रोमः ख्रीस्तीयों के विरुद्ध हिंसा चिन्ता का विषय, महाधर्माध्यक्ष मामबेरती
रोम, 13 सितम्बर सन् 2011 (सेदोक): ख्रीस्तीयों के विरुद्ध हिंसा एवं भेदभाव पर 12 सितम्बर
को रोम में सम्पन्न एक विचार गोष्ठी में वाटिकन राज्य के विदेश सचिव महाधर्माध्यक्ष दोमिनीक
मामबेरती ने कहा कि ख्रीस्तीनुयायियों के विरुद्ध यूरोप एवं विश्व के अन्य क्षेत्रों
में व्याप्त घृणा एवं हिंसा चिन्ता का विषय है।
विचार गोष्ठी यूरोप में व्यवस्था
एवं सुरक्षा सम्बन्धी संगठन "ओशे" द्वारा आयोजित की गई थी। यूरोप, मध्य एशिया तथा उत्तरी
अमरीका के 56 राष्ट्र ओशे संगठन के सदस्य हैं।
विचार गोष्ठी में धार्मिक स्वतंत्रता
तथा घृणा जनित अपराधों पर ध्यान केन्द्रित किया गया। इस बात की ओर ध्यान आकर्षित कराया
गया कि विश्व के कई क्षेत्रों में ख्रीस्तीय धर्मानुयायियों के विरुद्ध घृणा भाव एवं
हिंसा जारी है।
अपने प्रभाषण में वाटिकन के विदेश सचिव महाधर्माध्यक्ष मामबेरती
ने कहा, "घृणा जनित अपराधों पर रोक लगाने के लिये धार्मिक स्वतंत्रता को बहाल किया जाना
अनिवार्य है।" सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें द्वारा विभिन्न देशों के राजनयिकों को नववर्ष
के उपलक्ष्य में दिये सन्देश के शब्दों को दुहराते हुए उन्होंने कहा कि धार्मिक स्वतंत्रता,
"मानवाधिकारों में सबसे अग्रणी है, सिर्फ इसलिये नहीं कि ऐतिहासिक रूप से उसे सबसे पहले
मान्यता मिली बल्कि इसलिये भी कि वह मानव के मूलूभूत आयाम का स्पर्श करती है, सृष्टिकर्त्ता
के साथ मानव के सम्बन्ध की प्रकाशना करती है।"
महाधर्माध्यक्ष मामबेरती ने
कहा कि इस सिद्धांन्त के आधार पर धार्मिक स्वतंत्रता को केवल आराधना अर्चना की स्वतंत्रता
तक सीमित नहीं किया जा सकता, हालांकि ये भी उसका महत्वपूर्ण अंग हैं। उन्होंने कहा कि
सभी के अधिकारों के प्रति सम्मान की यदि बात की जाये तो धार्मिक स्वतंत्रता के अन्तर्गत
प्रचार का अधिकार, शिक्षा प्रदान करने का अधिकार तथा सार्वजनिक जीवन में पूर्ण भागीदारी
का अधिकार भी शामिल है।