कोलोम्बोः श्री लंका के विस्थापितों के लिये धार्मिक नेताओं ने समाधानों का किया आह्वान
कोलोम्बो, 10 जनवरी सन् 2012 (एशिया न्यूज़): श्री लंका के ख्रीस्तीय, बौद्ध, हिन्दु
तथा इस्लाम धर्मों के नेताओं ने श्री लंका की सरकार का आह्वान किया है कि वह देश में
विस्थापित हुए लगभग दो लाख लोगों के पुनर्वास तथा सिंघली एवं तमिल जातियों के बीच पुनर्मिलन
की प्रक्रिया को तुरन्त आरम्भ करे।
तीन दशकों तक जारी श्री लंका के गृहयुद्ध
के बाद बताया जाता है कि दो लाख से अधिक लोग देश में ही विस्थापित हो गये हैं तथा यत्र
तत्र शरण शिविरों में जीवन यापन कर रहे हैं। दूसरी ओर तमिल एवं सिंघली जातियों के बीच
सुलह हेतु भी सरकार से ठोस कार्यों की मांग की जा कही है।
गृहयुद्ध पर श्री लंका
के राष्ट्रपति की अध्यक्षता में लेसन्स लर्न्ट एण्ड रीकनसिलियेशन कमीशन की रिपोर्ट जारी
की गई है। कमीशन ने पाया कि विस्थापितों का पुनर्वास तथा तमिल एवं सिंघली लोगों के बीच
पुनर्मिलन सर्वाधिक महत्वपूर्ण समस्याएँ हैं जिनका समाधान शीघ्र ही पाया जाना अनिवार्य
है। पर्यवेक्षकों के अनुसार श्री लंका की सरकार इन मुद्दों पर उपेक्षा भाव दर्शा रही
है।
हाल में एक सम्मेलन के लिये राजधानी कोलोम्बो में एकत्र विभिन्न धर्मों के
नेताओं ने कहा कि देश में स्थायी शांति लाने के लिये रिपोर्ट के प्रस्तावों को तत्काल
कार्यरूप देना अनिवार्य है। हालांकि सरकार ने कहा है कि वह रिपोर्ट के सभी प्रस्तावों
को नहीं मान सकती। वह हर प्रकरण पर अलग से विचार करेगी।
कोलोम्बो के सेवानिवृत्त
महाधर्माध्यक्ष ऑसवर्ल्ड गोम्ज़ ने कहा, "प्रस्तावों को शीघ्र ही कार्यरूप देना आवश्यक
है ताकि एक और युद्ध न भड़के।" उन्होंने कहा, "जाति की समस्या का समाधान ढूँढ़े बिना
युद्ध वास्तव में कभी भी समाप्त नहीं होगा।"
बौद्ध नेता बेलानविला विमलरत्ना थेरो
ने कहा, "रिपोर्ट में सरकारी सुरक्षा बलों तथा तमिल विद्रोहियों द्वारा किये युद्ध अपराधों
की जाँच पड़ताल का प्रस्ताव किया गया है।" उन्होंने इस बात पर बल दिया कि तीन दशक तक
चले युद्ध के दौरान विस्थापित लोगों को उनके घरों को वापस लौटाना नितान्त आवश्यक है।
इसके साथ ही, उन्होंने कहा, सरकार को एक स्वतंत्र न्यायधिकरण की स्थापना कर हिंसा रहित
समाज का आश्वासन देना चाहिये।
इस बीच, कई पर्यवेक्षकों ने युद्ध रिपोर्ट की आलोचना
कर कहा है कि 400 पृष्ठों वाली उक्त रिपोर्ट की प्रकाशना का उद्देश्य, सरकारी सैन्य बलों
का, बचाव करना था।