2011-09-08 16:25:55

पंचवर्षीय पारम्परिक मुलाकात की समाप्ति पर भारतीय धर्माध्यक्षों के लिए संत पापा का संदेश


कास्तेल गांदोल्फो 8 सितम्बर 2011 (सेदोक) मैसूर के धर्माध्यक्ष थोमस अंतोनी वज्जाहापल्ली और सिमोगा के धर्माध्यक्ष जेराल्ड इसहाक लोबो ने गुरूवार 8 सितम्बर को संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें के साथ पंचवर्षीय पारम्परिक मुलाकातें सम्पन्न कीं। तदोपरांत संत पापा ने पंचवर्षीय पारम्परिक मुलाकात सम्पन्न कर चुके मुम्बई, नागपुर, गोआ और दमन, गाँधीनगर तथा बंगलोर प्रांतों के 23 महाधर्माध्यक्षों और धर्माध्यक्षों को कास्तेल गांदोल्फो के प्रेरितिक निवास में स्थित कनसिस्टरी सभागार में सामूहिक रूप से सम्बोधित किया। उन्होंने कार्डिनल ग्रेशियस द्वारा भारतीय कलीसिया की ओर से कहे गये हार्दिक उदगारों के लिए धन्यवाद देते हुए भारत के सब पुरोहितों, धर्मसमाजियों और लोकधर्मियों का अभिवादन किया और सबके लिए अपनी प्रार्थना और सामीप्य का आश्वासन दिया।
संत पापा ने कहा कि भारत में कलीसिया की असंख्य संस्थाएं हैं जो पुरोहितों, धर्मसमाजियों और लोकधर्मी विश्वासियों की सेवा और उदारता द्वारा मानवजाति के लिए ईश्वर के प्रेम की अभिव्यक्तियाँ हैं। पल्लियों, स्कूलों, अनाथालयों, अस्पतालों, चिकित्सालयों के द्वारा कलीसिया न केवल काथलिकों के लिए लेकिन समाज के कल्याण में अनमोल योगदान देती है। विद्यालयों का विशेष स्थान है जो युवाओं के शिक्षण और प्रशिक्षण में आपके समर्पण के साक्षी हैं।
कलीसिया द्वारा संचालित असंख्य शिक्षण संस्थानों को देखते हुए संत पापा ने युवाओं के शिक्षण में कलीसिया के महत्व पर बल दिया ताकि वह विद्यार्थियों को भारतीय समाज में उन मूल्यों का साक्ष्य देने के लिए तैयार करे जो ईसाईयत में निहित हैं। उन्होंने कहा कि अधिक वैध और न्यायी समाज बनाने के लिए देश के युवा नागरिकों को तैयार करना भारत तथा सभी धर्मप्रांतों में सम्पूर्ण ख्रीस्तीय समुदाय के प्रयासों की विशिष्टता है। विद्यालयों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए वे सबका उत्साहवर्द्धन करते हैं ताकि ये वास्तव में काथलिक शिक्षा दें तथा समाज की रचना करने और आत्माओं की मुक्ति के लिए मूल्यों और सत्य को हस्तांतरित करने में सक्षम हों।

संत पापा ने कहा कि सत्य को शिष्टता लेकिन दृढ़तापूर्वक प्रस्तुत करने की क्षमता उपहार है जिसका पोषण किया जाना चाहिए विशेष कर उन लोगों के मध्य जो काथलिक संस्थानों में अध्यापन करते हैं तथा जिन्हें सेमिनरियनों को शिक्षित करने का प्रभार मिला है। जो लोग कलीसिया के नाम में अध्यापन करते हैं उनका दायित्व है कि कलीसिया की शिक्षा के सुसंगत ख्रीस्तीय परम्परा की समृद्धि को विद्यार्थियों को सौंपें जो आज की जरूरतों का जवाब देता है तथा विद्यार्थियों का भी अधिकार है कि कलीसिया की आध्यात्मिक और बौद्धिक विरासत को इसकी सम्पूर्णता में ग्रहण करें।








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