कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन 4 अक्तूबर, 2011 अन्तरधार्मिक वार्ता एवं सद्बाव कलीसिया
की भूमिका और मिशन
सभी धर्मो का लक्ष्य एक है - ईश्वर तक पहुँचना, ईश्वर को प्राप्त करना या ईश्वर में एक
हो जाना। ईश्वर को प्राप्त करना अर्थात् उस सत्य को प्राप्त करना जिससे मानव को सच्ची
शांति मिले। विश्व के सभी धर्मों का दावा है कि उनके संस्थापक या गुरु के वचनों, विचारों,
कर्मों उदाहरणों एवं उस पंथ की अच्छी परंपराओं का ईमानदारी से पालन करने से व्यक्ति को
मुक्ति मिलेगी, व्यक्ति परमात्मा में एक हो जायेगा, व्यक्ति को पूर्ण संतुष्टि या सच्ची
शांति प्राप्त हो जायेगी।
राम, बुद्ध, महावीर, मुहम्मद और ईसा मसीह सबों के
द्वारा दिखाये गये धर्मों का आधार - दया, करुणा, क्षमा और अहिंसा की भावना ही है। इस
सत्य को कदापि नकारा नहीं जा सकता है धर्म का प्रासाद सत्य, प्रेम और अहिंसा की नींव
पर खड़ा होता है। महाकवि इकबाल ने ठीक ही कहा है कि " मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर
रखना।"
इस तथ्य के बावजूद धर्म के नाम पर होनेवाले संघर्षों, अत्याचारों और
हिंसा के जो समाचार रोज़ अख़बारों में छपते रहते हैं निश्चय ही धर्म शब्द कलंकित हुआ
है। धर्म की रक्षा के नाम पर कट्टर धर्मांधता या कहें धर्म के प्रति चरमपंथी विचारों
ने न मालूम कितने निर्दोषों की जानें लीं हैं, न जाने कितने उपासना गृहों को अपवित्र
किया गया है, कितनी पवित्र भूमि रक्त-रंजित हुई इसका कोई हिसाब नहीं, सब कुछ - बस भगवान
के नाम पर, ज़िहाद के नाम पर, राम के नाम पर धर्मयुद्ध के नाम पर। वैश्वीकरण के
इस युग में दुनिया को जिस बुराई ने ग्रस लिया है उनमे साम्प्रदायिकता का नाम सबसे ऊपर
होगा।
साम्प्रदायिकता का अभिप्राय है किसी समप्रदाय या धार्मिक मतवाद के प्रति
इतना विचल आग्रह कि यह असहिष्णुता को जन्म दे, अन्य धार्मिक मतों को सहन न करे, धर्म
की रक्षा के नाम पर उठाये अदूरदर्शी कदमों एवं धर्म के दिव्य वचनों की गलत या त्रुटिपूर्ण
व्याख्या कर इसका औचित्य साबित करने के लिये इस हद तक तैयार रहे कि बन पड़े तो दूसरे
धर्मावलंबियों का मूलच्छेद करने से न चूके। आज धर्म के नाम पर इतने अधर्म हुए कि
की जान कर हैरानी होती है। आयरिस लेखक जोनाथान स्विफ़्ट ने एक बार कहा था " धर्म घृणा
सिखाते हैं, धर्म धर्म क्यों नहीं कराते।"
साप्रदायिकता की इस महामारी को दूर
करने के लिये कई उपाय हो सकते हैं। हमें धर्म के मूल रहस्य और लक्ष्य को समझना होगा हमें
व्यापक मानव धर्म में विश्वास करना होगा हमें नई आध्यात्मकि दृष्टि को विकसित करनी होगी।
हममें ‘सर्वधर्मसमभाव’ ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘सर्वाःजनाय हिताय’ की भावना को
बढ़ावा देना होगा तब ही मानव की सही प्रगति और सच्चा कल्याण संभव हो पायेगा। काथलिक
कलीसिया ने वर्षो पहले इस बात को समझते हुए एक धर्म का दूसरे धर्म के साथ संबंध शांति
