लेओन में आयोजित यूखरिस्तीय समारोह में संत पापा का प्रवचन
मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, मुझे खुशी है कि मैं आज आप लोगों के बीच हूँ। मैं आप
लोगों का ध्यान आज के भजन स्तोत्र की ओर खींचना चाहता हूँ जिसमें हमने कहा, "हे ईश्वर
मेरे ह्रदय को पवित्र बना।" यह हमें आमंत्रित करता है हम पास्का रहस्य अर्थात् येसु के
दुःखभोग,मृत्यु और पुनरुत्थान को समझने के लिये अपने को तैयार करें। स्तोत्र भजन
हमें इस बात के लिये भी आमंत्रित करता है कि हम अपने ह्रदय में झाँक कर देखें विशेष करके
ऐसे समय में जब मेक्सिको और पूरे लैटिन अमेरिका में दुःख किन्तु आशा का माहौल है। ईश्वर
की चुनी हुई इस्राएली प्रजा में भी पवित्र, ईमानदार, नम्र और ईश्वर को ग्राह्य होने की
इच्छा तब तीव्र हो गयी थी जब उसने अपने आपको पाप और बुराइयों के बीच ऐसा फँसा पाया जहाँ
से निकल पाना बिल्कुल असंभव था। ऐसे समय में ईश्वर की चुनी हुई प्रजा के समक्ष असहनीय,
अंधकारमय आशाविहीन स्थिति से निकलने के लिये ईश्वर की दया पर पूर्ण भरोसा और आशा करने
के अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं था। और ऐसे ही समय में उन्होंने यह अनुभव किया कि ईश्वर
की महत्ती दया अपार है जो पापी की मृत्यु नहीं, पर उसका पश्चात्ताप और जीवन चाहती है।
(एजेकियेल 33,11) पवित्र दिल और एक नया ह्रदय वही है जो इसी बात को पहचान पाती, अपने
को ईश्वर के हाथों में सौंप देती है और उसकी प्रतिज्ञाओं पर पूर्ण आस्था रखती है। इसी
भाव को व्यक्त करते हुए भजन रचयिता ने कहा है, "पापी तेरे पास लौट आयेगा (स्तोत्र 55,15)
और ईश्वर एक नम्र और मनोव्यथित दिल का तिरस्कार कदापि नहीं करेगा।"(19) प्रिय भाइयो
एवं बहनों, इस्राएल का इतिहास पर ग़ौर करने से लगता है कि उसने कई बार लड़ाइयों और अन्य
घटनाओं को महत्त्व दिया पर जब उसे अपने अस्तित्व, अंतिम लक्ष्य और मुक्ति जैसे सवालों
को उत्तर खोजना पड़ा तब उसने अपनी शक्ति पर नहीं पर ईश्वर पर आशा रखी जो मानव ह्रदय को
घमंडी और असहिष्णु नहीं, पर नया कर देते हैं। यह बात हम सबों को इस बात की याद दिलाता
है कि हम भी जब व्यक्तिगत या सामुदायिक जीवन के कुछ गंभीर आयामों का समाधान खोज रहे हैं
तो हमें बचाने के लिये मानव रणनीति काफी नहीं है। हमें चाहिये कि हम उस पिता ईश्वर पर
भरोसा करें जो हमें पूर्ण जीवन देते हैं। वे ही हमारे जीवन के केन्द्रबिन्दु हैं जिन्होंने
हमें अपने पुत्र येसु मसीह के जीवन का सहभागी बनाया। आज के सुसमचार में हम पाते हैं
कि कैसे किस तरह से एक ऐतिहासिक आकांक्षा की पूर्ति अंततः प्रभु येसु में पूरी हुई। संत
योहन इस बातको बतलाते हुए कहते हैं कुछ ग्रीक वासियों की इच्छा थी कि वे येसु को देखें।
