बंगलोर, 6 फरवरी, 2012 (उकान) कैथोलिक रेलिजियस इन इंडिया (सीआरआइ) के महासचिव ब्रदर
मनी मेक्कुनेल ने कहा है कि परंपरागत सेवा के कार्यों से हट कर विकास और मानवाधिकार की
रक्षा के लिये कार्य करने का मूल्य भारतीय धर्मसमाजियों को अपने जीवन से चुकाना पड़ रहा
है। सीआरआइ अधिकारी ब्रदर मनी ने उक्त बात उस समय कही जब उन्होंने बंगलोर में आयोजित
सीबीसीआइ की 30वें द्विवार्षिक महासभा में अपने विचार रखे। उन्होंने कहा, "समाजसेवा
का विरोध करने वालों ने 15 नवम्बर, 2012 को झारखंड के एक सुदूर गाँव में ‘सिस्टर्स ऑफ
चैरिटी ऑफ ज़ीजस एंड मेरी’ की सिस्टर वाल्सा जोन निर्मम हत्या को कर दी और सन् 1995 ईस्वी
में फ्रांसिस्कन क्लारिस्ट सिस्टर रानी मरिया को एक भाड़े के हत्यारे ने इंदौर के निकट
मार डाला था। ब्रदर मेक्कुन्नेल ने हाल में किये गये सर्वेक्षण के आधार पर बतलाया
कि भारत में 1 लाख 25 हज़ार धर्मसमाजी सामाजिक तथा आर्थिक विकास के कार्यों से जुड़े
हुए हैं। इनमें 80 प्रतिशत संख्या धर्मबहनों की है जो कलीसिया की स्वास्थ्य सेवा के 90
प्रतिशत कार्यों को करतीं हैं। उन्होंने बतलाया कि कुल 27 हज़ार 224 धर्मसमाजियों
में 12 हज़ार 142 पूर्ण रूप से समाज कल्याण के कार्यों में लगे हुए हैं। ब्रदर ने
बतलाया कि भारत में धर्मसमाजी सिस्टर बड़ी संख्या में अपने कॉन्वेंट की सुरक्षापूर्ण
ज़िन्दगी को छोड़कर ग़रीबों की सेवा के लिये बाहर आती हैं जिन्हें चर्च के अधिकारियों
द्वारा सम्मान और न्याय दिया जाना चाहिये।
उन्होंने कहा कि आज़ ज़रूरत है
धर्मसमाजी सिस्टरों के सशक्तिकरण की ताकि वे प्रभावशाली तरीके से लोगों की सेवा कर सकेँ।
सीबीसीआइ और सीआरआइ के संयुक्त प्रयासों से किये गये सर्वे के अनुसार भारत के धर्मसमाजी
विश्व के 166 देशों में अपनी सेवायें दे रहे हैं। सीआरआइ के महासचिव ने इस बात पर बल
दिया कि एक ऐसी प्रणाली का विकास किया जाये जो मिशनरी धर्मसमाजियों को जोड़े और उनके
उत्साह को बनाये रखे। उनका मानना है कि भारत के लिये एक स्थायी मिशनरी मॉडल और एक
एक व्यवहार्य मिशनरी कार्यप्रणाली विकसित हो।