2011-10-04 15:40:27

महान संत और पवित्रता तथा आनन्द से पूर्ण संत फ्रांसिस असीसी का स्मरण


डेनवर कोलो 4 अक्तूबर (सीएनए) काथलिक कलीसिया ने 4 अक्तूबर को संत फ्रांसिस असीसी का पर्व मनाया जो इटली के संरक्षक संत भी हैं। संत फ्रांसिस असीसी ने प्रभु ख्रीस्त के शब्दों का यथासंभव अनुसरण करने के निर्णय द्वारा कलीसिया के नवीनीकरण में अपना योगदान दिया। संत फ्रांसिस का जन्म 1180 में हुआ था। वे धनी व्यापारी पियेतरो बेरनारदोने और पिका की अनेक संतानों में एक थे। उन्हें आरम्भ में जियोवान्नी नाम मिला था लेकिन बाद में अपने पिता की चयन के अनुरूप वे फ्रांचेस्को या फ्रांसिस के नाम से विख्यात हुए।
धनी व्यापारी की संतान होने के कारण फ्रांसिस को धन सम्पत्ति का उपभोग करने और उच्च कुलीन जीवन जीने का अवसर मिला। वे अपने आकर्षक वस्त्रों तथा गीतों के लिए जाने जाते थे। आपने युवा काल में वे इताली नगर शहरों के मध्य युद्धों को देखते हुए महान सैन्य उपाधि प्राप्त करना चाहते थे लेकिन बाद में वे शांति निर्माताओं के संरक्षक बने। संघर्ष के दौरान ही वे कैद में रखे गये और इसी समय उन्होंने जीवन के बारे में गंभीरता से विचार करना शुरू किया तथा सपने में देखा कि उनकी सच्ची सेना इस दुनिया की नहीं है। वे सन 1205 में बीमारी के कारण असीसी लौटे तथा उन्होंने स्वैच्छिक निर्धनता का जीवन जीने पर विचार करना शुरू किया।
संत फ्रांसिस के जीवन को तीन प्रमुख घटनाओं ने बदल डाला। उन्होंने बीमारी के डर को दूर करने के लिए असीसी में एक कुष्ट रोगी के हाथ का चुम्बन किया। इसके बाद उन्होंने रोम की तीर्थयात्रा कर संत पेत्रुस की समाधि के पास अपना धन जमा कर दिया तथा एक भिखारी के साथ अपने वस्त्र की अदला बदली कर दी। इसके बाद वे अपने घर लौटे जहाँ उन्होंने सपने में देखा कि ख्रीस्त उन्हें दर्शन देकर अपने घर अर्थात् कलीसिया की मरम्मत करने के लिए बुला रहे हैं जो गिर रही है। फ्रांसिस ने अपने पिता के धन का उपयोग गिरजाघरों की मरम्मत के लिए करना शुरू किया लेकिन इसी कारण से जनता के सामने उनका अपने पिता से झगड़ा हुआ और उन्होंने वस्त्र सहित अपना सबकुछ त्याग दिया और ईश्वर को अपना पिता घोषित किया। उन्होंने सन 1208 में दिव्य प्रेरणा पायी और उनके नेतृत्व में निर्धनता का जीवन जीनेवाले फ्रांसिस्कन अभियान आरम्भ हुआ। इस प्रकार की जीवनशैली को संत पापा की स्वीकृति मिल गयी और फ्रांसिस के जीवनकाल के दौरान ही बड़ी संख्या में उनके अनुयायी हो गये।
ख्रीस्त का अनुसरण करते हुए फ्रांसिस प्रभु की पीड़ा में सहभागी हुए। 1224 के सितम्बर माह में चमत्कारिक रूप से उनके शरीर में ख्रीस्त के व्रणों के समान घाव हुए। उनका स्वास्थ्य अगले दो सालों में गिरता गया। दो दशक के मिशनरी प्रवचन और त्याग तपस्या के जीवन द्वारा वे जीवित बलिदान बन गये। संत फ्रांसिस का निधन 3 अक्तूबर 1226 को हुआ। उन्हें संत पापा ग्रेगोरी नवम ने सन 1228 को धन्य घोषित किया था।
संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने जनवरी 2010 में बुधवारीय आमदर्शन समारोह के समय इस संत फ्रांसिस असीसी को पवित्रता के असाधारण पुरूष, महान संत और आनन्द से भरा व्यक्ति कहते हुए स्मरण किया था जिन्होंने कलीसिया को सच्ची खुशी का रहस्य बताया तथा संत बनने और ईश्वर के निकट होना सिखाया था।








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