2011-09-07 13:31:33

बुधवारीय - आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा का संदेश
7 सिंतबर, 2011


रोम, 7सितंबर, 2011 (सेदोक, वीआर) करीब दो माह के अवकाश के बाद बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया।

मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनों, आज की धर्मशिक्षा माला में स्तोत्र 3 को लेकर प्रार्थना विषय पर मनन-चिन्तन करना जारी रखें। स्तोत्र 3 में स्तोत्र रचयिता ईश्वर से सहायता की याचना करता है और कहता है कि वह दुश्मनों से घिरा हुआ है।

परंपरागत रूप से इस स्तोत्र का रचयिता राजा दाउद को माना जाता है जो अपने उपद्रवी बेटे अबसलोम की सेना के भय के कारण भागता-फिरता है। अपने को चारों ओर से शत्रुओं से घिरा पाकर अपने जीवन रक्षा का प्रयास करता है।

ऐसे समय में वह बड़े ही विश्वास के साथ ईश्वर का नाम लेकर पुकारता है। वह कहता है कि ईश्वर की शक्ति ही उसे बैरियों के खतरे से बचा सकती है।

आज हमें प्रज्ञा ग्रंथ में वर्णित एक ईमानदार व्यक्ति के बारे में याद कराया जा रहा है जिसे बुरे व्यक्तियों के द्वारा लज्ज़ाजनक मृत्यु का दण्ड मिला है जो उसका उपहास करते हुए कहते हैं कि ईश्वर तुम्हें अवश्य ही बचाने आयेगा।

हम यहाँ पर अपना ध्यान कलवारी की ओर करें जहाँ राह चलने वाले लोग येसु की हँसी उड़ाते हुए कह रहे थे कि अगर जैसा तुमने दावा किया कि तू ईश्वर का पुत्र है तो ईश्वर तुम्हें बचा अवश्य ही लेंगे।

भाइयो- बहनों, हम इस बात को जानते हैं कि ईश्वर उन सबों की पुकार अवश्य ही सुनते हैं जिनका विश्वास गहरा हो। ईश्वर उनकी प्रार्थनाओं को पर्वत की ऊँचाई से सुनते हैं। अदृश्य भगवान अपने सामर्थ्य से हमारी प्रार्थनाओं का उत्तर देते हैं, हमारी ढाल बनते और हमें महिमान्वित करते हैं।

हालाँकि क्रूस पर टंगे मरते हुए येसु भी कलवारी पहाड़ में असहाय लगे पर विश्वास की आँखों से देखने से यह दुनिया की मुक्ति के लिये महिमा का पल था। यह वही क्षण था जब क्रूस को विजय मिली और येसु मसीह हमारे मुक्तिदाता महिमान्वित हुए।

इतना कह कर उन्होंने अपना संदेश समाप्त किया।

उन्होंने ब्रिटेन, आयरलैंड, डेनमार्क, अमेरिका, इंडोनेशिया के मिशनरी सिस्टर्स ऑफ होली स्पीरिट की धर्मबहनों, विश्व भर से रोम में एकत्रित उर्सुलाइन धर्मबहनों, तीर्थयात्रियों और उपस्थित लोगों को संत पीटर और पौल के मध्यस्थता से ईश्वर को सौंपते तथा खुशी और शांति की कामना करते हुए उन्हें अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।










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