वाटिकन सिटीः सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने राजनयिक निकाय के सदस्यों को किया सम्बोधित
वाटिकन सिटी, 09 जनवरी सन् 2012 (सेदोक): सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने, सोमवार को वाटिकन
में, परमधर्मपीठ को प्रत्यायित राजनयिक निकाय के राजदूतों एवं प्रतिनिधियों को सम्बोधित
कर उनके प्रति नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ अर्पित कीं।
क्रिसमस महापर्व के
बाद, नववर्ष के उपलक्ष्य में, प्रतिवर्ष सन्त पापा परमधर्मपीठ को प्रत्यायित विभिन्न
देशों के राजदूतों एवं कूटनीतिज्ञों से मुलाकात कर उन्हें अपना सन्देश देते हैं।
सोमवार
को अपने सम्बोधन में सन्त पापा ने सबके प्रति नववर्ष की मंगलकामनाएँ अर्पित कीं तथा शिक्षा,
स्वास्थ्य एवं समाज कल्याण कार्यों में काथलिक कलीसिया द्वारा विश्व को दिये जा रहे योगदान
का स्मरण दिलाया।
सन्त पापा ने कहा कि विश्व के विभिन्न देशों के साथ परमधर्मपीठ
के कूटनैतिक सम्बन्धों का उद्देश्य विचारों और सूचना का आदान प्रदान करना तथा सम्पूर्ण
विश्व में न्याय एवं शांति की स्थापना को प्रोत्साहित करना है। इस सन्दर्भ में उन्होंने
सन् 2011 के दौरान परमधर्मपीठ के साथ मलेशिया, अज़रबैजान, मोन्टेनेग्रो तथा मोज़ाम्बीक
के सम्बन्धों पर हर्ष व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि विभिन्न देशों के साथ कूटनैतिक सम्बन्धों
के अलावा परमधर्मपीठ अन्तरराष्ट्रीय एवं प्रान्तीय संगठनों के साथ भी फलप्रद वार्ताओं
का मनोरथ रखती है। इस दिशा में विगत वर्ष दक्षिण पूर्वी एशियाई देशों के संगठन "आसियान"
के साथ स्थापित नये सम्बन्ध तथा आप्रवास सम्बन्धी अन्तरराष्ट्रीय संगठन में परमधर्मपीठ
को पूर्ण सदस्य रूप में मिली मान्यता पर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने हर्ष व्यक्त किया।
राजनयिकों दिये सन्देश में सन्त पापा ने विश्व की वर्तमान परिस्थितियों पर चिन्तन
किया जिसमें, विशेष रूप से, उन्होंने अरब देशों में आये कथित वसन्त की चर्चा की। उन्होंने
कहा, "मेरे विचार उत्तरी अफ्रीका तथा मध्य पूर्व के प्रति अभिमुख होते हैं जहाँ के युवा
बेरोज़गारी, निर्धनता एवं अनिश्चित भविष्य से परेशान होकर क्रान्तिकारी ढंग से मार्गों
में निकल पड़े हैं।" उन्होंने कहा कि इस समय यह अनुमान लगाना कठिन है कि उनका अभियान
सफल हुआ अथवा विफल? क्या इससे उस क्षेत्र में स्थायित्व स्थापित हो सकेगा अथवा नहीं?
तथापि, यह निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि प्रत्येक व्यक्ति की मानव प्रतिष्ठा एवं
उसके मूलभूत अधिकारों का सम्मान कर ही न्याय एवं शांति की स्थापना सम्भव है।
सन्देश
में सन्त पापा ने युवाओं की शिक्षा पर अत्यधिक बल दिया। उन्होंने कहा कि शिक्षा ही वह
माध्यम है जो युवाओं में नैतिक मूल्यों का संचार कर उन्हें जीवन की चुनौतियों का सामना
करने हेतु तैयार कर सकती है इसीलिये काथलिक कलीसिया सभी देशों में शिक्षा के महत्व पर
बल दे रही है। इस परिप्रेक्ष्य में, सन्त पापा ने कहा, "यह स्पष्ट है कि प्रभावात्मक
शैक्षिक कार्यक्रम धार्मिक स्वतंत्रता की भी मांग करता है। इस स्वतंत्रता के वैयक्तिक,
सामुदायिक तथा संस्थागत आयाम है।" उन्होंने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता मानव का मूलभूत
अधिकार है जिससे किसी को भी वंचित नहीं किया जाना चाहिये। इस बात पर उन्होंने खेद व्यक्त
किया कि अनेक देशों में लोगों की धार्मिक स्वतंत्रता कुन्ठित की जा रही है, धर्म के आधार
पर उनके साथ भेदभाव किया जा रहा है तथा उन्हें उत्पीड़ित किया जा रहा है। पाकिस्तानी
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शाहबाज़ भट्टी को उन्होंने याद किया जिन्होंने अल्पसंख्यकों
के अधिकारों की लड़ाई में अपनी जान गँवा दी। सन्त पापा ने कहा कि लोगों में सहिष्णुता,
मानव प्रतिष्ठा के प्रति सम्मान, न्याय एवं शांति के भावों को जाग्रत करने में शिक्षा
का योगदान अपरिहार्य है।
धर्म के नाम पर विभिन्न देशों में हो रहे झगड़ों की
सन्त पापा ने निन्दा की तथा, विशेष रूप से, नाईजिरिया का स्मरण किया जहाँ ख्रीस्तीयों
को मुसलमान चरमपंथियों की हिंसा का लगातार सामना करना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि न्याय
एवं कानून व्यवस्था को दरकिनार करने के लिये धर्म का दुरुपयोग कदापि नहीं किया जा सकता।
अपने सम्बोधन में सन्त पापा ने अफ्रीका के कतिपय देशों जैसे आईवरी कोस्ट, महान
झीली देशों तथा हॉर्न ऑफ अफ्रीका में नित्य जारी राजनैतिक अस्थायित्व की स्थिति और इससे
उत्पन्न खाद्य के अभाव पर भी चिन्ता व्यक्त की तथा अन्तरराष्ट्रीय समुदाय का आह्वान किया
कि वह इन देशों की मदद करे। अन्त में, सन्त पापा ने पर्यावरण की सुरक्षा का भी आग्रह
किया। जापान के फुकुशिमा में तथा अनेक एशियाई देशों में आई प्राकृतिक आपदाओं का ध्यान
कराकर उन्होंने कहा कि सभी का दायित्व है कि वे पर्यावरण की सुरक्षा में योगदान प्रदान
कर मानव परिवार के बीच एकात्मता एवं ज़िम्मेदारी के भाव को बढ़ावा दें।