2011-09-13 18:18:46

कलीसियाई दस्तावेज़ - एक अध्ययन


‘नोस्तरा आयेताते’
पहला भाग
(‘इन आवर टाइम’ अर्थात् ‘हमारे समय में’)
28 अक्तूबर, 1965
अन्तरधार्मिक वार्ता एवं सद्बाव


30 अगस्त, 2011


सभी धर्मो का लक्ष्य एक है – ईश्वर तक पहुँचना, ईश्वर को प्राप्त करना या ईश्वर में एक हो जाना। ईश्वर को प्राप्त करना अर्थात् उस सत्य को प्राप्त करना जिससे मानव को सच्ची शांति मिले। विश्व के सभी धर्मों का दावा है कि उनके संस्थापक या गुरु के वचनों, विचारों, कर्मों उदाहरणों एवं उस पंथ की अच्छी परंपराओं का ईमानदारी से पालन करने से व्यक्ति को मुक्ति मिलेगी, व्यक्ति परमात्मा में एक हो जायेगा, व्यक्ति को पूर्ण संतुष्टि या सच्ची शांति प्राप्त हो जायेगी।

राम, बुद्ध, महावीर, मुहम्मद और ईसा मसीह सबों के द्वारा दिखाये गये धर्मों का आधार - दया, करुणा, क्षमा और अहिंसा की भावना ही है। इस सत्य को कदापि नकारा नहीं जा सकता है धर्म का प्रासाद सत्य, प्रेम और अहिंसा की नींव पर खड़ा होता है। महाकवि इकबाल ने ठीक ही कहा है कि " मज़हब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना।"

इस तथ्य के बावजूद धर्म के नाम पर होनेवाले संघर्षों, अत्याचारों और हिंसा के जो समाचार रोज़ अख़बारों में छपते रहते हैं निश्चय ही ‘धर्म’ शब्द कलंकित हुआ है।

धर्म की रक्षा के नाम पर कट्टर धर्मांधता या कहें धर्म के प्रति चरमपंथी विचारों ने न मालूम कितने निर्दोषों की जानें लीं हैं, न जाने कितने उपासना गृहों को अपवित्र किया गया है, कितनी पवित्र भूमि रक्त-रंजित हुई इसका कोई हिसाब नहीं, सब कुछ - बस भगवान के नाम पर, ज़िहाद के नाम पर, राम के नाम पर धर्मयुद्ध के नाम पर।

वैश्वीकरण के इस युग में दुनिया को जिस बुराई ने ग्रस लिया है उनमे साम्प्रदायिकता का नाम सबसे ऊपर होगा। साम्प्रदायिकता का अभिप्राय है किसी समप्रदाय या धार्मिक मतवाद के प्रति इतना विचल आग्रह कि यह असहिष्णुता को जन्म दे, अन्य धार्मिक मतों को सहन न करे, धर्म की रक्षा के नाम पर उठाये अदूरदर्शी कदमों एवं धर्म के दिव्य वचनों की गलत या त्रुटिपूर्ण व्याख्या कर इसका औचित्य साबित करने के लिये इस हद तक तैयार रहे कि बन पड़े तो दूसरे धर्मावलंबियों का मूलच्छेद करने से न चूके।

आज धर्म के नाम पर इतने अधर्म हुए कि की जान कर हैरानी होती है। आयरिस लेखक जोनाथान स्विफ़्ट ने एक बार कहा था " धर्म घृणा सिखाते हैं, धर्म धर्म क्यों नहीं कराते।"

साप्रदायिकता की इस महामारी को दूर करने के लिये कई उपाय हो सकते हैं। हमें धर्म के मूल रहस्य और लक्ष्य को समझना होगा हमें व्यापक मानव धर्म में विश्वास करना होगा हमें नई आध्यात्मकि दृष्टि को विकसित करनी होगी। हममें ‘सर्वधर्मसमभाव’ ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ और ‘सर्वाःजनाय हिताय’ की भावना को बढ़ावा देना होगा तब ही मानव की सही प्रगति और सच्चा कल्याण संभव हो पायेगा।

