कोतोनू ओविदा बेनिन 19 नवम्बर 2011 (सीएनए एपी) काथलिक कलीसिया के परमधर्मगुरू संत
पापा बेनेडिक्ट 16 वें 18 से 20 नवम्बर तक पश्चिमी अफ्रीकी राष्ट्र बेनिन की प्रेरितिक
यात्रा कर रहे हैं। वे यात्रा के पहले दिन 18 नवम्बर को बेनिन के सबसे बडे शहर कोटोनू
पहुंचे। लोगों ने नाचते, गाते, बजाते और रंगीन वस्त्रों में सुसज्जित बहुत गर्मजोशी से
संत पापा का स्वागत किया। कार्डिनल बेरनादिन गांते अंतरराष्ट्रीय हवाई अडडे परिसर में
निर्मित स्वागत मंच से बेनिन के राष्ट्रपति थोमस यायी बोनी के स्वागत संबोधन के बाद दिये
गये अपने पहले भाषण में संत पापा ने अफ्रीका महाद्वीप से आग्रह किया कि वह आध्यात्मिक
और नैतिक ह्रास के समक्ष अपने प्राचीन मूल्यों को बचाये रखे। आधुनिकता की ओर बढ़ते हुए
उन मापदंडों पर आगे बढे जो स्वीकृत मूल्यों पर आधारित हों अर्थात् मानव की प्रतिष्ठा,
परिवार का महत्व तथा जीवन के लिए सम्मान को बनाये रखें।
संत पापा ने कहा कि वे
पश्चिम अफ्रीका के एक छोटे देश में आये हैं ताकि देश में ईसाई धर्म के आगमन की 150 वीं
वर्षगाँठ का समारोह मना सकें तथा महाद्वीप में कलीसिया के भविष्य के लिए प्रेरितिक उदबोधन
दस्तावेज प्रस्तुत कर सकें। उन्होंने अफ्रीकावासियों को प्रोत्साहन दिया कि वे आधुनिकता
के सकारात्मक पहलूओं को स्वीकार करें लेकिन अपने अतीत की उपेक्षा नहीं करें। यह जरूरी
है कि विवेकपूर्ण तरीके से आगे बढ़ा जाये ताकि उन खतरों में नहीं गिरें जो अफ्रीका सहित
अन्य जगहों में विद्यमान हैं।
संत पापा ने अंतर धार्मिक तनावों का राजनीतिकरण
करने तथा मानवीय सांस्कृतिक, नैतिक और धार्मिक मूल्यों के क्षरण से संबंधित खतरों के
बारे में लोगों को आगाह किया। बेनिन के पारम्परिक प्रमुखों का अभिवादन करते हुए उन्होंने
कहा कि अपने विवेक और स्थानीय रीति रिवाजों की समझदारी से उन्होंने देश के भविष्य को
बनाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। जैसा की अफ्रीका परिवर्तन के दौर सं गुजर रहा है
कलीसिया चाहती है कि अपनी उपस्थिति, प्रार्थना और लोकोपकारी कार्यों के द्वारा योगदान
दे। वह जरूरतमंदों के समीप होना चाहती है जो ईश्वर की खोज करते हैं। वह यह समझ देना चाहती
है कि ईश्वर अनुपस्थित और निरर्थक नहीं हैं लेकिन वे मानव के मित्र हैं। संत पापा ने
कहा कि उनके बेनिन आने का एक अन्य कारण स्वर्गीय कार्डिनल बेरनादिन गांतिन के साथ उनकी
निजी मित्रता भी है जिनके साथ उन्होंने रोमी कार्यालय में कई वर्षों तक काम किया था,
गहन विचार विमर्श किया तथा प्रार्थनाएँ भी की थीं। कार्डिनल गांतिन बहुत सम्मानित व्यक्ति
थे। यह उचित प्रतीत होता है कि उनकी मातृभूमि में आकर उनकी समाधि पर प्रार्थना करें तथा
बेनिन के इस विशिष्ट पुत्र के लिए धन्यवाद दें जिसे उन्होंने कलीसिया को दिया।
अपनी
यात्रा के प्रथम दिन संत पापा ने कोतोनू स्थित कैथीड्रल की भेंट की और प्रार्थना सभा
में भाग लिया।
हवाई यात्रा के समय पत्रकारों के सवालों का जवाब देते हुए संत पापा
ने कहा कि अफ्रीका को केवल समस्याओं का महाद्वीप के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए। अफ्रीका
की समस्याओं को नहीं समाप्त किया जा सका है लेकिन यहाँ एक नयी ताजगी है, अफ्रीका में
जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण है, जवानी है जो आशा तथा खुशी और हास्य भाव से भरा
है। अफ्रकियों के दैनिक जीवन में ईश्वर के प्रति जागरूकता की भावना है। कलीसिया की पूजनधर्मविधि
समझ में आने और सहभागितावाली होनी चाहिए। उन्होंने कहा कि कलीसिया का संदेश सरल और ठोस
हो तथा इसे यूरोपीय या अफ्रीका की समझ से परे नहीं देखा जाना चाहिए।
बेनिन
