2012-01-02 11:37:02

वाटिकन सिटीः नये साल के उपदेश में सन्त पापा ने कहा, "भविष्य की आशा युवाओं में"


वाटिकन सिटी, 2 जनवरी सन् 2012 (सेदोक): वाटिकन स्थित सन्त पेत्रुस महागिरजाघर में ख्रीस्तयाग अर्पित कर सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने नव वर्ष 2012 का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर किये प्रवचन में सन्त पापा ने कहा कि युवाओं को मूलभूत नैतिक मूल्यों एवं सदगुणों की शिक्षा प्रदान करना मानवजाति के भविष्य को सुरक्षित रखने की कुँजी है।

सन्त पापा ने युवाओं की प्रशंसा करते हुए कहा कि युवा व्यक्ति स्वभाव से सम्वाद एवं आपसी सम्मान के प्रति उदार रहते हैं। तथापि, उन्होंने वर्तमान युग की सामाजिक वास्तविकताओं से सम्बन्धित ख़तरों की चेतावनी भी दी जो युवाओं को असहिष्णु एवं हिंसक भी बना सकती हैं। उन्होंने कहा कि यदि युवाओं को उचित प्रशिक्षण दिया जाये तो वे शांति के निर्माता बन सकते हैं।

कलीसिया द्वारा घोषित विश्व शांति दिवस पर सन्त पापा ने उन परछाईयों की चर्चा की जो वर्तमान विश्व के क्षितिज को अन्धकारपूर्ण बना रही हैं। उन्होंने कहा, "इस तथ्य को मैं रेखांकित करना चाहता हूँ कि वर्तमान जगत के क्षितिजों को अन्धकार से भरने वाली परछाईयों को दृष्टिगत रख, युवाओं को सत्य, मूलभूत मानवीय मूल्यों तथा सदगुणों का ज्ञान कराने की ज़िम्मेदारी लेना, आशा के साथ भविष्य को देखना है।"

उन्होंने कहा, "युवाओं के लिये यह नितान्त आवश्यक है कि वे शांतिपूर्ण सहअस्तित्व, आपसी सम्मान, वार्ताओं एवं समझदारी के महत्व एवं कला को सीखें। युवा जन अपने स्वभाव से ही इन सकारात्मक भावों के प्रति उदार रहते हैं, तथापि, जिन सामाजिक वास्तविकताओं में वे विकसित होते हैं, वे उन्हें उनके स्वभाव के विपरीत सोचने एवं कार्य करने को बाध्य कर सकती हैं, कभी कभी उन्हें असहिष्णु एवं हिंसक भी बना सकती हैं।"

सन्त पापा ने कहा, "केवल सत्य एवं भलाई पर आधारित अन्तःकरणों को दिया ठोस प्रशिक्षण युवाओं को इन ख़तरों से बचा सकता है तथा उन्हें जीवन के संघर्षों का सामना करने में सक्षम बना सकता है। इस प्रकार का प्रशिक्षण परिवार से शुरु होता है तथा स्कूलों में तथा अन्य प्रशिक्षण स्थलों पर विकसित होता है।"

उन्होंने कहा कि ठोस प्रशिक्षण का अर्थ है शिशुओं, बच्चों एवं किशोरों की मदद करना। ऐसे व्यक्तित्वों का निर्माण करना जो पड़ोसी के प्रति सम्मान एवं न्याय के गहन भाव से ओत् प्रोत् हों, बिना घमण्ड के संघर्षों का सामना कर सकें, भलाई का साक्ष्य प्रदान करने की उनमें आन्तरिक शक्ति हो तथा क्षमा एवं पुनर्मिलन के लिये तत्पर रहें। केवल ऐसा कर ही युवा जन शांति के वाहक एवं शांति के निर्माता बन सकेंगे।








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