2011-11-09 13:28:27

बुधवारीय - आमदर्शन समारोह के अवसर पर
संत पापा का संदेश
9 नवम्बर, 2011


वाटिकन सिटी, 9 नवम्बर, 2011 (सेदोक, वी.आर) बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में ?एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया।

उन्होंने अंग्रेजी भाषा में कहा- मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, आज की धर्मशिक्षामाला में ख्रीस्तीय प्रार्थना पर मनन-चिन्तन करना जारी रखें। आज के चिन्तन के लिये हम स्तोत्र या भजनगीत 119 को लें। यहूदियों के लिये यह एक महत्त्वपूर्ण स्तोत्र या भजनगीत रहा। इसमें ईश्वर के प्रति आस्था और स्तुति को व्यक्त किया गया है। इसमें 176 अनुवाक्य या पद हैं जिन्हें 22 भागों या दोहों में बाँटा गया है जिसमें आठ-आठ पद हैं। प्रत्येक दोहा को 22 अक्षर वाले यहूदी वर्णमाला के आधार पर सजाया गया है।

भजनगीत 119 की विषयवस्तु है ईश्वरीय विधान या ‘तोराह’ का महिमागान। इस तोराह में शिक्षा, प्रवचन, और जीवन दर्शन है। ‘तोराह’ यहूदियों के लिये ईश्वर का वचन और ईश्वरीय प्रकाशना थी। इस भजनगीत में भजनगायक ईश्वर के वचन के प्रति प्रेम दिखाते हुए, सुन्दरता, मुक्ति, ईश्वरप्रदत्त जीवन और खुशी के लिये हर्ष मनाता है। वह कहता है, " ईश्वर का नियम दासता के जुआ के समान भारी नहीं है पर यह तो एक कृपा है जो मुफ़्त में दिया गया है और इससे खुशी प्राप्त होती है।"
भजनगायक कहता है, "तेरे नियमों में चलना मेरे लिये खुशी की बात है मैं आपके शब्दों को कदापि नहीं भूलुँगा। मुझे तेरे नियमों में चलना सिखा क्योंकि इससे मुझे आनन्द प्राप्त होता है। ईश्वर का विधान मेरे जीवन का केन्द्र हैं। यह मेरी सांत्वना है। मैं अपने दिल में मैं तेरी प्रतिज्ञा को संजो कर रखता हूँ और फिर से तेरे विरुद्ध कोई कार्य नहीं करुँगा।"

स्तोत्र रचयिता के दिल में ईश्वर के प्रति जो वफ़ादारी या निष्ठा का भाव उत्पन्न हुआ है यह दिव्य वचन से प्रेरित है। वह चाहता है कि इन दिव्य वचनों को वह अपने दिल में संजोये रखे, उनपर चिन्तन करे और माता मरिया की तरह ही ईश्वरीय वचन के अनुसार जीवन जीये।

भजनगीत के आरंभ ही में स्तोत्र रचयिता ने ईश्वर के विधान की महिमा की है। वह कहता है "धन्य हैं वे जो ईश्वर के नियमों पर चलते हैं और जो उसके शिक्षा का पालन करते हैं।" जब हम चिन्तन करें तो हम पाते हैं कि भजन रचयिता ने ईश्वर का वचन सुनने के प्रति जिस निष्ठावान व्यक्ति की कल्पना की है वह कुँवारी माता मरिया में परिपूर्ण होती है। माता मरिया निश्चय ही धन्य हैं क्योंकि उन्होंने शरीरधारी दिव्य शब्द, मुक्तिदाता येसु का वहन किया और इस दुनिया में स्वागत किया।

इस तरह से हम पाते हैं कि स्तोत्र गीत 119 का संदेश आनन्द और जीवनदायी दिव्य शब्द के ईर्द-गिर्द घूमता है। इस भजनगीत में हम पाते हैं ईश्वर के नियम को आज्ञा, पाठ, प्रतिज्ञा,न्याय, विधि, विधान, आदि शब्दों से भी प्रकट किया गया है।

इस स्तोत्र में एक विश्वासी ईश्वर की महिमा करता, उसे धन्यवाद देता और उस पर अपनी आस्था तो रखता ही है वह ईश्वर से याचना करता, दुःख निवेदन करता कभी कभी शिकायत भरी याचना भी करता है। इन सबके बावजूद उसे ईश्वरीय कृपा और शक्ति पर पूर्ण भरोसा है।

भजन रचयिता ने इस बात को बतलाया है कि ईश्वर के वचन को पूरा करने के लिये यह आवश्यक है कि व्यक्ति अपने दिल की आवाज़ को सुने, उसके अनुसार जीवन का निर्णय करे और येसु का शिष्य बने। यह भी कहा जा सकता है कि नियम का पालन करना अर्थात् येसु का अनुसरण करना, येसु के पथ पर चलना और येसु का मित्र बनना।

आज हम प्रार्थना करें ताकि ईश्वर हमारे दिल को दिव्य वचन के प्यार से भर दे हम ईश्वरीय वचन और उसकी पवित्र इच्छा को अपने जीवन के केन्द्र में स्थान दें ताकि यह हमारे पाँव का दीपक बने और हमारी जीवनयात्रा सफल हो।

माता मरिया जिन्होंने शब्द को पाया और ग्रहण कर दुनिया को दिया हमारी सहायता करे हमारा मार्गनिर्देशन करे ताकि हम सदा उस मार्ग में चलें जो हमें आंतरिक खुशी प्रदान करती हो।

इतना कहकर संत पापा ने मॉल्टा के गायक दल को धन्यवाद दिया और अपना संदेश समाप्त किया।

उन्होंने इंगलैंड और वेल्स के जुबिलेरियन्स, संत पौल ऑफ चार्टरेस धर्मबहनों, अमेरिकन सोसायटी ऑफ द इटालियन लिजन ऑफ मेरी, इंगलैंड, डेनमार्क, फिलीपीन्स कनाडा और अमेरिका के तीर्थयात्रियों और उपस्थित लोगों पर प्रभु की कृपा, प्रेम और शांति की कामना करते हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।








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