2011-09-22 19:41:05

स्वागत समारोह संत पापा का संदेश
बर्लिन, बेल्लेभू 22 सितंबर, 2011


बर्लिन, जर्मनी, 22 सितंबर, 2011 (सेदोक) बलसंघीय गणराज्य जर्मनी के राष्ट्रपति महोदय, देवियो, सज्जनों एवं मित्रो, बेल्लेवू कैसल में आपलोगों के द्वारा मेरा भव्य स्वागत मेरे लिये बड़े ही सम्मान की बात है। मैं राष्ट्रपति उल्फ के प्रति विशेष रूप से आभारी हूँ जिनके आमंत्रण पर मैं जर्मनी की यह तीसरी आधिकारिक यात्रा पर आया हूँ।

मैं संघीय सरकार के दोनों सदनों बुन्देस्ताग और बुन्देसरात के उपस्थित प्रतिनिधियों के प्रति भी कृतज्ञ हूँ जिनका यहाँ होना इस बात का संकेत है कि आप संत पापा को प्रेरित संत पीटर के उत्तराधिकारी के रूप में आदर देते हैं।

यद्यपि मेरी यात्रा आधिकारिक है जो वाटिकन और संघीय गणराज्य जर्मनी के आपसी रिश्तों को सुदृढ़ करेगी फिर भी जैसा कि अन्य राजनीतिज्ञ करते हैं, मेरी यात्रा का लक्ष्य राजनीतिक और आर्थिक नहीं है पर मैं चाहता हूँ कि अपने देश के लोगों से मिलूँ और उनसे ईश्वर के बारे में बातें करूँ।

इन दिनों लोगों में धर्म के प्रति उदासीनता देखी गयी है, जिसे वे सत्य के बारे में निर्णय लेने के मार्ग में एक बाधा रूप में देखते हैं और इसलिये उन बातों को प्राथमिकता देते हैं जो उपयोगिता से जुड़ी हो।

जो भी हो, हमारे सहअस्तित्व के लिये कोई एक आधार होना ज़रूरी है, नहीं तो कुछ लोग बिल्कुल व्यक्तिवादी जीवन जीने लगेंगे। सफल सामाजिक जीवन के लिये धर्म ही एक ऐसी नींव है। "जैसा कि धर्म को स्वतंत्रता की ज़रूरत है वैसा ही स्वतंत्रता को धर्म की।" यह वाक्य उस धर्माध्यक्ष और समाजसुधारक विल्हेल्म वोन केत्तलर की है जिसके जन्म की दोसौवीँ जयन्ती हम इसी वर्ष मना रहे हैं।

स्वतंत्रता को उच्च कोटि का संपर्क चाहिये। यह सत्य है कि कई मूल्यों को पूर्णतः कभी भी जोड़-तोड़ नहीं किया जा सकना ही स्वतंत्रता की गारंटी या आश्वासन है। मैं कहता हूँ कि जो व्यक्ति सत्य और भलाई के प्रति अपना दायित्व समझता है तुरन्त मेरी बातों का समर्थन करेगा। स्वतंत्रता का प्रगति भलाई के प्रति वफ़ादार रहने में ही है।

ऐसी भलाई पूरे मानव समुदाय के कल्याण के लिये ही है, इसलिये हमें चाहिये कि हम सदा अपने पड़ोसी के हित की सोचें। यह भी सही है कि बिना आपसी संबंध के स्वतंत्रता का उपयोग नहीं किया जा सकता है।

मानव सहअस्तित्व सहयोग के बिना स्वतंत्रता की कल्पना नहीं की जा सकती है। जो मैं दूसरों के हक मार कर पाता हूँ वह स्वतंत्रता नहीं है बल्कि यह एक ऐसा दोषपूर्ण रास्ता है जो पूर समुदाय के लिये हनिकारक है।

हम सचमुच एक स्वतंत्र व्यक्ति के रूप में अपना विकास कर सकते हैं जब हम दूसरों के कल्याण के लिये अपनी शक्ति का उपयोग करें। यह सिर्फ़ व्यक्तिगत बातों के लिये नहीं पर पूरे समाज के लिये लागू होता है। ‘मदद के सिद्धांत’ के आधार पर समाज को चाहिये कि वह छोटी संरचनाओं के विकास में मदद दे और उनकी देख-रेख करे ताकि वे अपने पैरों पर खड़े हो सकें।

अभी हम जिस बेल्लेवू कैसल के पास खड़े हैं वह संघीय गणराज्य जर्मनी की राजधानी की ह्रदयस्थली है तथा जर्मनी के इतिहास के साक्ष्य रूप में विजय स्तम्भ के निकट अवस्थित है। आज अतीत के काले पन्नों को भी पलट कर भी हम आने वाले जीवन के लिये प्रेरणा प्राप्त करते हैं।

संघीय गणराज्य जर्मनी ने आज जो कुछ हासिल किया है वह सब ईश्वर और एक-दूसरे के प्रति दायित्व से प्रेरित स्वतंत्रता की शक्ति के बदौलत ही संभव हुआ है। आज भी जर्मनी को चाहिये कि उसी उत्साह से कार्य करे जिसमें मानव का प्रत्येक पहलु शामिल हो ताकि मानव का अनवरत विकास हो सके।

आज के युग में विश्व को इसकी और अधिक ज़रूरत है जब दुनिया बेहतर भविष्य के निर्माण के लिये सांस्कृतिक नवीनीकरण और मौलिक मूल्यों को पुनः खोजने का प्रसास कर रही है। (कारितास इन वेरिताते - 21)

मेरा विश्वास है कि बर्लिन, एरफुर्त, एइक्सफेल्ड और फ्रेइबुर्ग का मेरा दौरा, इस दिशा में एक नम्र और महत्त्वपूर्ण योगदान सिद्ध होगा। ईश्वर आपलोगों को आशिष दे।
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