अफ्रीका और यूरोप के धर्माध्यक्षीय सम्मेंलनों की समिति की प्रतिनिधियों के लिए संत पापा
का संदेश
वाटिकन सिटी 16 फरवरी 2012 (सेदोक, वी आर वर्ल्ड) अफ्रीका और यूरोप के धर्माध्यक्षीय
सम्मेंलनों की समिति की 13 फरवरी से आरम्भ 5 दिवसीय दूसरी विचार गोष्ठी “Evangelization
today: communion and pastoral collaboration between Africa and Europe”. शीर्षक से
रोम में सम्पन्न हो रही है। संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने इस विचारगोष्ठी के प्रतिभागी
कार्डिनलों और धर्माध्यक्षों को गुरूवार 16 फरवरी को वाटिकन स्थित कलेमेंतीन सभागार में
सम्बोधित किया। उन्होंने यूरोपीय धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों की समिति के अध्यक्ष कार्डिनल
पीटर एरदो और अफ्रीका तथा मडागास्कर के धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों की समिति के अध्यक्ष
कार्डिनल पोलिकार्प पेंगो को उनके हार्दिक उदबोधन के लिए धन्यवाद देते हुए कहा कि सन
2004 में आयोजित पहली विचारगोष्ठी के बाद से परस्पर सामुदायिकता और मेषपालीय सहयोग के
लिए किये जा रहे अध्ययन दिवसों का प्रसार करने के काम से जुड़े सब लोगों को वे धन्यवाद
देते हैं। संत पापा ने कहा कि इन वर्षों में दोंनों महादेशों के कलीसियाई समुदायों
के मध्य मैत्री और सहयोग पूर्ण संबंध से मिले आध्यात्मिक फलों के लिए वे ईश्वर को धन्यवाद
देते हैं। सांस्कृतिक, सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि भिन्न होने पर भी धर्माध्यक्षों ने
प्रभु येसु और और उनके सुसमाचार की उदघोषणा के कार्य़ में भाईचारे की भावना का प्रदर्शन
किया है। उन्होंने कहा कि यूरोप की कलीसिया के लिए अफ्रीका की कलीसिया के साथ साक्षात्कार
होना आशा और आनन्द से पूर्ण कृपा का कारण है। दूसरी ओर अनेक कठिनाईयों और शांति तथा मेलमिलाप
की जरूरत के मध्य भी अफ्रीका की कलीसिया ती जीवंतता तथा अपने विश्वास को दूसरों के साथ
बांटने के लिए इच्छुक है। संत पापा ने कहा कि अफ्रीका में कलीसिया के सामने विश्वास और
परोपकार के मध्य लिंक पर ध्यान देना जरूरी है जो एक दूसरे को आलोकित करते हैं। संत पापा
ने सुसमाचार और अपने प्रेरितिक पत्र पोरता फिदेई से कथन को उद्धृत करते हुए कहा कि ख्रीस्त
का प्रेम दिलों को भर देता है तथा सुसमाचार प्रचार को गति प्रदान करता है। उन्होंने धर्माध्यक्षों
के सामने प्रस्तुत वर्तमान चुनौतियों को देखते हुए कहा कि धार्मिक उदासीनता, अस्पष्ट
धार्मिकता,सत्य और निरंतरता से जुड़े सवालों का सामना नहीं कर सकते हैं। यूरोप और अफ्रीका
में भी धार्मिक उदासीनता बहुधा ईसाई धर्म के विरूद्ध है। उन्होंने कहा कि सुसमाचार प्रचार
के सामने अन्य चुनौती सुखवाद है जिसने दैनिक जीवन, परिवार तथा जीवन के अस्तित्व संबंधी
मूल्यों को ही प्रभावित कर दिया है। अश्लील साहित्य तथा वेश्यावृत्ति का प्रसार गंभीर
सामाजिक अशांति के लक्षण हैं। संत पापा ने इन चुनौतियों के मध्य धर्माध्यक्षों को
प्रोत्साहन दिया कि वे इन मुददों के प्रति सचेत रहें जो उनकी प्रेरितिक जिम्मेदारी के
सामने चुनौती प्रस्तुत करती हैं। उन्होंने धर्माध्यक्षों को निराश नहीं होने तथा अपने
समर्पण और आशा का नवीनीकरण करने को कहा क्योंकि ख्रीस्त सदैव हमारे साथ हैं। इसके साथ
ही उन्होंने परिवार के महत्व को रेखांकित करते हुए परिवार प्रेरिताई पर विशेष ध्यान देने
को कहा। परिवार में जो कि रीति रिवाजों और परम्पराओं तथा विश्वास से जुडे धार्मिक अनुष्ठानों
को धारण करता है यह बुलाहटों के विकसित होने के लिए सबसे उपयुक्त वातावरण देता है। पभोक्तावादी
मानसिकता का इनपर नकारात्मक असर पड़ सकता है इसलिए पुरोहिताई और धर्मसमाजी जीवन के लिए
बुलाहटों का प्रसार करने के लिए विशिष्ट ध्यान देने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि यूरोप
और अफ्रीका में उदार युवाओं की जरूरत है जो अपने भविष्य का उत्तरदायित्व जिम्मेदारीपूर्वक
ले सकें तथा संस्थानों के मन में भी हो कि इन युवाओं में भविष्य निहित है तथा यथासंभव
उपाय किये जायें कि उनका पथ अनिश्चिचतता और अंधकारमय न हो। संत पापा ने सांस्कृतिक
पहलू के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि कलीसिया यथार्थ संस्कृति के हर रूप का सम्मान कर
प्रसार करती है जो ईशवचन की समृद्धि को तथा ख्रीस्त के पास्काई रहस्य से मिलनेवाली कृपा
को अर्पित करती है। इसके साथ ही संत पापा ने कहा कि इस विचारगोष्ठी ने धर्माध्यक्षों
को दोनों महादेशों में कलीसिया के सामने आनेवाली समस्याओं पर चिंतन करने का अवसर दिया
है। समस्याएँ कम नहीं हो तथा यदा कदा सार्थक हैं लेकिन इसके साथ ही प्रमाण हैं कि कलीसिया
जीवित है, बढ़ रही है तथा सुसमाचार प्रचार के मिशन को जारी रखने से डरती नहीं है।