उड़ीसाः 2008 के ईसाई-विरोधी नरसंहार पर एक वैश्विक रिपोर्ट जारी
उड़ीसा, सात दिसम्बर सन् 2011 (एशिया न्यूज़): भारत के नेशनल पीपुल्स ट्रिब्यूनल एन.टी.पी.
ने राष्ट्रीय एकात्मता आंदोलन तथा सामाजिक कार्यकर्ताओं के एक समूह के सहयोग से उड़ीसा
के कन्धामाल ज़िले में, 2008 के दौरान ख्रीस्तीयों के विरुद्ध हिंदू कट्टरपंथी हिंसा
पर 197 पृष्ठों वाली एक वैश्विक रिपोर्ट प्रकाशित की है। इस हिंसा से प्रभावित 45 व्यक्तियों
के साक्ष्यों के आधार पर रिपोर्ट तैयार की गई है।
चार भागों में विभाजित उक्त
रिपोर्ट के पहले भाग में हिन्दु चरमपंथियों की हिंसा से पूर्व, उसके दौरान तथा उसके बाद
हुई घटनाओं का ब्यौरा दिया गया है। दूसरा भाग, हिंसा के मानवीय, सांस्कृतिक तथा सामाजिक
एवं आर्थिक परिणामों पर केन्द्रित है। तीसरे भाग में हिंसा पर अधिकारियों की प्रतिक्रियाओं
एवं उनकी कार्रवाईयों का विश्लेषण किया गया है जबकि चौथे भाग में पीड़ितों को न्याय दिलाने
हेतु सुझाव प्रस्तुत किये गये हैं। रिपोर्ट का उद्देश्य सत्य का पता लगाकर मानव प्रतिष्ठा,
न्याय एवं शांति को प्राप्त करना है।
रिपोर्ट में इस बात पर बल दिया गया है
कि ख्रीस्तीय आदिवासियों एवं दलितों के विरुद्ध हिन्दु कट्टरपंथियों की हिंसा ने भारतीय
संविधान एवं सभी अन्तरराष्ट्रीय संविदाओं में निहित मानव के मूलभूत अधिकारों का उल्लंघन
किया है तथा जीवन के अधिकार पर प्रहार किया है। यह भी प्रकाशित किया गया कि हिन्दु चरमपंथियों
ने धर्मान्तरण का बहाना बनाकर हिंसा को उकसाया जिसकी क्रूरता अन्तरराष्ट्रीय कानून के
तहत अत्याचार, यातना एवं मानवता के विरुद्ध अपराध के अन्तर्गत आती है। इस हिंसा में महिलाएँ
और बच्चे सबसे अधिक प्रभावित हुए जिससे उनका बौद्धिक एवं शारीरिक विकास अवरुद्ध हुआ और
कई मानसिक विकारों के शिकार हो गये।
सांस्कृतिक, सामाजिक एवं आर्थिक तौर पर
उड़ीसा में 2008 की हिंसा ने 50,000 से अधिक लोगों को शरणार्थी तथा 10,000 से अधिक लोगों
को विस्थापित बना दिया। इसके अतिरिक्त प्रार्थनालयों एवं गिरजाघरों को आग के हवाले करने
के बाद आज भी उनका जीर्णोंद्धार एवं पुनर्निर्माण नहीं हो पाया है जिसके कारण लोग आराधना
अर्चना करने से भी वंचित हो गये हैं तथा अपना धर्म पालन करने में असमर्थ हैं।
रिपोर्ट
में आरोप लगाया गया कि पुलिस, ज़िला एवं राज्य अधिकारियों की अस्पष्टता, चूक एवं हिन्दु
चरमपंथियों के साथ मिली भगत के कारण न्याय प्रणाली प्रभावहीन हो गई तथा लोगों को न्याय
नहीं मिल पाया।
रिपोर्ट में कंधमाल के ईसाइयों के लिए सुझावों की एक सूची प्रस्तुत
की गई है जिसमें न्याय प्रणाली को पुर्नप्रतिष्ठापित करने की मांग की गई। सामाजिक, आर्थिक
और सांस्कृतिक क्षेत्रों में जाति और धर्म का भेदभाव किये बिना सभी पीड़ितों के लिये
राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम लागू किये जाने का आह्वान किया गया है। विधवाओं
के लिये पेंशन, मृत पीड़ितों के परिवारों के लिये उपयुक्त सहायता, शरणार्थियों एवं विस्थापितों
के पुनर्वास तथा छोटे व्यवसाय शुरु करने के इच्छुक लोगों को सरलता से ऋण प्रदान करने
हेतु उपयुक्त योजनाओं को कार्यान्वित किये जाने की भी मांग की गई है।