स्थापना में व्यक्ति की भूमिका तथा विवादास्पद मामलों को सुलझाने के लिये विभिन्न दस्तावेज़ों
में अनेक उपाय प्रस्तुत किये हैं। हम चाहते हैं कि वार्ता एवं सद्भाव को बढ़ावा देने
के लिये काथलिक कलीसिया के उन दस्तावेज़ों को प्रस्तुत करें जिससे एक शांतिपूर्ण विश्व
की स्थापना में धर्म का योगदान अहम हो।
पिछले दिनों हमने अन्तरधार्मिक वार्ता
या संबंध पर वाटिकन द्वितीय का एक दस्तावेज़ ‘नोसतरा अयेताते’ अर्थात् ‘हमारे युग में’
को प्रस्तुत किया। नोस्तरा आयेताते वाटिकन द्वितीय महासभा का वह दस्तावेज़ है जिसे संत
पापा पौल षष्टम् ने 28 अक्तूबर सन् 1965 में काथलिक कलीसिया के लिये घोषित किया। इसमें
इस बात की चर्चा की गयी है कि काथलिक कलीसिया का गैर काथलिक धर्मों के साथ क्या संबंध
हो।
काथलिक कलीसिया चाहती है कि ईसाई येसु के नाम का प्रचार करें। वे बतायें
कि येसु मसीह सत्य, मार्ग और जीवन हैं और उन्हीं में दुनिया के लोग अपनी परिपूर्णता पाते
हैं। इसलिये काथलिक कलीसिया ने एक और दस्तावेज़ प्रस्तुत किया है जिसे ‘डायलॉग एंड प्रोक्लामेशन’
या वार्ता एवं प्रचार के नाम से जाना जाता है। इस दस्तावेज़ में वार्ता और सुसमाचार
प्रचार के बारे में बतलाया गया है। इसमें इस बात पर बल दिया गया है कि वार्ता और सुसमाचार
प्रचार दोनों के महत्त्वपूर्ण है।
कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन कार्यक्रम के
अंतर्गत पिछले सप्ताह हमने जानकारी प्राप्त की अन्य धर्मों के बारे में ख्रीस्तीय विचारों
को, आज हम जानकारी प्राप्त करेंगे काथलिक कलीसिया की भूमिका और येसु के मिशन के बारे।
हम आपको बता दें कि वाटिकन महासभा इस बात के प्रति पूर्ण रूप से जागरुक थी कि
येसु में पूर्णता प्राप्त करने के लिये कलीसिया के जो मिशनरी कार्य हैं उसके तत्व अन्य
धर्मों में भी पाये जाते हैं। वाटिकन महासभा इस बात को बहुत ही स्पष्ट से व्यक्त करती
है कि " दूसरे राष्ट्रों में जो भी सत्य और कृपा, ईश्वर उपस्थिति के तरह अप्रकट रूप से
पायी जाती है, यह उन्हें बुराई के दाग से मुक्त करती और येसु इसके सृष्टिकर्त्ता में
स्थापित करती है जिन्होंने बुराई पर विजय प्राप्त की और बहुत तरह के द्वेषों को दूर किया।
अतः अच्छाइयाँ के जो भी बीज हम दूसरे लोगों के मन-दिल रीति-विधि और संस्कृतियों
में रोपा हुआ पाते हैं वे वे यूँ ही नहीं खो सकते। खोने से कहीं बढ़कर यह परिस्कृत एवं
प्रतिष्ठित होती और ईश्वरीय महिमा के लिये परिपूर्ण होती जो लोगों के लिये आनन्द का कारण
बनती है। ईसाइयों के धर्मग्रंथ बाईबल का पुराने व्यवस्थान इस बात की अभिपुष्टि
करती है कि सृष्टि के आरंभ से ही ईश्वर ने लोगों के साथ एक विधान बनाया। यह यही दिखाता
है कि पूरी मानव जाति की मुक्ति का इतिहास एक है। हम पुराने व्यवस्थान में वर्णित नोवा
का ईश्वर के साथ समझौता को मानव इतिहास में ईश्वर का हस्तक्षेप कह सकते हैं। ग़ौरतलब
है कि पुराने विधान के ग़ैर-इस्राएली भी नये विधान के मुक्ति इतिहास में देखे जाते हैं।
