सीरो मलाबार रीति के कलीसिया के प्रमुख कार्डिनल बनाये जायेंगे
वाटिकन सिटी 17 फरवरी 2012 (वी आर वर्ल्ड) वाटिकन में 18 फरवरी को आयोजित होनेवाले भव्य
समारोह में 22 महाधर्माध्यक्ष कार्डिनल बनाये जायेंगे जिन्में भारत के सीरो मलाबार रीति
के प्रमुख महाधर्माध्यक्ष मार जोर्ज अलंचेरी भी शामिल हैं। वाटिकन रेडियो को दिये गये
साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि उनकी कलीसिया की परम्परा का मूल प्रेरित संत थोमस में
पाया जा सकता है जिन्होंने लगभग दो हजार वर्ष पूर्व भारत में ईसाई धर्म लाया। भारत की
तीन प्रमुख काथलिक रीतियों वाली कलीसियाओं में सीरो मलाबार, लातिनी रीति और सीरो मलंकारा
रीति की कलीसिया हैं। औपनिवेशिक काल के आरम्भ में देश में मिशनरियों द्वारा लातिनी रीति
का प्रसार हुआ।
मेजर आर्चविशप अलांचेरी ने कहा कि उनके सीरो मलाबार चर्च की रीति
ने लातिनी तथा पूर्वी रीति की परम्पराओं के मिश्रण को बनाये रखा है। एक बड़ा परिवर्तन
हुआ जिसमें पहले मेजर आर्चविशप को रोम के पोप नियुक्त करते थे अब धर्माध्यक्षों की सिनड
द्वारा सीरो मलाबार चर्च के मेजर आर्चविशप का चयन किया जाता है और वे इस सिनड द्वारा
चुने गये पहले मेजर आर्चविशप हैं। यह घटना सीरो मलाबार चर्च के इतिहास में मील का पत्थर
है जिसे संत पापा जोन पौल द्वितीय ने " सुई यूरिस " या स्वायत्त पदवी दिया तथा यह चर्च,
रोमी कलीसिया के साथ सामुदायिकता में है।
मेजर आर्यविशप अलांचेरी ने कहा कि पूर्वी
रीति के अनेक विश्वासी विश्व के अनेक भागों में फैले हैं तथा उनके बच्चे विभिन्न कलीसियाई
रीतियों में बढ़ रहे हैं। यह परिस्थिति विश्वासियों के लिए अनेक चुनौतियाँ उत्पन्न करती
है जो अपनी प्राचीन पूर्वी परम्पराओं को जीवित रखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि लातिनी
रीति के कलीसियाई अधिकारियों सहित सब पक्षों की ओर से सहयोग का आग्रह करते हैं। परस्पर
संवाद से परिस्थितियों में सुधार लाया जा सकता है।
मेजर आर्चविशप अलांचेरी ने
आशा व्यक्त किया कि विगत अक्तूबर माह में सम्पन्न मध्य पूर्व के धर्माध्यक्षों की सिनड
के बाद तैयार होनेवाला दस्तावेज विभिन्न काथलिक रीतियों के काथलिकों के मध्य सहयोग से
जुड़ी समस्या के समाधान की दिशा में मार्गदर्शन प्रदान करेगा। कलीसिया को इस समस्या का
समाधान करना होगा क्योंकि सार्वभौमिक कलीसिया विभिन्न निजी चर्चो का समुदाय है। यद्यपि
कुछ निजी चर्च बहुत छोटे हैं, लघु समुदाय हैं तथापि उनकी रक्षा करना है ताकि वे अपनी
विरासत को सुरक्षित रखते हुए सार्वभौमिक कलीसिया के अंदर रहें और यह जिम्मेदारी लातिनी
रीति के धर्माध्यक्षों तथा कलीसियाओं का काम है। उन्होंने कहा कि अमरीका और आस्ट्रेलिया
में विभिन्न रीतियों की चर्चों के मध्य सहयोग अच्छा है लेकिन वे नहीं जानते कि अन्य देशों
में इस सवाल के प्रति लोग उतने खुले क्यों नहीं हैं।