बुधवारीय-आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा का संदेश 1 फरवरी, 2012
वाटिकन सिटी, 1 फरवरी, 2012 (सेदोक, वी.आर) बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत
पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने वाटिकन स्थिति संत पौल षष्टम् सभागार में देश-विदेश से एकत्रित
हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया।
उन्होंने अंग्रेजी
भाषा में कहा-मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, आज की धर्मशिक्षामाला में ‘प्रार्थना’ विषय
पर चिन्तन जारी रखते हुए हम उस प्रार्थना पर चिन्तन करें जिसे येसु ने अंतिम ब्यारी के
बाद गेथसेमानी में ओलिव के बाग़ में चढ़ायी थी। जब येसु की मृत्यु निकट आ गयी थी
तब उन्होंने एकांत में ठीक उसी तरह से प्रार्थना करना आरंभ किया जैसा कि एक अनन्त पुत्र
अपने स्वर्गीय पिता से प्रार्थना करता है। उन्होंने अपने शिष्यों-पेत्रुस, जेम्स और
योहन को अपने साथ लिया था। येसु के साथ चेलों की उपस्थिति येसु के प्रत्येक शिष्य के
लिये एक आमंत्रण है ताकि वह क्रूस के रास्ते में येसु का साथ दे। येसु की यह प्रार्थना
इस बात को प्रकट करती है कि वे अपनी मृत्यु से भयभीत हैं और उनके चेहरे में व्यथा की
रेखा स्पष्ट झलक रही है। इसके साथ ही येसु इस बात को भी दिखाते हैं कि वे पिता ईश्वर
की इच्छा के प्रति आज्ञाकारी हैं। उनके वे शब्द,"मेरी इच्छा नहीं पर तेरी इच्छा पूरी
हो"(संत मारकुस,14:36) इस बात की शिक्षा देते हैं कि ईश्वर की इच्छा में अपने को पूर्ण
रूप से समर्पित कर देने में ही हम पूर्ण मानवता को प्राप्त करते हैं। येसु का अपने
पिता की इच्छा को "हाँ" कहने से मानव को आदम के पाप से मुक्ति मिली। मानव को सच्ची स्वतंत्रता
प्राप्त हुई जिसे ईश्वर अपनी संतान को प्रदान करते हैं। गेथसेमानी के बाग़ में की
गयी येसु की प्रार्थना पर चिन्तन करते हुए हम ईश्वर की इच्छा को पहचानना सीखें और अपने
जीवन में सदा इसी प्रार्थना को दुहराते रहें कि ‘उसकी इच्छा पूरी हो, जैसे स्वर्ग में
हैं, वैसे इस धरा पर भी हो’।
इतना कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया।
उन्होंने ब्रिटिश आर्मी चैपलिन्स, विद्यार्थियों, पल्लीवासियों, हाँगकाँग
और अमेरिका तथा देश-विदेश से आये तीर्थयात्रियों, उपस्थित लोगों एवं उनके परिवार के सभी
सदस्यों पर प्रभु की कृपा, प्रेम और शांति की कामना करते हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद
दिया।