2012-04-13 13:17:07

शिक्षा के अधिकार कानून की वैधता बरक़रार


नई दिल्ली, 13 अप्रैल, 2012 (कैथन्यूज़, देशबन्धु) सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को एक महत्वपूर्ण फैसले में शिक्षा का अधिकार (आरटीई) कानून की संवैधानिक वैधता बरकरार रखते हुए सरकारी स्कूलों एवं गैर सहायता प्राप्त निजी स्कूलों में 25 प्रतिशत सीटें गरीब बच्चों के लिए आरक्षित रखने की सरकार की पहल पर मुहर लगा दी।

न्यायालय के इस फैसले से अब छह से 14 साल के बच्चों को अनिवार्य एवं मुफ्त शिक्षा उपलब्ध हो सकेगी।

न्यायालय के इस फैसले का केंद्र सरकार और बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने स्वागत किया है। केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा कि इस ऐतिहासिक फैसले ने सरकार का मनोबल मजबूत किया है।

वहीं, गैर-सहायता प्राप्त निजी स्कूलों ने न्यायालय के इस फैसले पर निराशा जताई है।
न्यायालय ने अपने फैसले में हालांकि, स्पष्ट किया है कि यह प्रावधान गैर सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक संस्थानों पर लागू नहीं होगा।

सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस. एच. कपाड़िया, न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार और न्यायमूर्ति के. एस. राधाकृष्णन की पीठ ने बहुमत से शिक्षा के अधिकार कानून की धारा 12 1सी की संवैधानिक वैधता को बरकरार रखा, जिसमें गरीब और कमजोर तबके के बच्चों के लिए 25 फीसदी सीटें आरक्षित करने का प्रावधान है।

न्यायालय ने इस प्रावधान के विरोध में सोसायटी फॉर अनएडेड प्राइवेट स्कूल्स, इंडिपेंडेंट स्कूल फेडरेशन ऑफ इंडिया और अन्य की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया।

न्यायालय ने कहा कि यह फैसला गुरुवार से स्वत: प्रभावी हो जाएगा, लेकिन अब तक हो चुके दाखिले इससे प्रभावित नहीं होंगे।

न्यायालय के फैसले का स्वागत करते हुए केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री कपिल सिब्बल ने कहा, "मैं बहुत खुश हूं कि न्यायालय ने सभी विवादों को खारिज कर दिया। सबसे बड़ा विवाद यह था कि सामाजिक एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों के लिए 25 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने का फैसला निजी स्कूलों पर लागू हो या नहीं? न्यायालय ने इसे स्पष्ट कर दिया है। न्यायालय के फैसले से सरकार का मनोबल मजबूत हुआ है।"

उन्होंने कहा, "मैं सर्वोच्च न्यायालय को इस फैसले के लिए धन्यवाद देता हूं। अधिनियम के तहत प्रावधान बच्चों पर केंद्रित होना चाहिए, न कि संस्थानों पर। बड़े स्कूल निश्चित रूप से यह भार वहन कर सकते हैं।"

एनसीपीसीआर की अध्यक्ष शांता सिन्हा ने भी कहा कि इससे समाज में असमानता की खाई पाटने में मदद मिलेगी। सिन्हा ने कहा, "यह ऐतिहासिक फैसला है। मैं समझती हूँ कि यह सभी बच्चों के लिए अच्छा है। यह गरीबों के लिए इस मायने में अच्छा है कि इससे उनके तथा अन्य छात्रों के बीच असमानता की खाई पाटने में मदद मिलेगी। साथ ही सांस्कृतिक मूल्यों का आदान-प्रदान होगा और स्कूल में समानता एवं न्याय के संवैधानिक मूल्यों को मजबूती मिलेगी।"

उन्होंने कहा, "यह आर्थिक रूप से सम्पन्न छात्रों के लिए भी अच्छा है, क्योंकि इस प्रावधान से वे अन्य छात्रों के जीवन तथा सांस्कृतिक विविधता के बारे में जान सकेंगे।"














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