की अपनी यात्रा के दूसरे दिन 19 नवम्बर को संत पापा ने अपने कार्यक्रमों की शुरूआत कोटोनू
स्थित परमधर्मपीठीय राजदूतावास के प्रार्थनालय में निजी ख्रीस्तयाग के साथ किया। इसके
बाद वे तीन किलोमीटर पर स्थित राष्ट्रपति निवास आये। इस इमारत का निर्माण फ्रांस द्वारा
बेनिन की आजादी की घोषणा करने के अवसर पर सन 1960 में किया गया था।
राष्ट्रपति
भवन में आयोजित समारोह में संत पापा ने देश के शासकों, नेताओं, अधिकारियों, कूटनीतिज्ञों
, विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों को सम्बोधित किया। इस समारोह के बाद संत पापा और बेनिन
के राष्ट्रपति ने कुछ समय निजी वार्ता में व्यतीत किया फिर उपहारों का आदान प्रदान किया
गया। तदोपरांत संत पापा ने राष्ट्रपति भवन की स्वर्ण पुस्तिका पर हस्ताक्षर किये एवं
राष्ट्रपति महोदय के परिजनों ने संत पापा का साक्षात्कार किया।
राष्ट्रपति भवन
में आयोजित समारोह समाप्त होने पर संत पापा का काफिला 43 किलोमीटर की दूरी तय कर अन्य
प्रमुख शहर ओविधा पहुँचा।
ओविधा शहर अटलांटिक महासागर के तट पर स्थित है। 17
वीं सदी में यहीं से दासों को खरीद बेच कर अटलांटिक पार देशों में ले जाया जाता था। यहाँ
एक द्वार बनाया गया था जिसे कहा जाता है " वापस नहीं आनेवाला दरवाजा " कहने का तात्पर्य
कि दास जो एक बार यहाँ से ले जाये जाते थे वे फिर वापस नहीं लौट पाते थे। सन 1721 में
पुर्तगालियों ने एक छोटा किला बनाया था। इस किले का उपयोग दासों की खरीद बिक्री के समय
महत्वपूर्ण भूमिका थी लेकिन अब इस एक संग्रहालय में बदल दिया गया है। सन 2000 में ईसाईयों
ने क्षमा का द्वार बनाया है।
संत पापा का काफिल ओविधा स्थित संत गाल सेमिनरी पहुँचा।
इस सेमिनरी की शुऱूआत अफ्रीका मिशन समाज के पुरोहित फादर अंतोनी गुतियेर द्वारा 17 फरवरी
1914 को की गयी थी। सन 1923 से ही इस सेमिनरी में पड़ोसी देशों टोगो नाईजीरिया, आइवरी
कोस्ट तथा केन्द्रीय अफ्रीका से पुरोहिताई के उम्मीदवार अध्ययन करने के लिए आते रहे हैं।
संत पापा ने सेमिनरी परिसर में स्थित प्रार्थनालय में पवित्रतम साक्रमेंत की
आराधना में कुछ समय व्यतीत करने के बाद स्वर्गीय कार्डिनल बेरनादिन गांतिन की समाधि के
दर्शन किये। बेनिन के विख्यात भूमिपूत्र कार्डिनल गांतिन ने लगभग 32 वर्षों तक वाटिकन
के रोमी कार्यालयों में कार्य़करते हुए विश्वव्यापी काथलिक कलीसिया को अपनी सेवा प्रदान
की थी। 1922 को जन्मे स्वर्गीय कार्डिनल गांतिन का निधन 2008 को हुआ। स्वर्गीय कार्डिनल
बेरनादिन गांतिन की समाधि के दर्शन करने के बाद संत पापा ने सान गाल सेमिनरी के प्रांगण
में उपस्थित पुरोहितों, गुरूकुल छात्रों, धर्मसमाजियों और लोकधर्मियों को अपना संदेश
दिया।
इस समारोह के बाद संत पापा ने 5 किलोमीटर की दूरी पर स्थित माता मरिया
के निष्कलंक गर्भागमन को समर्पित बासिलिका की भेंट की जिसका उदघाटन 1909 को हुआ था। इसमें
800 लोग समा सकते हैं। बासिलिका में धर्माध्यक्षों की विशेष धर्मसभा में शामिल होनेवाले
धर्माध्यक्षों, बेनिन के अन्य धर्माध्यक्षों, आमंत्रित सदस्यों सहित अन्य विश्वासी गण
उपस्थित थे। धर्माध्यक्षों की धर्मसभा के महासचिव महाधर्माध्यक्ष निकोला एतेरेविच ने
संत पापा का स्वागत किया तदोपरांत प्रेरितिक उदबोधन पर हस्ताक्षर करने से पूर्व संत पापा
ने सबको सम्बोधित करते हुए अपना संदेश दिया। तदोपरांत संत पापा ने प्रेरितिक उदबोधन
पर हस्ताक्षर किये तथा विश्वासियों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।
समारोह
के बाद संत पापा का काफिला 45 किलोमीटर की दूरी तय कर कोतोनू स्थित परमधर्मपीठीय राजदूतावास
पहुँचा जहाँ संत पापा ने दोपहर का भोजन ग्रहण किया।