वाटिकन सिटी 03 अप्रैल सन् 2012 रिचर्ड का जन्म इंगलैण्ड के वाईख़ नगर में हुआ था।
बचपन में ही माता पिता का देहान्त हो जाने के कारण रिचर्ड को एक कुलीन परिवार ने गोद
ले लिया था। अपने दत्तक पिता से मिली सम्पत्ति रिचर्ड ने निर्धनों में बाँट दी तथा लोगों
के उत्थान के लिये कई कल्याणकारी योजनाएँ बनाई। उन्होंने पेरिस और बाद में ऑक्सफर्ड में
उच्च शिक्षा प्राप्त की जिसके बाद पौरोहित्य जीवन का चयन किया। इटली के बोलोन्या शहर
में उन्होंने कलीसियाई विधान का अध्ययन कर यहाँ से डॉक्टरेड की उपाधि प्राप्त की।
सात
साल बोलोन्या में रहने के बाद वे पुनः ऑक्सपर्ड लौटे जहाँ पर उन्हें सन् 1235 ई. में
विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त कर दिया गया। सन् 1243 ई. में आप पुरोहित अभिषिक्त हुए।
इंग्लैण्ड के सम्राट हेनरी अष्टम के शासन काल में रिचर्ड चाईचेस्टर के धर्माध्यक्ष थे।
थोड़े ही दिनों में अपनी कर्मठ एवं समर्पित प्रेरिताई तथा महान उदारता के लिये वे विख्यात
हो गये थे। व्याख्यान एवं भाषण कला के धनी, रिचर्ड, एक महान उपदेशक भी थे जो सत्य के
प्रचार को अपना धर्म मानते थे। उन्होंने तत्कालीन इंग्लैण्ड में व्याप्त भाई भतीजावाद
की कड़ी निन्दा की थी तथा पुरोहितों के लिये कठोर अनुशासन का प्रस्ताव किया था। ज़रूरतमन्दों
की मदद को वे सदैव तत्पर रहा करते थे।
इंग्लैण्ड के डोवर नगर स्थित वृद्ध पुरोहितों
के एक आश्रम में सन् 1253 ई. को रिचर्ड वाईख़ का निधन हो गया था। सन् 1262 ई. में रिचर्ड
को सन्त घोषित किया गया था। उनका पर्व तीन अप्रैल को मनाया जाता है।
चिन्तनः
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एवं पड़ोसी के प्रति हमारा प्रेम दिन ब दिन विकसित होता रहे।