2011-12-17 14:07:28

युवा, वर्ष 2012 की आशा


वाटिकन सिटी, 17 दिसंबर, 2011 (सीएनए) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें का विश्वास है कि सन् 2011 में विभिन्न संकटों से जूझते समाज को, अगले वर्ष आशा प्राप्त होगी, यदि अभिभावक युवाओं को येसु और ख्रीस्तीय मूल्यों की शिक्षा देंगे।
संत पापा ने उक्त बातें उस समय कहीं जब न्याय और शांति के लिये बनी परमधर्मपीठीय समिति के अध्यक्ष कार्डिनल पीटर तुर्कसन ने वाटिकन सिटी में 45वें विश्व शांति दिवस का संदेश देने के लिये एक संवाददाता सम्मेलन बुलाया। विश्व शांति दिवस 1 जनवरी 2012 को मनाया जायेगा।
उन्होंने कहा,"विचारधारायें दुनिया को नहीं बचा सकतीं पर जीवित ईश्वर, हमारे सृष्टिकर्त्ता, स्वतंत्रता और हितकारी बातों की गारंटी सुनिश्चित करानेवाले ईश्वर की ओर लौटने में ही हमारी सुरक्षा है।"
उन्होंने कहा, "प्रेम के अलावा और क्या है जो हमें बचा सकता है? प्रेम सत्य से प्रसन्न होता है और यही वह शक्ति है जो सत्य, न्याय और शांति के प्रति समर्पित रहता, सबकुछ वहन करता, सब कुछ में विश्वास करता, सब कुछ में आशा करता है और सबकुछ सह लेता है। "
विदित हो कि विश्व शांति दिवस प्रत्येक वर्ष 1 जनवरी को माता मरिया ईश्वर की माता के पर्व दिवस पर मनाया जाता है। इसका आरंभ सन् 1967 ईस्वी में हुई जो संत पापा जोन तेइसवें की एनसिकलीकल ‘पाचेम इन तेर्रिस’ (‘दुनिया में शांति’) से प्रेरित है जिसकी प्रकाशना सन् 1963 ईस्वी में हुई थी।
संत पापा ने कहा, "लोगों को चाहिये के वे आने वाले वर्ष, सन् 2012 को " सामाजिक संकट, श्रमिक और आर्थिक मंदी के स्थिति के बावजूद एक आस्थापूर्ण मनोभाव के साथ ग्रहण करें। "
समाज अंधकार से घिर गया है और हम प्रकाश को पूरी तरह से देख नहीं पा रहे हैं। फिर भी मानव ह्रदय नयी सुबह की आश लगाये है विशेष करके युवाओं के दिल में यह शक्तिशाली और प्रत्यक्ष है।
उन्होंने बताया कि युवाओं के आदर्शवादिता और उत्साह को देखकर ही उन्होंने अपने संदेश की विषयवस्तु " एडूकेटिंग यंग पीपल इन जस्टिस एंड पीस" अर्थात् ‘युवाओं को शांति और न्याय की शिक्षा’ रखा।
संत पापा ने कहा, " युवाओं का उत्साह और उनकी आदर्शवादिता दुनिया को एक नयी आशा दे सकता है। इस आशा को पाने के लिये यह ज़रूरी है कि युवाओं को यह बतलाया जाये कि वे जीवन के सकारात्मक मूल्यों की सराहना करें साथ ही उनमें उन इच्छाओं को जागृत करें जिनसे वे कल्याण के लिये अपनी सेवायें दे सकें।"
संत पापा ने कहा, "न्याय और शांति के बारे में शिक्षा वयस्कों के द्वारा दी जानी चाहिये और इस शिक्षा में सिर्फ नियमों और तथ्यों की सिर्फ़ गठरी न हो पर जीवन का ‘सच्चा साक्ष्य’ हो जिसे बताने वाले इसे खुद ही जीया करते हैं।"
संत पापा ने इस बात पर बल दिया कि " ऐसी शिक्षा की प्रथम पाठशाला है - परिवार जहाँ बच्चे मानव और ख्रीस्तयी मूल्यों को सीखते हैं जो उन्हें रचनात्मक एवं शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के लिये प्रेरित करता है। परिवार ही में बच्चे पीढ़ियों की एकता नियमों का सम्मान और मिल-मिलाप और एक-दूसरे को स्वीकारना सीखते हैं।"
संत पापा ने युवाओं को चुनौती देते हुए कहा, " वे कठिनाईयों के समय निराश होकर न झुक जायें और समस्याओं के आसान लगने वाले समाधानों से अपने-आपको बहकने न दें।"
उन्होंने कहा, " समर्पण, कठिन कार्य, बलिदान और जीवन में सही निर्णय के लिये वफ़ादारी, नम्रता समर्पण और अनवरतता की ज़रूरत होती है। संत पापा ने कहा कि युवाओ, "आप अकेले नहीं हो क्योंकि कलीसिया आपको इस बात को मदद देने के लिये तैयार है कि आप येसु मसीह को पा सकें जो खुद ही न्याय और शांति हैं।"








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