येसु में ईश्वर के साथ व्यक्तिगत संबंध बनाना पुरोहितीय जीवन का सार
वाटिकन सिटी, 30 जनवरी, 2012(ज़ेनित) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने कहा, "पुरोहिताई
और पुरोहित के जीवन में सबसे महत्वपूर्ण बात है येसु में ईश्वर से व्यक्तिगत संबंध बनाना।"
संत पापा ने उक्त बात की पुष्टि उस समय की जब उन्होंने वृहस्पतिवार को इटली के तीन
क्षेत्रीय सेमिनरी के धर्मबंधुओं को संबोधित किया।
उन्होंने धर्मबंधुओं को सेमिनरी
जीवन के महत्ता पर प्रकाश डाला और भविष्य के पुरोहितों के दर्शन और ईशशास्त्रीय प्रशिक्षण
के बारे में चर्चा की।
उन्होंने कहा, "जैसे कि मैंने पुरोहितों को समर्पित वर्ष
के अन्त में ‘धर्मबंधुओं के पत्र’(लेटर टू द सेमिनेरियन्स) में लिखा है, पुरोहितों का
प्रशिक्षण-काल उपयोगी बातों को सीखना सिर्फ़ नहीं है, पर उस विश्वास की संरचना को पूर्ण
रूप से जानना और समझना भी है जो सिर्फ़ किसी शोध का सारांश नहीं, पर एक शारीरिक संघटित
रचना है और एक जैविक दृष्टि है जो लोगों के लिये एक ऐसा जवाब बने, जो बाह्य रूप से पीढ़ी-दर-पीढ़ी
बदलते पर मूलतः यथावत् बने रहते हैं।"
संत पापा ने कहा कि ईशशास्त्र के अध्ययन
को प्रार्थनामय जीवन से जोड़ा जाना चाहिये। उन्होंने कहा, "यह बात महत्त्वपूर्ण है कि
एक सेमेनेरियन इस बात को समझे जिसने उसे बुलाया वे ईश्वर ही हैं जिन्होंने उससे बातें
की और आमंत्रित किया ताकि वह अपना सारा जीवन ईश्वर और लोगों की सेवा के लिये समर्पित
करे।"
संत पापा ने कहा, "मानव जीवन की सत्यता यह है कि हम ईश्वर के समक्ष लोगों
के साथ एक ईमानदार व्यक्ति के रूप में प्रस्तुत हों। अतः पुरोहितीय जीवनयात्रा तथा पुरोहिताई
जीवन में सबसे बड़ी बात यह है कि हम येसु ख्रीस्त में ईश्वर के साथ व्यक्तिगत संबंध स्थापित
करें।"
संत पापा ने धन्य जोन तेईसवें का उदाहरण देते हुए कहा, "अपने मिशन को
ध्यान में रखते हुए जिसे आपको ईश्वर की महिमा और लोगों की आत्माओं की मुक्ति के लिये
दिया जायेगा, आपकी शिक्षा का उद्देश्य हैः अपने मन को प्रशिक्षित करना और इच्छा को पवित्र
करना। दुनिया संतों का इंतज़ार कर रही है। सभ्य, सुवक्ता और आधुनिक पुरोहितों से ज़्यादा
पवित्र पुरोहितों की आवश्यकता है जो दूसरों को पवित्र करते हों।" (सोचेरदोती सान्ती ए
सान्तीफिकातोरी अर्थात् पवित्र और पवित्रकर्त्ता पुरोहित)
संत पापा ने कहा, "ये
बातें अब भी प्रासांगिक है क्योंकि पूरी काथलिक कलीसिया और वे सारे क्षेत्र जहाँ से आप
आते हैं में, सुसमाचार के लिये कार्य करने की आवश्यकता है, ज़रूरत है विश्वसनीय साक्षियों
की जो अपने जीवन से पवित्रता का विस्तार करते हैं।"