रोमः ईश्वर की इच्छा पूरी करना ही यथार्थ स्वतंत्रता है, बेनेडिक्ट 16 वें
रोम, 06 अप्रैल सन् 2012 (सेदोक): ईश्वर की इच्छा के अनुकूल जीवन यापन में यथार्थ स्वतंत्रता
निहित है।
रोम के सन्त जॉन लातेरान महागिरजाघर में, गुरुवार 05 अप्रैल की सन्ध्या,
प्रभु येसु मसीह के अन्तिम भोज की स्मृति में, सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने ख्रीस्तयाग
अर्पित किया तथा इस दौरान, येसु का अनुसरण करते हुए, 12 पुरोहितों के पैर धोये।
ख्रीस्तयाग
प्रवचन में सन्त पापा ने कहा कि मनुष्य तब ही यथार्थ स्वतंत्रता का आनन्द उठाता है जब
वह अपनी इच्छा नहीं बल्कि ईश्वर की इच्छा पूरी करता है। उन्होंने कहा कि ईश्वर का बहिष्कार
करने से मनुष्य कभी भी स्वतंत्र नहीं हो सकेगा अपितु जब वह ईश्वर के नियमों के अनुकूल
जीवन यापन करेगा तब ही मन की शांति प्राप्त कर सकेगा तथा सुखपूर्वक जीवन यापन कर पायेगा।
रविवार, आठ अप्रैल, को ख्रीस्तीय धर्मानुयायी प्रभु येसु मसीह के पुनःरुत्थान
का पास्का मना रहे हैं। इससे पूर्व पड़नेवाले सप्ताह को पुण्य सप्ताह कहा जाता है। पुण्य
गुरुवार को काथलिक कलीसिया, शिष्यों के साथ प्रभु येसु मसीह के अन्तिम भोजन का स्मृति
समारोह मनाती है। गुरुवार सन्ध्या की धर्मविधि तथा ख्रीस्तयाग समारोह से ही पास्कात्रय
आरम्भ होता है जो पास्का अर्थात् ईस्टर महापर्व पर अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचता है।
अपने
प्रवचन में सन्त पापा ने स्मरण दिलाया कि पुण्य गुरुवार, "पवित्र यूखारिस्त की स्थापना
के साथ साथ उस काली रात का भी स्मारक है जब येसु अपने शिष्यों के संग जैतून की पहाड़ी
पर गये थे। उस रात का स्मारक जब प्रार्थना में लीन येसु ने मृत्यु के अन्धकार का साक्षात्कार
किया था तथा स्वतः को अकेला पाया था; जब यूदस ने विश्वासघात कर उन्हें गिरफ्तार करवा
दिया था; जब पेत्रुस ने उन्हें पहचानने से इनकार कर दिया था; जब उन्हें महासभा के याजकों
के समक्ष प्रस्तुत होना पड़ा था तथा पिलातुस के हाथों सौंप दिया गया था।"
सन्त
पापा ने कहा, "येसु रात भर प्रार्थना करते रहे। रात का अर्थ है संचार का अभाव, ऐसी स्थिति
जहाँ लोग एक दूसरे को देख नहीं सकते। रात, सच्चाई को छिपाने वाली दुर्बोधता का प्रतीक
है। ऐसी जगह जहाँ बुराई व्याप्त रहती तथा प्रकाश से छिपकर विकसित हो सकती है। येसु स्वतः
ज्योति एवं सत्य हैं, वे ही संचार हैं, वे स्वयं पवित्रता, शुद्धता एवं भलाई हैं। वे
रात के अन्धकार में प्रवेश करते हैं। रात, अन्ततः, मृत्यु का प्रतीक है, मृत्यु जो भ्रातृत्व
एवं जीवन की सुनिश्चित्त क्षति है। येसु इसी रात में प्रवेश करते हैं ताकि इसपर विजयी
हो सकें तथा मानवजाति के इतिहास में ईश्वर के नवदिवस का उदघाटन कर सकें।"
सन्त
पापा ने सब से आग्रह किया कि वे उस प्रार्थना पर अपना ध्यान केन्द्रित करें जो उस रात
जैतून की पहाड़ी पर प्रभु येसु मसीह ने पिता ईश्वर से की थी, "'अब्बा! पिता! तेरे लिए
सब कुछ सम्भव है। यह प्याला मुझ से हटा ले। फिर भी मेरी नहीं, बल्कि तेरी ही इच्छा पूरी
हो।''
सन्त पापा ने कहा येसु ने अपनी प्रार्थना द्वारा आदम के पाप को रूपान्तरित
कर दिया तथा मानवजाति को चंगाई प्रदान की। आदम ने वह नहीं करना चाहा जिसकी आज्ञा ईश्वर
ने उसे दी थी उसने अपने मन की इच्छा को पूरा करना चाहा, ख़ुद ईश्वर बनना चाहा और अपने
घमण्ड के कारण स्वर्ग को खो दिया। अस्तु, सन्त पापा ने कहा, "घमण्ड ही पाप का कारण है।
हम सोचते हैं कि जब हम अपनी इच्छा को पूरा करते हैं तब हम वास्तव में स्वतंत्र होते हैं।
हमें लगता है कि ईश्वर हमारी स्वतंत्रता के विरुद्ध हैं। यही वह मूलभूत विरोध जो इतिहास
के अन्तराल में सदैव विद्यमान रहा है, वह मूलभूत झूठ जो जीवन को भ्रष्ट करता है।"
सन्त
पापा ने कहा, "जब मानव प्राणी ख़ुद को ईश्वर के विरुद्ध खड़ा कर देता है तब वास्तव में
वह अपने अस्तित्व के सत्य के विरुद्ध खड़ा हो जाता है जिसके परिणामस्वरूप वह स्वतंत्र
नहीं होता बल्कि ख़ुद अपने आप से दूर हो जाता है। वास्तव में, हम तब स्वतंत्र होते हैं
जब हम अपने अस्तित्व के सत्य को तथा ईश्वर के सत्य को पहचानते तथा उसके अनुकूल जीवन यापन
करते हैं।"
रोम के सन्त जॉन लातेरान महागिरजाघर में गुरुवार सन्ध्या एकत्र
चन्दा सिरिया के शरणार्थियों की लोकोपकारी सहायता हेतु प्रेषित किया जायेगा।