2012-01-28 13:46:42

‘गंभीर संकट’ का जवाब ‘विश्वास का वर्ष’


वाटिकन सिटी, 28 जनवरी, 2012 (सीएनए) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने कहा, "विश्वास का वर्ष 2012 -13, संकट के क्षण में मानवता को जागरुक करेगा।"

उक्त बात संत पापा ने उस समय कही जब उन्होंने 27 जनवरी, शुक्रवार को काथलिक सिद्धांत के लिये कार्यरत कलीसिया के सर्वोच्च अधिकारियों को संबोधित किया।

संत पापा ने कहा, "विश्व के कई भागों में विश्वास के लोप होने का ख़तरा पैदा हो गया है मानो यह तेल बिना दीया हो।"

उन्होंने कहा, "हम आज विश्वास संबंधी एक गंभीर संकट का सामना कर रहे हैं। धार्मिक भावना का अभाव होना, कलीसिया के लिये सबसे बड़ी चुनौती बन गयी है।"

पोप ने आशा व्यक्त करते हुए कहा, "11 अक्तूबर 2012 से 24 नवम्बर, 2013 तक जारी रहना वाला ‘विश्वास का वर्ष’ दुनिया के लोगों को ईश्वरीय उपस्थिति का अनुभव कराएगा, जिससे व्यक्ति को विश्वास मजबूत होगा ताकि वह अपने को उस पिता ईश्वर को समर्पित करे जिन्होंने हमें येसु मसीह के द्वारा हमें नवजीवन दिया ।"

संत पापा ने कहा, "विश्वास का नवीनीकरण पूरी काथलिक कलीसिया की प्राथमिकता हो जो विश्व के ईसाइयों को एकता के सूत्र में बाँधे।"
उन्होंने इस बात को भी स्वीकार किया कि अन्तरकलीसियाई प्रयास लोगों के विश्वास को मजबूत करने में सदा सहायक नहीं रहा है।

उन्होंने कहा, "अन्तरकलीसियाई वार्ता से कई अच्छी बातें निकल कर सामने आयीं हैं पर इससे तटस्थता और ‘झूठा इरेनिसिज़्म’ बढ़ा है अर्थात् एक ऐसी एकता बढ़ी है जो सत्य के कम महत्त्व देती।"

आज दुनिया में यह बात हावी होती जा रही है कि " सत्य तक पहुँच पाना कठिन है और इसलिये दुनिया को बेहतर बनाने के लिये हमें कुछ नियमों के पालन करने तक ही सीमित रखना चाहिये। "

संत पापा ने कहा, "ऐसे समय में छिछली नैतिकता की जगह विश्वास को स्थान दिया जाना चाहिये जो विभिन्न ख्रीस्तीय समूहों के बीच वार्ता के लिये सहायक सिद्ध हो।"

"वास्तव में सच्चा अन्तरकलीसियाई वार्ता का मुख्य बिन्दु है या सार है ‘विश्वास’ जिसमें व्यक्ति ईशवचन द्वारा प्रकाशित सत्य को प्राप्त करता है।"

संत पापा ने कहा, "विवादास्पद मुद्दों को अन्य कलीसियाओं के साथ आम बातचीत के समय बेक़दर या नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।"

उन्होंने कहा, "विश्वास और नीति की बातों को भ्रातृत्व और सम्मान का भाव रखते हुए, पूरे साहस के साथ बरकरार रखा जा सकता है। आपसी वार्तालाप में हम मानव जीवन, परिवार, यौनसंबंधी बातें, जैव नैतिकता, स्वतंत्रता, न्याय और शांति जैसे बातों की उपेक्षा नहीं कर सकते हैं।"

संत पापा ने कहा, "कलीसिया की सच्ची परंपराओं को सुरक्षित रखते हुए ही हम मानव और सृष्टि की रक्षा करते हैं।"











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