2011-10-13 12:53:43

रोमः सभी धर्मों की सामान्य नैतिक नींव


रोम, 13 अक्टूबर सन् 2011 (कैथन्यूज़): रोम में जैव नीतिशास्त्र के विद्धानों के एक सम्मेलन में कहा गया कि कमज़ोर मानव प्राणियों के सुरक्षा सम्बन्धी दायित्व पर, विश्व के मुख्य धर्म सामान्य नैतिक आधार खोज सकते हैं, भले ही इस सुरक्षा के कारण एवं लक्ष्य भिन्न हों।

यूनेस्को के तत्वाधान में, रोम स्थित रेजिना अपोस्तोलोरुम परमधर्मपीठीय विश्वविद्यालय में नौ से 11 अक्टूबर तक ख्रीस्तीय, यहूदी, मुसलमान, बौद्ध, कनफ्यूशियन तथा हिन्दु धर्मों के विद्धानों का सम्मेलन सम्पन्न हुआ।

सम्मेलन का आधार था कि जैव चिकित्सा में प्रगति कुछ व्यक्तियों और समूहों को कमज़ोर बना देता है क्योंकि वे ख़ुद का बचाव करने में असमर्थ होते हैं और यह कि विश्व के धर्म अपनी परम्पराओं के प्रकाश में इन लोगों की मदद कर सकते हैं।

सम्मेलन के समन्वयकर्त्ता फादर जोसफ थाम ने कहा, "कुछ मामूली अन्तर के साथ सभी धर्म इस तथ्य से सहमत हैं कि कमज़ोर मनुष्यों को सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिये तथा कुछ वर्ग जैसे महिलाएं, बच्चे, रोगी एवं विकालांग व्यक्ति अन्यों की तुलना में अधिक जोखिम में हैं।"

"तथापि", फादर थाम ने यह भी स्मरण दिलाया कि "समाज से किसी व्यक्ति अथवा समूह के अधिकारों की सुरक्षा का दावा किया जा सकता है इस प्रकार की संकल्पना एशियाई धर्मों से मेल नहीं खाती। वे इसे परिवार या समाज के अभिजात वर्ग के दायित्व रूप में देखते हैं।"

इलिनोइस विश्वविद्यालय में नैदानिक ​​मनोरोग विज्ञान के प्राध्यपक प्रकाश देसाई ने हिन्दू धर्म का उदाहरण देते हुए कहा, "केवल व्यक्ति के भीतर का स्वतः अथवा आत्मा अविभाज्य है जबकि विश्व की दृष्टि में ना तो मनुष्य का घर और ना ही उसका शरीर कोई महल है तथा स्वतः एवं शरीर को प्रभावित करनेवाले निजी मामलों में, परिवार के मुख्या ही परिवार के अन्य सदस्यों के लिये निर्णय लेने वाला होता है।"

बौद्ध धर्म के प्रतिनिधि एलेन जांग ने कहा कि बौद्ध धर्म के सिवा कोई भी अन्य धर्म, शारीरिक कमज़ोरी के बारे में इतने स्पष्ट ढंग से नहीं बोलता। उन्होंने युवा राजकुमार सिद्धार्थ का उदाहरण दिया जिन्होंने मार्गों से गुज़रते ढलती उम्र, रोग और मृत्यु को देखकर मानवीय कमज़ोरियों का अनुभव पाया तथा आत्मज्ञान की यात्रा पर निकल पड़े।








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