वाटिकन सिटी, 19 सितंबर, 2011(ज़ेनित) संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने राष्ट्रपति के आमंत्रण
पर जर्मनी की अपनी यात्रा के पूर्व एक टेलेविज़न संदेश में ‘ईश्वर को खोजने’ के बारे
में बताया।
संत पापा के संदेश को शनिवार 17 सितंबर को एआरडी के ज़रिये प्रसारित
किया गया जिसकी रिकॉर्डिंग कास्तेल गंदोल्फो में हुई थी।
संत पापा ने लोगों
से कहा कि वे वृहस्पतिवार 22 सितंबर से होने वाली चार दिवसीय जर्मनी यात्रा के लिये उत्साहित
हैं। उन्होंने कहा, " यह कोई धार्मिक तीर्थयात्रा या कोई ‘तमाशा’ नहीं है। इस यात्रा
का आदर्शवाक्य हैं " जहाँ ईश्वर वहाँ भविष्य " ।
उन्होंने कहा, " एरफुर्त जहाँ
लूथर ने अपनी जीवनयात्रा आरंभ की थी मैं एवानजेलिकल चर्च ऑफ जर्मनी के प्रतिनिधियों से
मुलाक़ात करुँगा । वहाँ हम एक साथ प्रार्थना करेंगे और ईश्वर के वचन को एक-साथ सुनेंगे
और विचारों का आदान-प्रदान करेंगे।"
" हम कोई सनसनीखेज़ घटना की आशा नहीं करते
हैं। यहाँ की सबसे बड़ी बात यह होगी कि हम एक साथ ईश्वर के वचन को सुनेंगे, चिन्तन कर
सकेंगे, प्रार्थना करेंगे और एक दूसरे के साथ आत्मीयता का अनुभव करेंगे और इसी से अंतरकलीसियाई
एकता दिखाई पड़ेगी।"
संत पापा ने कहा, " इस यात्रा से यह बात प्रकट होगी कि
वह ईश्वर जिसकी हमें सख़्त ज़रूरत है, जो कई बार अनुपस्थित-सा लगता है, बार-बार हमारे
बीच लौटता है।" पोप ने कहा, " शायद आप मुझसे पूछेंगे, क्या ईश्वर है, अगर वह है, तो क्या
उसे हमारी चिन्ता है और क्या हम उसके पास एक दिन पहुँचेंगे?
उन्होंने कहा, "
ईश्वर को हम उस तरह से नहीं छू सकते जैसा कि हम बर्तन या किसी अन्य वस्तु को छूते हैं।
ईश्वर को अनुभव करने की क्षमता प्रत्येक जन को दी गयी है जो हमारे अंतरतम में हैं। "
संत पापा ने कहा, " हम तीन तरीकों से ईश्वर को पा सकते हैं प्रकृति, पवित्र
धर्मग्रंथ और ऐसे लोगों के द्वारा जिन्हें ईश्वर का अनुभव प्राप्त हुआ है। "
"
हम ईश्वरीय गरिमा का अंतर्ज्ञान प्रकृति से प्राप्त कर सकते हैं। हम सृष्टि का उपयोग
तकनीकि द्वारा कर सकते हैं क्योंकि इसकी सृष्टि विवेकपूर्ण तरीके से की गयी है। विवेकपूर्ण
सृष्टि से हम इस बात को समझ सकते हैं कि इसे बनाने वाला कितना महान् है और इस तरह से
सृष्टि की सुन्दरता में सृष्टिकर्त्ता की महानता और सुन्दरता को अंदाजा लगा सकते हैं।"
धर्मग्रंथों के द्वारा हम जो ईश्वरीय वचन को सुनते हैं वह हमें अनन्त जीवन देता
है क्योंकि यह ईश्वर की ओर से आता है।
" हम ईश्वर को उन लोगों में देखते हैं
जिन्होंने ईश्वर का व्यक्तिगत अनुभव किया है। इस समय मैं संत पौल से लेकर संत असीसी
और मदर तेरेसा की तो याद कर ही रहा हूँ पर मैं उन आम लोगों के जीवन पर चिन्तन कर रहा
हूँ जिनसे हम बातें करते और उनकी बातों से हमें सत्य, ईमानदारी और आन्तरिक आनन्द का अनुभव
होता है, अर्थात् हम ईश्वर का अनुभव प्राप्त करते हैं।"
अन्त में संत पापा
ने लोगों को आमंत्रित करते हुए कहा कि वे " ईश्वर की ओर वापस आयें, उसे अनुभव करने का
प्रयास करें और ऐसा व्यक्ति बनें जिससे दुनिया को आशा प्राप्त हो तथा उस रोशनी प्राप्त
करें जो ईश्वर से आती है और हमे सच्चा जीवन जीने में मदद देती हो।