नई दिल्लीः बलात्कार की शिकार धर्मबहन के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट ने दिया स्थगन आदेश
नई दिल्ली, 15 फरवरी सन् 2012 (ऊका): भारत की सर्वोच्च अदालत ने बलात्कार की शिकार एक
काथलिक धर्मबहन के प्रकरण पर स्थगन आदेश दे दिया है। उड़ीसा की एक निचली अदालत के न्यायाधीश
द्वारा परीक्षण के दौरान, तथ्यों की ग़लत व्याख्या की शिकायत कर, धर्मबहन ने सुप्रीम
कोर्ट में याचिका दर्ज़ की थी।
धर्मबहन के वकीलों में से एक, काथलिक पुरोहित
फादर दिबाकर पारिच्छा ने सन्तोष व्यक्त करते हुए कहा, "यह एक बहुत ही सकारात्मक विकास
है क्योंकि इससे पीड़ित धर्मबहन को अपने विचार व्यक्त करने का अवसर मिलेगा।"
न्यायमूर्ति
आल्तामास कबीर तथा न्यायमूर्ति एस.एस निज्जर की खण्डपीठ ने राज्य सरकार एवं अन्यों से
धर्मबहन की दलील के जवाब का उत्तर देने को कहा तथा मामले में आगे की सुनवाई को 22 मार्च
तक मुल्तवी कर दिया है।
सन् 2008 में, उड़ीसा में, हुई ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा
के दौरान, धर्मबहन से सड़क पर अर्द्ध नग्न अवस्था में परेड कराई गई थी तथा उनका बलात्कार
किया गया था।
फादर दिबाकर पारिच्छा ने कहा कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट की शरण जाना
पड़ा क्योंकि उड़ीसा के उच्च न्यायालय ने, उप संभागीय न्यायिक मजिस्ट्रेट प्रशांत कुमार
दास से पूछताछ करने हेतु पीड़िता द्वारा की गई अपील को ठुकरा दिया था।
दास ने
बलात्कार के आरोपियों की पहचान हेतु जाँचपड़ताल की थी। धर्मबहन ने सन्तोष नायक को आरोपी
के रूप में पहचाना था किन्तु दास ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि नायक ने किसी भी प्रकार
की ज़्यादती नहीं की।
उड़ीसा के उच्च न्यायालय ने अभियोजन पक्ष को निर्देश
दिया था कि वह कटक की एक अदालत में इस मामले को उठाये जहाँ प्रकरण पर सुनवाई हो रही थी।
कटक - भुवनेश्वर महाधर्मप्रान्त ने भी सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर सन्तोष जताते
हुए कहा है कि यह न्याय के हित में है।