हिन्दु, मुस्लिम और ईसाई महिलायें धार्मिक स्वतंत्रता के पक्ष में
काठमाण्डू,3 सितंबर, 2011( एशियान्यूज़) नेपाल के हिन्दुओं ने तीज त्योहार के दिन राजनीतिक
नेताओं से अपील की है कि वे धर्म और राज्य को अगल-अगल रखें और अल्पसंख्यकों के अधिकारों
की रक्षा करें।
तीज का त्योहार शिव भगवान के आदर में मनाया जाता है। इस अवसर
पर हिन्दु महिलाओं का साथ मुस्लिम और ईसाई महिलाओं ने भी दिया।
बिन्दा पुदेल
नामक हिन्दु संस्कृति विद्वान ने कहा कि " तीज का त्योहार केवल हिन्दुओं के द्वारा नहीं
मनाया जाना चाहिये। यह तो सभी धर्मों का त्योहार है।"
धर्मनिर्पेक्ष राज्य में
प्रत्येक धर्म के अनुयायियों को यह स्वतंत्रता होनी चाहिये कि वे त्योहारों को मनाये।
हम हिन्दु महिलाओं को चाहिये कि हम नेपाल की धर्मनिर्पेक्षता का गुणगान करें और अन्य
धर्मों का सम्मान करें।"
उन्होंने कहा, " जब सन् 2007 में नेपाल को एक धर्मनिर्पेक्ष
राज्य घोषित किया गया था तब अल्पसंख्यकों को यह स्वतंत्रता दी गयी थी कि वे अपने धर्मिक
क्रिया-कलापों का आयोजन स्वतंत्र रूप से करें। उसी समय से देश में एक परंपरा बनी कि
किसी भी धार्मिक नेता या अन्य धर्मावलंबियों को धर्म के पूजन समारोह के लिये आमंत्रित
किया जा सकता था। "
नेपाल में विभिन्न धर्मों के जो उत्सव लोकप्रिय हुए वे हैं
- ईसाइयों का ख्रीस्तमस, हिन्दुओं का दसाई, मुसलमानों का ईद उल फितर और बौद्धों का वैसाख।
उन्होंने
चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि देश की संसद में धर्म के संबंध में जिस संशोधन की चर्चा
हो रही है और अगर उसे पारित कर दिया गया तो ऐसा आपसी मिलन संभव नहीं हो पायेगा। बताया
जा रहा है कि संशोधन के मक़सद है ‘संभवित आपसी झगड़ों से बचना’।
वास्तविकता तो
यह है कि इससे हिन्दु धर्म की ताकत बढ़ जायेगी और दूसरे धर्मों को सीमित दायरे में
रहना पड़ेगा और धर्मान्तरण की प्रक्रिया भी सीमित हो जायेगी।
इस अवसर पर बोलते
हुए एक मुस्लिम महिला सीमा खातुन ने कहा, " आम आदमी सौहार्दपूर्ण सहअस्तित्व में विश्वास
करते हैं पर राजनीतिज्ञों के कारण विभिन्नतायें बैरता में बदल जातीं हैं। इससे नेपाल
और हिन्दुओं के बारे में एक गलत संदेश जा रहा है।"
मंदीरा शर्मा नामक एक हिन्दु
कार्यकर्ता का विचार है कि " देश को चाहिये कि वह धर्मनिर्पेक्ष रहे पर राजनीतिज्ञों
के कारण देश संकीर्णता और रूढ़ीवादिता की ओर अग्रसर हो रहा है। राजनीतिक नेता संशोधन
चाहते हैं आम आदमी नहीं।"
उधर दामोदर शर्मा नामक एक हिन्दु नेता का कहना है,
" कोई भी व्यक्ति बलात् धर्मपरिवर्तन के पक्ष में नहीं है और प्रत्येक व्यक्ति को इसकी
स्वतंत्रता हो कि वह अपनी मर्ज़ी से किसी भी धर्म को अपनाये।"