हवानाः मेक्सिको और क्यूबा की यात्रा कर सन्त पापा ने रोम लौटे, कलीसिया के लिये और अधिक
स्वतंत्रता की मांग
हवाना, 29 मार्च सन् 2012 (सेदोक): काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरु सन्त पापा बेनेडिक्ट
16 वें, मेक्सिको तथा क्यूबा में अपनी छः दिवसीय प्रेरितिक यात्रा समाप्त कर गुरुवार,
29 मार्च को पुनः रोम लौट आये हैं। इन दोनों ही देशों में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें
की यह पहली तथा इटली से बाहर 23 वीं विदेश यात्रा थी। करीबियाई देश क्यूबा की, अपनी
तीन दिवसीय प्रेरितिक यात्रा के अन्तिम दिन, बुधवार को सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने,
साम्यवादी पार्टी द्वारा प्रशासित क्यूबा में, काथलिक कलीसिया के लिये और अधिक स्वतंत्रता
की मांग की। क्यूबा में अमरीका द्वारा लगाये गये 50 वर्षीय आर्थिक प्रतिबन्धों के अन्त
का भी उन्होंने आह्वान किया। बुधवार को ही सन्त पापा ने राजधानी हवाना स्थित विख्यात
क्राँति चौक में ख्रीस्तयाग अर्पित किया जिसमें तीन लाख श्रद्धालु उपस्थित हुए। क्यूबा
से विदा लेने के पूर्व उन्होंने पूर्व राष्ट्रपति फीदेल कास्त्रो से भी मुलाकात की। सत्य
और पुनर्मिलन के चयन का अनुरोध करते हुए सन्त पापा ने कहा, "क्यूबा तथा विश्व में परिवर्तन
की आवश्यकता है किन्तु यह तब ही हो सकता है जब दोनों पक्ष सत्य और प्रेम की खोज हेतु
तैयार होकर पुनर्मिलन एवं भ्रातृत्व के बीज बोयेँ।" सन्त पापा के इस अनुरोध ने 14 वर्षों
पूर्व स्व. सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय द्वारा की गई अपील की याद दिला दी जिन्होंने क्यूबा
में अपनी प्रेरितिक यात्रा के दौरान कहा था, "क्यूबा को विश्व के प्रति उदार होना चाहिये
और विश्व क्यूबा के प्रति उदार हो।" हवाना के क्रान्ति चौक में क्रान्तिकारी अभिनायक
एरनेस्तो चेगेवारा की विशाल तस्वीर के आगे निर्मित वेदी से, पहली पंक्ति में बैठे राष्ट्रपति
राऊल कास्त्रो तथा क्यूबा के वरिष्ठ प्रशासनाधिकारियों की उपस्थिति में, सन्त पापा ने
कहा कि सभी लोग "यथार्थ स्वतंत्रता" की कामना करते हैं जिसके बिना उस सत्य की प्राप्ति
नहीं हो सकती जिसका प्रचार ख्रीस्तीय धर्म करता है। उन लोगों को भी सन्त पापा ने फटकार
बताई जो सत्य की मिथ्या व्याख्या करते तथा अपने आप के कथित सत्य को अन्यों पर थोपने का
प्रयास करते हैं। सम्पूर्ण क्रान्ति चौक में श्रद्धालु छोटे बड़े बैनर लिये खड़े थे तथा
"वीवा क्यूबा, वीवा एल पापा" के नारे लगा रहे थे। अपने परिवार के साथ ख्रीस्तयाग समारोह
में शरीक पर्यटन कार्यकर्त्ता कारलोस हेरेर्रा ने कहा, "हम सन्त पापा के शब्दों को सुनने
आये हैं, क्यूबा के लिये उनके विवेकपूर्ण शब्दों को सुनने। ये शब्द हमारी मदद करते हैं,
हमें शांति प्रदान करते हैं, एकता के लिये प्रोत्साहन देते हैं।" ख्रीस्तयाग के अवसर
पर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने भले ही क्यूबा की सरकार की प्रत्यक्ष आलोचना नहीं की
तथापि उनके द्वारा उच्चरित शब्दों ने क्यूबा में व्याप्त वास्तविकता की ओर विश्व का ध्यान
आकर्षित कराया। सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें के पूर्व छात्र एवं शिष्य काथलिक पुरोहित
फादर जोसफ फेस्सियो ने कहा कि सन्त पापा सत्य एवं स्वतंत्रता पर बल दे रहे थे जिसकी
क्यूबा को सख़्त ज़रूरत है। करीबियाई देश क्यूबा में काथलिक कलीसिया की भूमिका को
मज़बूत करना तथा पचास वर्षों से साम्यवादी शासन के अधीन रहने वाले काथलिक धर्मानुयायियों
के विश्वास को सुदृढ़ करना सन्त पापा की क्यूबा यात्रा का प्रमुख उद्देश्य था। अपने प्रवचन
में इसीलिये उन्होंने प्रशासनाधिकारियों से निवेदन किया कि वे कलीसिया को और अधिक उदारता
एवं स्वतंत्रता के साथ अपने सन्देश का प्रसार करने दें ताकि कलीसिया स्कूलों, महाविद्यालयों
एवं विश्वविद्यालयों में युवाओं को नैतिक मूल्यों पर आधारित शिक्षा प्रदान कर सके। ग़ौरतलब
है कि सन् 1959 ई. में फीदेल कास्त्रो के सत्ता में आ जाने के बाद से क्यूबा में स्कूलों
में धर्मशिक्षा या नीति शास्त्र का अध्ययन रद्द कर दिया गया था। इस दिशा में नब्बे के
दशक के बाद से हुए प्रयासों के लिये सन्त पापा ने क्यूबा सरकार की सराहना की किन्तु कहा
कि न्याय, समानता एवं शांति पर आधारित समाज के निर्माण के लिये अभी बहुत कुछ करना बाकी
है।