असाधारण एवं अद्वितीय घटना ही आरम्भिक ख्रीस्तीयों को यहूदियों के विश्राम दिवस की आराधना-अर्चना से भिन्न भक्ति के लिये प्रेरित कर सकती थी।

सन्त पापा ने कहाः "अस्तु, प्रचलित ख्रीस्तीयों के धर्मविधिक समारोह अतीत की घटनाओं की स्मृति में मनाये जानेवाले समारोह ही नहीं हैं, ये कोई रहस्यात्मक या आन्तरिक अनुभव मात्र नहीं हैं अपितु तत्त्वतः, पुनर्जीवित प्रभु ख्रीस्त के साथ साक्षात्कार है, जिसका ईश्वरीय पहलू समय एवं इतिहास के अन्तराल के परे है, क्योंकि, प्रभु, समुदाय के बीच सचमुच में उपस्थित रहते, धर्मग्रन्थ के माध्यम से हमसे बातचीत करते तथा हमारे लिये अनन्त जीवन की रोटी को तोड़ते हैं। इन चिन्हों के द्वारा हम आरम्भिक शिष्यों के अनुभव का एहसास पाते हैं अर्थात् येसु को देखते हुए भी हम उन्हें पहचान नहीं पाते हैं; उनके शरीर का स्पर्श करते, धरती के बन्धन से मुक्त, यथार्थ शरीर का।"

उन्होंने कहा, "सन्त योहन रचित सुसमाचार जो हमें बताते हैं वह एक बहुत ही महत्वपूर्ण तथ्य है और वह यह कि अन्तिम भोजन कक्ष में अपने दो दर्शनों के अवसर पर प्रभु येसु ने कई बार वही वाक्य दुहरायाः "तुम्हें शांति मिले" (दे.योहन 20,19: 21.26)। शालोम यानि शांति की मंगलकामना करनेवाले पारम्परिक प्रणाम ने, अब एक नया अर्थ ले लिया थाः वह अब शांति का वह वरदान बन गया था जो केवल ख्रीस्त दे सकते हैं क्योंकि वह, बुराई पर, उनकी विजय का फल है। जो "शांति" प्रभु येसु अपने मित्रों को अर्पित करते हैं वह ईश प्रेम का फल है जिसके कारण येसु ने क्रूस पर अपने प्राणों की आहुति दे दी थी, जिसके कारण "कृपा एवं सत्य से परिपूर्ण" प्रभु ने विनम्र और दीन मेमने के सदृश अपना रक्त बहा दिया था (योहन 1,14)। यही कारण है कि धन्य सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने पास्का रविवार के बाद आनेवाले रविवार को ईश्वरीय करुणा को समर्पित रखना चाहा, उस प्रतिमा के साथ, जिसमें हम, प्रेरित योहन के साक्ष्य के अनुसार, प्रभु की बगल से रक्त और पानी को बहता देखते हैं (दे. योहन 19,34-37)। परन्तु अब तक येसु जी उठ चुके हैं, और उन जीवित प्रभु से बपतिस्मा एवं यूखारिस्तीय पास्काई संस्कार प्रस्फुटित होते हैं: जो भी विश्वासपूर्वक उन्हें पुकारता है वह अनन्त जीवन प्राप्त करता है।

अन्त में सन्त पापा ने कहा, "प्रिय भाइयो एवं बहनो, पुनर्जीवित प्रभु येसु द्वारा अर्पित शांति के वरदान को हम ग्रहण करें, उनकी करुणा से हम अपने हृदयों को भरने दें। इस प्रकार, ख्रीस्त को मृतकों में से जिलाने वाले पवित्रआत्मा की शक्ति से हम भी पास्काई वरदानों को अन्यों तक ले जा सकें। पवित्रतम कुँवारी मरियम की मध्यस्तथा से हम अपने इस कार्य में सफल होवें।"

इतना कहकर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने सबके प्रति मंगलकामनाएँ अर्पित कीं तथा सभी पर ईश्वर की कृपा एवं शांति का आह्वान कर, सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

तदोपरान्त सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने देश विदेश से आये तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया, अँग्रेज़ी भाषा में उन्होंने कहा, "आज के सुसमाचार में, येसु शिष्यों को दिखाई देते हैं तथा थॉमस की शंकाओं को दूर करते हैं। उनकी दैवीय करुणा द्वारा, हम सदैव विश्वास करें कि येसु ही ख्रीस्त हैं, तथा विश्वास करने के कारण हम उनके नाम में जीवन प्राप्त करें। प्रभु ईश्वर की विपुल आशीष आप सबपर बनी रहे।"








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