मुम्बई, 1 अक्तूबर, 2011 (एशियान्यूज़) “बिना वारंट के अरुण फरेरा की गिरफ़्तारी मानवाधिकारों
का हनन है।“
मुम्बई महाधर्मप्रांत के न्याय और शांति के लिये बने आयोग के अध्यक्ष
और अरुण के चाचा फादर ओल्विन डीसल्वा ने उक्त बातें उस समय कही जब पुलिस ने 27 सितंबर
को दलितों और आदिवासियों के अधिकारों से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा को नागपुर
जेल से रिहा होने के बाद गिरफ़्तार कर लिया।
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार जब
नक्सालाइट गतिविधियों के कथित आरोप में सन् 2007 से नागपुर कारावास में बन्द मानवाधिकार
कार्यकर्ता अरुण को महाराष्ट्र विशेष न्यायालय के आदेश पर रिहा किया गया तो उनके रिश्तेदारों
और बूढ़े माता-पिता के सामने से ही उनका अपहरण कर लिया गया।
जब अरुण के वकील
ने इसका विरोध किया तो उसे पीटा गया। उसके वकील ने तुरन्त कमीशनर को एक पत्र लिखा और
अरुण की गिरफ्तारी का कारण पूछा पर अभी तक उन्हें जवाब का इन्तज़ार है।
फादर
ऑल्विन के अनुसार दलितों और आदिवासियों के हितों की रक्षा के लिये अपने स्वर उँचा करने
वाले अरुण पर पहले से ही कई झूठे आरोप लगाये गये हैं। यह गिरफ्तारी भी उन्हीं झूठे आरोपों
का एक हिस्सा है।
प्रशांत जेस्विट सेन्टर फॉर ह्रूमन राइट्स जस्टिस एंड पीस क
निदेशक फादर सेड्रिक प्रकाश ने महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को एक पत्र लिखा है और माँग
की है कि अरुण फेरेरा को तुरन्त रिहा किया जाये।
उन्होंने कहा कि " प्रजातांत्रिक
मूल्यों और व्यक्ति की स्वतंत्रता पर आस्था रखनेवाले देश में के लिये यह घटना एक ‘काला
धब्बा’ है। जमीन और जंगल के अधिकारों के लिये लड़ रहे आदिवासियों और दलितों का अरुण ने
साथ दिया था
उनके लिये कार्य करते हुए उन्हें अमानुषिक यातनायें भी झेलनी पड़ी
थी पर बाबद में महाराष्ट्र की विशेष अदालत ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया था।
फादर प्रकाश ने कहा कि काथलिक कलीसिया सदा ग़रीबों, दलितों, शोषितों और समाज
में दरकिनार कर दिये लोगों का पक्ष लेती रही है। अरुण को न्याय मिलना चाहिये ताकि वह
एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में जीवन जी सके।