2012-02-09 16:25:19

यौन दुराचार मामलों में सत्य की खोज करना नैतिक और कानूनी दायित्व


रोम 9 फरवरी 2012 (वीआर वर्ल्ड) बाल यौन दुराचार को रोकने संबंधी मामले पर रोम में आयोजित 4 दिवसीय अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के प्रतिभागियों के लिए सुसमाचार प्रसार संबंधी परमधर्मपीठीय धर्मसंघ के अध्यक्ष कार्डिनल मनोनीत फेरनान्दो फिलोनी ने बुधवार संध्या रोम स्थित चर्च ओफ द होली अपोश्ल में ख्रीस्तयाग अर्पित किया। 6 से 9 फरवरी तक सम्पन्न इस सम्मेलन का आयोजन परमधर्मपीठीय ग्रेगोरियन विश्वविद्यालय के द्वारा किया गया। बच्चों की सुरक्षा संबंधी केन्द्र की स्थापना करने के साथ ही इस सम्मेलन का समापन गुरूवार को हुआ जो सम्पूर्ण विश्व के धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों को मूल्यवान संसाधन उपलब्ध करायेगा। बुधवार के सत्रों में विचार विमर्श का केन्द्र बिन्दु रहा कि यह कलीसियाई नेताओं का नैतिक और कानूनी कर्तव्य है कि यौन दुराचार के सब मामलों का प्रत्युत्तर दें।

विश्वास संबंधी परमधर्मपीठीय समिति में न्याय प्रसार से संबंधित धर्मसंघ के अधिकारी महाधर्माध्यक्ष चार्ल्स सिकलुना ने कहा कि बाल यौन दुराचार को रोकने के लिए कोई भी रणनीति कारगर नहीं हो सकती है यदि समर्पण और जिम्मेदारी निर्धारित नहीं हो। उन्होंने कहा कि सत्य के लिए प्रेम को न्याय के प्रति प्रेम में तथा इसके परिणामस्वरूप मानव समाज में संबंधों में सच्चाई की स्थापना के लिए समर्पण में व्यक्त किया जाना जरूरी है।

उन्होंने बल देते हुए कहा कि सम्मेलन के प्रतिभागियों ने विश्व के विभिन्न भागों से आये लोगों द्वारा प्रस्तुत भाषणों में सुना कि यह कितना महत्वपूर्ण है कि वे मौन की घातक संस्कृति का सामना करें जो अब भी कुछ स्थानों में कायम है। हमें जरूरत है कि आगे बढ़ें और इसकी निन्दा करें क्योंकि यह सत्य और न्याय का शत्रु है।

यौन दुराचार के पीडितों को न्याय और क्षतिपूर्ति दिलाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि यह महत्वपूर्ण है कि स्थानीय कलीसिया देश के नागरिक कानून के साथ पूरी तरह सहयोग करें तथा चर्च के दिशानिर्देशों को भी निकटता से देखें। उन्होंने पोप जोन पौल द्वितीय के शब्दों को उद्धृत करते हुए कहा कि पुरोहिताई या धर्मसमाजी जीवन में उनके लिए कोई भी स्थान नहीं है जो युवाओं को हानि पहुँचायें। मान्यवर सिकलुना ने बल दिया कि संघर्ष के केन्द्र में प्रशिक्षण है जो कि बच्चों की सुरक्षा के लिए जागरूकता और समर्पण की नयी संस्कृति की रचना करे। न केवल गुरूकुल छात्रों, पुरोहितों और लोकधर्मियों का प्रशिक्षण लेकिन धर्माध्यक्षों का भी ताकि चर्च के सब नेताओं की भी बेहतर जिम्मेदारी सुनिश्चित हो। उन्होंने कहा कि धर्माध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका के लिए उम्मीदवार का चयन करते समय सजग रहने की जरूरत है तथा धर्माध्यक्षों की जिम्मेदारी से संबंधित पहले से विद्यमान दिशानिर्देशों का उपयोग किया जाये।







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