इसमें अबेल, एनोक और नोवा को विश्वास का आदर्श रूप में प्रस्तुत किया गया है। इसी इतिहास
की चरमसीमा हम येसु मसीह में पाते हैं जिसके द्वारा दुनिया के सब लोगों के लिये एक नया
और निर्णायक विधान स्थापित हुआ। इतिहास में इस्राएल की धार्मिक जागरुकता इस बात
के लिये याद की जाती है कि उन्हें इस बात का गहरा आभास था कि वे ईश्वर की चुनी हुई प्रजा
हैं। इसलिये वे इस मिशन के प्रति सचेत थे कि ईश्वर ने उन्हें चुना है उनकी देखभाल की
है और उनसे इस बात की अपेक्षा करते हैं कि वे एकेश्वरवाद की शुद्धता को बरकरार रखेंगे।
इस लिये पुराने व्यवस्थान में इस बात की भी चर्चा पाते हैं कि नबियों ने लोगों को प्रोत्साहित
किया ताकि वे सच्चे ईश्वर के प्रति ईमानदारी और निष्ठा बनाये रखें और प्रतिज्ञात मसीहा
की आशा के बारे लोगों को जानकारी दें। जीवन के उतार-चढ़ाव विशेष कर प्रवसन के समय में
भी नबियों ने ईश्वर के सर्वव्यापी होने के तथ्य को लोगों को बतलाया। उनके अनुसार ईश्वर
की मुक्ति केवल इस्राएलियों के लिये नहीं थी पर दुनिया के अन्य राष्ट्रों के लिये भी
थी। इसायस नबी ने इस बात की भविष्यवाणी की कि "अंतिम दिनों में राष्ट्र ईश्वर के
घर मे जमा हो जायेंगे और वे एक स्वर से कहेंगे, " दुनिया के लोगो, आओ हम ईश्वर के याकूब
का ईश्वर के पर्वत पर जायें ताकि वह हमें अपना मार्ग दिखाएगा। हम अगर येसु की ओर
दृष्टि गड़ायें तो हम पाते है कि उनका जीवन इस बात की घोषणा करता है कि वे इस धरा में
आये, ताकि खोये हुए भेड़ों को एकत्र कर सकें। शुरु में उन्होंने अपने चेलों को इस बात
की मनाही की कि वे ग़ैरयहूदियों के पास उस समय नहीं जायें। यद्यपि येसु ने अपने चेलों
को ग़ैर-यहूदियों के पास जाने से रोका फिर भी उन्होंने कई अवसरों में उन लोगों के प्रति
अपने खुले मनोभाव को स्पष्ट रूप से दिखलाया जो चुनी हुई प्रजा के सदस्य नहीं थे। येसु
उन लोगों के साथ भी अपना संबंध स्थापित किया तथा उनकी अच्छाइयों की तारीफ़ की। उन्होंने
एक संतरी के विश्वास की खुल कर सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने ऐसा विश्वास इस्राएल
में कभी नहीं देखा।उन्होंने विदेशियों के लिये भी चमत्कार किये और उन्हें चंगाई प्रदान
की। उन्होंने एक समारी स्त्री के साथ भी बातचीत की और कहा कि एक ऐसा समय आयेगा जब
लोग किसी एक स्थान में ईश्वर की आराधना नहीं करेंगे पर सच्चे भक्त पिता की पूजा एक ह्रदय
प्राण से करेंगे। इस तरह से येसु ने पहले ही एक नया दरवाज़ा खोल दिया जिसमें सब आमंत्रित
हैं। अब हम कह सकते हैं कि येसु मसीह का शरीर ही वह पवित्र स्थान है जिसे पिता ईश्वर
ने पवित्र आत्मा की शक्ति से पूर्ण किया है। कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन कार्यक्रम
के अंतर्गत हमने जानकारी प्राप्त की येसु का मिशन और कलीसिया की भूमिका के बारे में,
अगले सप्ताह हम जानकारी प्राप्त करेंगे स्वर्ग राज्य के प्रचार के बारे में।