आयरलैण्ड के प्रेरित, सन्त पैट्रिक विश्व के
सर्वाधिक विख्यात सन्तों में से एक हैं। सन्त पैट्रिक का जन्म स्कॉटलैण्ड में सन् 387
ई. में हुआ था। जब पैट्रिक 14 वर्ष के थे तब उनका अपहरण कर लिया गया था तथा दास रूप में
उन्हें आयरलैण्ड लाया गया था। आयरलैण्ड में उनके अपहरणकर्त्ताओं ने उन्हें भेड़ों को
चराने के लिये पहाड़ों में भेज दिया था। भेड़ों को चराते समय पैट्रिक प्रार्थना किया
करते थे। अपने बन्धक जीवन के विषय में वे लिखते हैं: "ईश्वर का प्रेम एवं उनका भय मुझमें
अधिकाधिक विकसित होता गया और विश्वास मेरी आत्मा को पुष्ट करता रहा। मैं सूर्यास्त से
लेकर उषाकाल तक जंगलों में और पहाड़ों में सैकड़ों प्रार्थनाओं का पाठ करता रहा। मुझे
न तो हिमपात की, न तो तूफान की, न तो ओलों की और न ही बरसात की मार ने सताया।"
छः
वर्षों तक दास का जीवन व्यतीत करने के बाद पैट्रिक ने एक सपना देखा जिसमें उन्हें ब्रिटेन
वापस आने का आदेश दिया गया था। इसे जीवन का एक अहं संकेत मानकर पैट्रिक किसी तरह अपने
अपहरणकर्त्ताओं के यहाँ से भाग निकले। यूरोप में उन्होंने कई मठों में जाकर अध्ययन किया।
इसी समय उनका साक्षात्कार सन्त जरमानुस से हुआ जिन्होंने उनका पुरोहिताभिषेक और बाद में
धर्माध्यक्षीय अभिषेक किया। सन्त पापा सेलेस्टीन द्वारा धर्माध्यक्ष पैट्रिक को सुसमाचार
प्रचार के लिये आयरलैण्ड वापस भेजा गया जहाँ उन्होंने अपने रथ चालक सन्त ओडरेन तथा अपने
शिष्य सन्त जारलाथ के साथ मिलकर लोगों को प्रभु येसु ख्रीस्त का शुभ समाचार सुनाया। 33
वर्ष की समर्पित प्रेरिताई ने विपुल फल उत्पन्न किये और सम्पूर्ण आयरलैण्ड ख्रीस्त की
ज्योति से आलोकित हो मन परिवर्तन के लिये तैयार हुआ। पैट्रिक ने उन्हें इस क़दर ईश प्रेम
का मर्म समझाया कि मध्ययुग तक आयरलैण्ड सन्तों की भूमि के नाम से विख्यात हो गया तथा
अन्धकार के युग में, आयरलैण्ड के काथलिक मठ, यूरोप में ज्ञान के भण्डार सिद्ध हुए। 17
मार्च, सन् 461 ई. को पैट्रिक का निधन आयरलैण्ड के साओल में हो गया जहाँ उन्हीं के द्वारा
देश के सबसे पहले गिरजाघर का निर्माण किया गया था। आयरलैण्ड के संरक्षक सन्त पैट्रिक
का पर्व 17 मार्च को मनाया जाता है।
चिन्तनः प्रार्थना मनुष्य को ईश
प्रेम तक ले जाती है जिससे ओत् प्रोत् होकर वह परोपकार के लिये प्रेरित होता है।