मुम्बईः जी.सी.आई.सी. ने ख्रीस्तीय अल्पसंख्यकों के लिये सुरक्षा की मांग की
मुम्बई, 14 दिसम्बर सन् 2011 (सेदोक): ग्लोबल काऊन्सल ऑफ इन्डियन क्रिस्टियन्स जी.सी.आई.सी.
ने भारतीय अधिकारियों से आग्रह किया है कि वे देश के अल्पसंख्यक ख्रीस्तीय समुदाय को
सुरक्षा प्रदान करें तथा अतिवादियों की हिंसा से उनकी रक्षा करें।
हाल ही में
कर्नाटक, आन्ध्रप्रदेश तथा मध्यप्रदेश में ख्रीस्तीयों के विरुद्ध हिन्दु चरमपंथियों
की हिंसा के मद्देनज़र जी.सी.आई.सी. के अध्यक्ष साजन के. जॉर्ज ने अधिकारियों का आह्वान
किया है कि वे, विशेष रूप से, क्रिसमस की अवधि में ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों को सुरक्षा
प्रदान करने हेतु ठोस उपाय करें ताकि सभी ख्रीस्तीय शान्तिपूर्वक प्रभु येसु मसीह की
जयन्ती मना सकें।
श्री जॉर्ज ने इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि 12 दिसम्बर
को ही कर्नाटक के मैंगलोर शहर स्थित सन्त अन्तोनी की गुफा पर हमला किया गया। इस हमले
के साथ ही, कर्नाटक में इस वर्ष हुए ख्रीस्तीय विरोधी हमलों की संख्या 42 तक पहुँच गई।
कर्नाटक में सन्त अन्तोनी की गुफा पर हमले से एक दिन पूर्व आन्ध्रप्रदेश में नकाबपोश
व्यक्तियों ने "न्यू फैलोशिप गॉस्पल चर्च" द्वारा आयोजित प्रार्थना सभा को भंग कर डाला
तथा पादरी बंगाया पर पत्थर फेंके। पादरी को लहूलुहान देखकर भक्तों ने पुलिस को ख़बर की
किन्तु तब तक आक्रमण कर्त्ता फरार हो चुके थे। इसके अतिरिक्त, नौ दिसम्बर को, झाबुआ में
महिलाओं के लिये आयोजित प्रार्थना एवं उपवास दिवस को आर.एस.एस. तथा विहिप के अतिवादियों
ने भंग कर डाला। प्रार्थना दिवस में उपस्थित महिलाओं पर उन्होंने पत्थर फेंके तथा प्रार्थना
की पुस्तकों एवं बाईबिल की प्रतियों को आग के हवाले कर दिया।
श्री जॉर्ज ने कहा
कि उक्त सभी आक्रमणों में हमलावरों के विरुद्ध कोई कारर्वाई नहीं की गई। उन्होंने कहा
कि अधिकारियों के उपेक्षाभाव के कारण ही हमलावरों का हौसला बढ़ता है तथा वे कमज़ोर वर्ग
के लोगों को अपना निशाना बनाते हैं।
जी.सी.आई.सी. ख्रीस्तीय संगठन के अध्यक्ष
श्री जॉर्ज ने अपना वकतव्य समाप्त करते हुए लिखाः "ख्रीस्त जयन्ती में केवल दो सप्ताह
बाकी हैं, हम, अधिकारियों से आग्रह करते हैं कि वे सुरक्षा उपायों में वृद्धि करें, ताकि
ख्रीस्तीय धर्मानुयायी शान्तिपूर्वक क्रिसमस महापर्व मना सकें।" उन्होंने प्रश्न कियाः
"क्या हम दूसरे दर्ज़े के नागरिक हैं जो हमारे साथ इस तरह का दुर्व्यवहार किया जाता है?
या क्या हम अपने विश्वास की अभिव्यक्ति कर कोई असंवैधानिक काम कर करे हैं?