काथलिक कलीसिया ने वर्षो पहले इस बात को समझते हुए एक धर्म का दूसरे धर्म के साथ संबंध शांति स्थापना में व्यक्ति की भूमिका तथा विवादास्पद मामलों को सुलझाने के लिये विभिन्न दस्तावेज़ों में अनेक उपाय प्रस्तुत किये हैं। हम चाहते हैं कि वार्ता एवं सद्भाव को बढ़ावा देने के लिये काथलिक कलीसिया के उन दस्तावेज़ों को प्रस्तुत करे जिससे एक शांतिपूर्ण विश्व की स्थापना में धर्म का योगदान अहम हो।

आज हम प्रस्तुत कर रहे हैं अन्तरधार्मिक वार्ता या संबंध पर वाटिकन द्वितीय का एक दस्तावेज़ ‘नोसतरा अयेताते’ अर्थात् ‘हमारे युग में’। ‘नोस्तरा आयेताते’ वाटिकन द्वितीय महासभा का वह दस्तावेज़ है जिसे संत पापा पौल षष्टम् ने 28 अक्तूबर सन् 1965 में काथलिक कलीसिया के लिये घोषित किया। इसमें इस बात की चर्चा की गयी है कि काथलिक कलीसिया का गैर-काथलिक धर्मों के साथ क्या संबंध हो।

आज हम एक ऐसे युग में पहुँचे है जहाँ मानव एक दूसरे के बहुत करीब आ गया है। यह करीबी कई कारणों से बढ़ती जा रही है। ऐसे समय में काथलिक कलीसिया चाहती है कि वह उस संबंध के बारे में चिन्तन करे जो उसे ग़ैर काथलिक धर्मावलंबियों के साथ निभाना पड़ता है। काथलिक कलीसिया चाहती है कि वह विश्व में प्रेम और एकता का प्रचार-प्रसार करे। वह उन बातों पर बल देना चाहती है जो एक राष्ट्र को दूसरे राष्ट्र के करीब लाती है और उन सभी अच्छाइयों को जिससे मानव के बीच भ्रातृभाव बढ़े।

हम एक मानव समुदाय के सदस्य हैं जिसकी शुरुआत एक है क्योंकि ईश्वर ने पूरी मानव जाति के सृष्टिकर्त्ता हैं। ईश्वर ने मानव की सृष्टि की ताकि वह मानव जीवन समाप्त कर अपने लक्ष्य - ईश्वर तक पहुँच सके। उसकी महिमा, उसके गुण और उसकी मुक्ति की प्रकाशना सर्वव्यापी है। यह तब तक जारी रहेगा जब तक कि दुनिया के सब लोग उस पवित्र नगर में उसकी ज्योति में एक साथ विचरण करेंगे जहाँ ईश्वर की महिमा व्याप्त है।

दुनिया के लोग धर्मों से इस बात की आशा करते हैं कि मानव जीवन की उन गुत्थियों को वे सुलझायें जिन्हें आदि काल से उनके पुरखे समझने का प्रयास करते रहे हैं। मानव अब तब समझने का प्रयास करता रहा है कि आख़िर मानव क्या है? मानव होने का क्या अर्थ है? और उसके जीवन का क्या लक्ष्य है उसकी मंजिल क्या है? मानव इस बात को भी समझने का प्रयास करता रहा है कि अच्छाई क्या है और पाप करने का अर्थ क्या है? इतना ही नहीं मानव इस बात को भी समझने का प्रयास करता रहा है कि दुःख का क्या अर्थ है और इसका हमारे जीवन में क्या अभिप्राय है? कई बार लोगों ने इस बात पर भी चिन्तन करने का प्रयास किया है कि किस रास्ते से होकर व्यक्ति को पूर्ण शांति या सच्चे आनन्द की प्राप्ति हो सकती है? आख़िर मानव जीवन का रहस्य क्या है? जीवन और खुशी के साथ मानव यह भी जानने को व्याकुल रहता है कि मृत्यु, अंतिम न्याय क्या है और मृत्यु के बाद मानव का क्या होगा। कहाँ है हमारा उद्गम और क्या है हमारी अंतिम मंजिल?