उनकी इस अभिलाषा के उत्तर में येसु कहते हैं कि "अब समय पूरा हो चुका है और मानव पुत्र
महिमान्वित किया जायेगा।(यो.12,23)। येसु का यह जवाब कुछ अजीब-सा था। येसु से मिलने और
येसु के महिमान्वित किये जाने में क्या संबंध हो सकता है? अगर ग़ौर किया जाये तो इन दोनों
में एक संबंध अवश्य है जैसा कि संत अगुस्टीन कहते हैं कि ‘येसु महिमान्वित हो रहे हैं
क्योंकि कई लोग येसु के पास आ रहे हैं जो ईश्वरीय प्रजा के रूप में नहीं जाने जाते थे’।
संत योहन यह भी बतलाते हैं कि येसु के लिये अपनी महिमा के पूर्व दुःखभोग जैसी नम्रता
भी आवश्यक थी। प्रिय भाइयो एवं बहनों, येसु का अपने दुःखभोग के बारे में घोषणा करना
उन दिनों में एक छिछली और भ्रामक बात थी क्योंकि ग्रीक जो येसु को देखने आये थे येसु
को क्रूस में चढ़ाये जाते हुए देखेंगे। पर यह भी सत्य है कि दुनिया को बचाने के लिये
अपना बलिदान करने के द्वारा यहीं से येसु के महिमान्वित होने की कहानी शुरु होगी। जैसा
कि लिखा है "जबतक गेहूँ का दाना जमीन में गिरकर नहीं मर जाता वह अकेला रहता है पर जब
मर जाता है तो बहुत फल लाता है।" और तब ग्रीक या दुनिया के लोग उस सच्चे ईश्वर को प्राप्त
करेंगे जिसे ईश्वर ने सबों के सामने प्रकट किया है। ठीक इसी प्रकार गुवाडालूपे की
माँ मरिया ने संत हुवान दियेगो को अपने पुत्र को एक पौराणिक शक्तिशाली योद्धा रूप में
नहीं पर जीवितों के ईश्वर, सृष्टिकर्ता के रूप में प्रकट किया था जिससे सबको जीवन प्राप
होता है। उस समय माता मरिया ने वही किया जो उन्होंने कानानगर के विवाह भोज में किया था।
जब विवाह भोज में दाखरस की कमी हो गयी थी तो उन्होंने नौकरों से कहा कि ‘वे वहीं करें
जो येसु कहते हैं अर्थात् येसु के पथ पर चलें’। (यो.2, 5) मेरे प्रिय भाइयो एवं बहनो,
यहाँ आकर मैंने कुबीलेते पर्वत में अवस्थित ख्रीस्त राजा के स्मारक के दर्शन किये। यह
स्मारक मेक्सिको के लोगों के विश्वास के लिये अहम है। अपने कई प्रेरितिक यात्राओं के
दौरान इस स्मारक को देखने की प्रबल अभिलाषा के बावजूद धन्य जोन पौल द्वितीय इस पावन स्थल
में नहीं आ सके। मुझे पूरा विश्वास है कि धन्य जोन पौल द्वितीय जिसके पवित्र अवशेष का
सम्मान मेक्सिकोवासियों ने हाल ही में किया है, स्वर्ग में ही मेरे यहाँ आने की खुशी
मना रहे हैं। कुबीलेते के पर्वत पर अवस्थित ख्रीस्त राजा की प्रतिमा के साथ काँटों
और प्रभुत्व का जो दो मुकट है वह इस बात को घोतक है कि उनका राज्य हिंसा या बल के द्वारा
दूसरों को जीतने पर निर्भर नहीं करता, पर निर्भर करता है दिलों को जीतने पर। उन्होंने
अपने बलिदान द्वारा ईश्वर के प्रेम को दुनिया में बाँटा और सत्य का साक्ष्य दिया। यह
एक ऐसी शक्ति है जिसे न तो कोई छीन सकता न ही भुला सकता है। इसीलिये यह पवित्र भूमि,
