2011-12-10 20:19:29

तमिल समुदाय की समस्याओं के समाधान की माँग


कोलोम्बो, श्रीलंका, 10 दिसंबर, 2011(एशियान्यूज़) समाजसेवी संगठनों ने माँग की है कि श्री लंका सरकार से तमिलों के मानवाधिकार संबंधी समस्याओं का समाधान करे।
कोलोम्बो मे आयोजित एक सेमिनार में विचार-विमर्श करते हुए सामाजिक कार्यकर्ताओं ने कहा कि मानवाधिकार विभिन्न समुदायों को समानतापूर्वक रहने का अधिकार देती है इसलिये सजातीय समुदायों के अधिकारों की रक्षा की जानी चाहिये।

प्रतिनिधियों ने विचार व्यक्त किया कि सरकार को चाहिये कि वह रोजगार, भोजन, मकान, जमीन और बच्चों और महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करे। श्री लंका में इसका खुला उल्लंघन हो रहा है।

सेमिनार में भाग लेनेवाले प्रतिनिधियों ने कहा कि चूँकि श्रीलंका सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक अधिकारों के लिये संयुक्त राष्ट्र संघ के अंतरराष्ट्रीय समझौते का सदस्य है उसे सजातीय अल्पसंख्यकों विशेष करके भारतीय तमिलों की रक्षा करनी चाहिये।

‘प्लैनटेशन सेक्टर सोशल फॉरम’ के एस. मुरुगइयाह ने बताया कि, " भारतीय तमिल जो 200 सालों से श्रीलंका में कार्यरत हैं अभी तक छोटी झोपड़ियों में रहा करते है। उनका मकान छोटा और बिना स्वास्थ्य सुविधाओं के है।

उन्हें यह अधिकार भी प्राप्त नहीं है कि अपना मकान बड़ा बनायें। बड़े मकान बनाने वालों को अपने काम से हाथ धोना पड़ सकता है।

उन्होंने कहा कि तमिलों की स्थिति को कानून के समक्ष और ही बदतर है। " सन् 1948 का द सिटिजन ऐक्ट न.18 के अनुसार तमिलों को अपनी राष्ट्रीयता भी खोनी पड़ी और जिसे उन्होंने कभी प्राप्त नहीं किया।

इस तरह से हज़ारों की संख्या में तमिल राष्ट्रीय अर्थ व्यवस्था के लिये कार्य करते हैं पर वे श्री लंका में वे राज्यहीन हैं और आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों से वंचित है।

विदित हो कि इंडियन ऑरिजिन ऐक्ट 2003 के तहत् उन्हें राष्ट्रीयता से वंचित किया गया था पर अब इस ऐक्ट ने तमिलों को यह अधिकार दे दिया है फिर इसका लाभ उन्हें नहीं मिल रहा है।

उधर ‘नैशनल अलायन्स फॉर ह्यूमन राइट्स टू लैंड’ की प्रतिनिधि के.पी. सोमलता ने कहा कि सरकार ने विकास की जिन योजनाओं को लागू किया है उससे हज़ारों लोग बेघर-बार हो गये हैं।

ज्ञात हो कि राष्ट्रपति महिन्द्रा राजपक्षा ने हाल में टूरिज़्म को बढावा देने के विचार और श्री लंका को ‘एशिया का आश्चर्य’ बनाने के लिये अनेक विकास योजनायें शुरु की है। इस विकास योजना से किसान, मछुवे और पशुफार्म में कार्यरत मजदूर पर बुरा प्रभाव हुआ है।












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