ये सवाल मानव के लिये नये नहीं हैं। उसने प्राचीन काल से ही इस जटिल प्रश्न का जवाब ढूँढ़ने का प्रयास किया है। कई बार मानव ने इस बात को कुछ हद तक समझा कि एक छिपी हुई शक्ति है जो मानव जीवन के ईर्द-गिर्द घूमती है और विभिन्न घटनाओं के द्वारा अपनी उपस्थिति का अहसास कराती रहती है। ऐसे भी पल आये जब मानव ने इसकी पहचान एक दैवीय शक्ति के रूप में की तो कुछ लोगों ने इसे पिता ईश्वर के रूप में पहचाना। और इस अद्वितीय शक्ति की पहचान ने मानव के जीवन को धार्मिक बना दिया है।

दुनिया में व्याप्त एक दैवीय शक्ति की पहचान तो मानव ने कर ली पर समय बीतता जाता और मानव का विकास होता गया और मानव ने उन्हीं सवालों का जवाब नये तरीके से नये शब्दों से अभिव्यक्त करने का प्रयास करता रहा है। अगर हम हिन्दु धर्म की बात करें तो हम पाते हैं कि हिन्दु धर्म के विद्वानों ने ईश्वर के रहस्य पर चिन्तन किया और दार्शनिक जाँच की तब विभिन्न मिथकों या पुराण कथा तथा इस अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है। वे चाहते हैं कि मानव तपस्या मनन-चिन्तन और प्रेम तथा ईश्वर में आस्था रखते हुए दुनिया के दःख-तकलीफ़ों से मुक्ति प्राप्त करे। उधर बौद्ध धर्मियों के लिये यह दुनिया अस्थिर और क्षणभंगुर है। वे चाहते हैं कि भक्ति और विश्वास की भावना से ही मानव पूर्ण मुक्ति को प्राप्त कर सकता है। उनका यह भी मानना है कि मानव अपने अथक प्रयास से या दूसरों की मदद से सर्वोच्च ज्योति को प्राप्त कर सकता है।

इसी तरह अन्य धर्मावलंबी भी मानव के ह्रदय में उठ रहे तूफानों को शांत करने के लिये प्रयासरत हैं। सभी धर्म के लोग अपने स्तर से उन उपायों या रास्तों को बताते हैं जिनके द्वारा व्यक्ति इन सवालों का उत्तर पा सकता है। ये उपाय साधारणतः धार्मिक शिक्षा नियम या पवित्र रीति-रिवाजों के रूप में प्रस्तुत किये जाते हैं।

इस संबंध में काथलिक कलीसिया यह बताना चाहती है कि वह उन सब बातों को का सम्मान करती है जो सत्य और पवित्र है। इसके ठीक विपरीत वह उन सब उपायों एवं रास्तों का पूरा सम्मान करती है। हाँ कई बार काथलिक कलीसिया के विचार विभिन्न मुद्दों में अगल हो सकते हैं। पर वह सदा चाहती है कि सत्य के संबंध में उँजियाला मिले।

यह भी सच है कि काथलिक कलीसिया सदा इस बात की घोषणा करती है और करती रहेगी जैसा कि संत योहन के सुसमाचार के 14वें अध्याय के 6वें पद में लिखा हैं ‘ येसु मसीह ही मार्ग, सत्य और जीवन है’ जिसमें लोग धार्मिक जीवन की परिपूर्णता प्राप्त कर सकते हैं और जिनमें सबकुछ की परिपूर्णता निहित है।

इसीलिया कलीसिया सभी विश्वासियों को इस बात की प्रेरणा देती है कि वे दूसरे धर्म के अनुयायियों के साथ वार्ता और आपसी सहयोग का सहारा लेते और दूरदर्शिता और प्रेम का सहारा लेते हुए ख्रीस्तीय विश्वास और जीवन का साक्ष्य दे ताकि दूसरे आध्यात्मिक नैतिक सामाजिक तथा संस्कृति संबंधी अच्छी बातों और मूल्यों को पहचानें उसकी रक्षा करें और उसका विस्तार करें।

कलीसियाई दस्तावेज़ एक अध्ययन कार्यक्रम के अंतर्गत हमने जानकारी प्राप्त की ‘नोस्तरा आयेताते’ के पहले भाग को। अगले सप्ताह हम प्रस्तुत करेंगे इसका दूसरा एवं अंतिम भाग।








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