तीर्थस्थल बना रहे जहाँ लोग प्रार्थना करें, मनफिराव करें, मेल-मिलाप करे, सत्य को खोजें
और ईश्वर की कृपा को स्वीकार करें। हम ईश्वर से याचना करते हैं कि वे हमारे दिलों
में राज्य करें हमें पवित्र और आज्ञाकारी बनायें तथा हमारे दिल को नम्रता, साहस और आशा
से भर दें।
यह वही स्थल है जो हमें मेक्सिको के एक राष्ट्र के रूप में जन्म
लेने की 200वीं शताब्दी की याद दिलाता है जिसने विभिन्नताओं के बावजूद लोगों को एक लक्ष्य
और एक मिशन के लिये एक साथ एकता के एकसूत्र में बाँधा है। हम येसु ख्रीस्त से प्रार्थना
करते हैं कि वे हमें एक पवित्र ह्रदय दें जहाँ वे शांति के राजा के रूप में विराजमान
होंगे और हम उस ईश्वर को धन्यवाद देंगे जो अच्छाई और प्रेम के ईश्वर हैं। हम इस बात
की भी याद करें कि जब ईश्वर हममें निवास करते हैं तो हमें चाहिये कि हम उनकी बातों को
सुनें, उनके वचनों के द्वारा प्रेरणा पायें जैसा कि माता मरिया ने किया था। इस तरह हमारी
मित्रता प्रगाढ़ होगी और हम जान सकेंगे कि वे हमसे किन-किन अच्छी बातों की अपेक्षा करते
हैं। अपारेचिदा में लैटिन अमेरिकी और कैरिबियन धर्माध्यक्षों ने इस बात का गहरा अनुभव
किया कि हम अपने बीच रोपे गये सुसमाचार की पुष्टि, नवीकृत और पुनर्जीवित करें जैसा कि
येसु अपने शिष्यों और मिशनरियों के साथ करते हैं। विभिन्न धर्मप्रांतों में इसी दृढ़
विश्वास का प्रचार-प्रसार हो रहा है ताकि लोग छिछले, कामचलाऊ, खंडित और बेतुके विश्वास
के साथ जीने के प्रलोभन में ने फँसे। इसके विपरीत वे ख्रीस्तीय होने का आनन्द मनायें,
येसु की प्रेरणा से जीने, आन्तरिक आनन्द पाने और येसु तथा कलीसिया का अभिन्न अंग होने
पर गर्व करें। ऐसा करने से ही हम वह शक्ति प्राप्त करेंगे जो विभिन्न प्रतिकूल परिस्थितियों
और दुःखों के समय येसु की सेवा करने में हमारी मदद देगा और हम अपनी सुविधा के लिये नहीं,
पर येसु के लिये जीवन जी पायेंगे। इस प्रकार के जीवन का उदाहरण हम संतो की जीवनी
में पाते हैं जिन्होंने येसु को अपने जीवन का केन्द्र बना लिया था और यह सीख लिया था
अंतिम क्षण तक प्रेम में बने रहने का क्या अर्थ है? विश्वास के वर्ष में जैसा मैंने
पूरी काथलिक कलीसिया से इस बात का आह्वान किया है कि वे सच्चे मन से ईश्वर की ओर लौटें,
प्रेम के अनुभव के साथ विश्वास में बढ़ें और आनन्द और कृपा के अनुभव को दूसरों को बाँटें।
आइये, हम माता मरिया से याचना करें कि वे हमारे ह्रदय को पवित्र करें ताकि हम आने
वाले पास्का पर्व के रहस्यों को गहराई से समझ सकें। हम प्रार्थना करें कि वे मेक्सिको
और लतिन अमेरिकी बच्चों की रक्षा करें ताकि येसु का राज्य इस धरा पर आये जहाँ एकता, शांति,
सद्भावना और न्याय हो।