2012-01-25 12:41:38

मुम्बईः लिंग असमानता के लिये सामाजिक-सांस्कृतिक घटक ज़िम्मेदार, डॉ. पास्कल कारवाल्लो


मुम्बई, 25 जनवरी सन् 2012 (एशिया न्यूज़): वाटिकन स्थित जीवन सम्बन्धी परमधर्मपीठीय अकादमी के सदस्य तथा मुम्बई महाधर्मप्रान्त के मानव जीवन आयोग के कार्यकर्त्ता, डॉ. पास्कल कारवाल्लो के अनुसार, भारत में लड़कियों के विरुद्ध भेदभाव तथा लिंग असमानता के लिये सामाजिक एवं सांस्कृतिक घटक ज़िम्मेदार हैं।

24 जनवरी को भारत में सरकार द्वारा घोषित राष्ट्रीय बालिका दिवस मनाया गया। सन् 2009 में यू.पी.ए. सरकार ने, भारत की पूर्व प्रधान मंत्री स्व. इन्दिरा गाँधी के, सन् 1966 में, पहली बार महिला प्रधान मंत्री बनने की स्मृति में, बालिका दिवस की घोषणा की थी। भारतीय काथलिक कलीसिया इस दिवस को, मरियम के जन्म पर्व, आठ सितम्बर को मनाती है।

डॉ. पास्कल ने बालिका दिवस के उपलक्ष्य में एशिया समाचार से कहा, "बालिकाओं एवं किशोरियों के विरुद्ध परिवार तथा समाज में व्याप्त सभी पूर्वधारणाओं एवं भ्राँन्तियों को दूर करना अनिवार्य है।" उन्होंने कहा कि बालिकाओं की रक्षा के लिये सबसे पहले चयनात्मक गर्भपात एवं कन्या शिशु हत्या को रोकना नितान्त आवश्यक है।

डॉ. कारवाल्लो ने कहा कि वैज्ञानिक विकास के चलते अल्ट्रासाऊन्ड तथा आमनियोचेन्तेसी जैसी तकनीकियाँ विकसित हुई हैं जिनका मूल उद्देश्य भ्रूण की अपसामान्यता का पता लगाना था जबकि इन तकनीकियों का दुरुपयोग कन्या भ्रूण का पता लगाकर उसे ख़त्म करने के लिये किया जा रहा है।

डॉ. कारवाल्लो ने कहा कि यद्यपि भारतीय सरकार ने इन तकनीकियों के दुरुपयोग को रोकने के लिये कानून बनाया है तथापि सामाजिक समस्याओं को जड़ से उखाड़ फेंकने के लिये यह पर्याप्त नहीं है। उन्होंने कहा, "लड़कियों को केवल आर्थिक दृष्टि से ही बोझ नहीं समझा जाता बल्कि सामाजिक एवं सांस्कृतिक घटकों के कारण भी उनके विरुद्ध भेदभाव किया जाता है, उदाहरणार्थ, वंश को आगे बढ़ाने के लिये, वृद्धावस्था में माता पिता की देखभाल के लिये, चिता के दहन तथा मृत्यु सम्बन्धी अन्य रीति रिवाज़ों की पूर्ति के लिये केवल पुत्र को ही उपयुक्त एवं योग्य समझा जाता है।"










All the contents on this site are copyrighted ©.