2011-08-31 20:35:58

बुधवरीय आमदर्शन समारोह में संत पापा का संदेश
कास्तेल गंदोल्फो
31 अगस्त, 2011


कास्तेल गंदोल्फो, 31 अगस्त, 2011 (सेदोक) बुधवारीय आमदर्शन समारोह में संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें ने रोम से 24 किलोमीटर दूर अवस्थित ग्रीष्म कालीन आवास कास्तेल गंदोल्फो के अपोस्तोलिक प्रासाद के एकत्रित हज़ारों तीर्थयात्रियों को विभिन्न भाषाओं में सम्बोधित किया। उन्होंने इताली भाषा में कहा,

मेरे अति प्रिय भाइयो एवं बहनों, आज की धर्मशिक्षामाला में प्रार्थना विषय पर मनन-चिन्तन करना जारी रखें। इन दिनों मैंने कई बार आप लोगों से कहा है कि विभिन्न कामों में व्यस्त रहने के बावजूद प्रत्येक ख्रीस्तीय को चाहिये कि वह ईश्वर के साथ प्रार्थना करने के लिये अपना समय निकाले। ईश्वर हमें अनेक अवसर प्रदान करते हैं ताकि हमें उन्हें याद कर सकें। आज मैं प्रार्थना के संबंध में बातें करते हुए उन बातों की याद करना चाहूँगा जिसके द्वारा हम ईश्वर के करीब आते हैं। ‘सुन्दरता का पथ’ जिसके बारे में मैंने आप से चर्चा की है। आज आइये हम इसके अर्थ को गहराई से समझें।

मेरा विश्वास है कि किसी मूर्ति या पेंटिंग को देखकर या कविता की पंक्ति या गीत को सुन कर आपने आनन्द की अनुभूति प्राप्त की है। अगर आपने इस प्रकार के आनन्द का अनुभव किया है तो यह स्पष्ट है कि आपने उस मूर्ति या कृति और कविता या गीत की पंक्तियों में न केवल किसी वस्तु को देखा पर इससे कहीं बढ़कर उस वस्तु की विशिष्टता का अनुभव किया है जो आपके ह्रदय को कुछ कहना चाहती है। यह आपको कोई विशेष संदेश देना चाहती है।

किसी भी प्रकार की कलाकारी, मानव की सर्जनात्मक शक्ति का फल है जो प्रत्यक्ष वस्तुओं के आकार-प्रकार, रंग और आवाज़ के रूप में उस वस्तु में छिपे गूढ़ अर्थ को व्यक्त करने का प्रयास कर रही है। कलाकृति में वो क्षमता है कि वह मानव को उस गहराई तक ले जाये जो उस वस्तु के गर्भ में निहित है। यह दिखाता है कि मानव के अन्दर एक प्यास है जिसके प्रेरित करने से वह अनन्त की तलाश करता रहता है। सच कहें तो यह उस दरवाज़े के समान है जो मानव को अनन्त. सत्य और सुन्दरता की ओर ले जाता है। किसी भी कला कृति में व्यक्ति के ह्रदय और मन को खोल कर उस ऊपर उठाने की क्षमता है।

चित्र कलायें हैं ईश्वरीय पथ की वास्तविक अभिव्यक्ति हैं। वस्तु की सुन्दरता सचमुच ईश्वर के साथ हमारे संबंध को मजबूत करता है। यह हममें हमारे विश्वास का कार्य है और विश्वास की अभिव्यक्ति भी ।

आइये हम एक उदारहण द्वारा इसे समझने का प्रयास करें। जब हम कोई गोथिक तरीके से बनाये गये कोई महागिरजाघर को देखते हैं और उसमें खोदे गये लकीरों को देखते हुए अपना सर ऊपर उठाते हैं। उन लकीरों को देखते हुए हम अनुभव करते हैं कि हमारा मन और दिल ईश्वर की ओर चला जाता है। इसके साथ-साथ हम अपने को ईश्वर के सामने पाते हैं। ईश्वर के सामने अपने को एक नगण्य प्राणी के समान महसूस करने लगते हैं।

फिर जब हम रोमन शैली के महागिरजाघरों में प्रवेश करते हैं तो हम स्वतः प्रार्थनामय हो जाते हैं या हमारा दिल चिन्तन करने लग जाता है। तब हम इस बात का गहराई से अनुभव करने लग जाते हैं कि गिरजाघरों के दीवार मात्र दीवार नहीं हैं पर इनमें कई पीढ़ियों के विश्वास समाहित हैं।

फिर जब आप कोई धार्मिक गीत सुनते हैं तो आपको लगता है कि आपके दिल के तार झनझना रहे हैं और हम ईश्वर की ओर लौटने को मजबूर हो जाते हैं।

मैं याद करता हूँ जब मैंने जोन सेबास्तियन बाक के संगीत को सुना था जिसका निर्देशन लियोनार्द बरनस्टेइन ने किया था। इस संगीत कार्यक्रम में एक पल ऐसा आया जब मैंने इसे अपनी तर्क शक्ति से नहीं पर अपने ह्रदय से समझने लगा। इतना ही नहीं इस गीत के द्वारा मैंने इसके रचयिता के विश्वास को पहचान पाया। और तब मैं ईश्वर को धन्यवाद देने और मेरी बगल मे मोनाको के लुथरन धर्माध्यक्ष को अपनी बगल में पाया। मैंने उससे तुरन्त कहा सच्चे विश्वास में जो शक्ति है जो ईश्वरीय उपस्थिति का अनुभव कराती है और हम ईश्वर की महिमा करने लग जाते हैं। मार्क चागल ने एक बार कहा था कि चित्रकारों ने वर्षों से अपने चित्रकारी के ब्रश को बाइबल में डुबोया है। उधर फ्रांसीसी कवि, नाटककार और राजनीतिज्ञ पौल क्लाउडेल ने सन् 1886 ईस्वी में पारिस के नोतरे डेम महागिरजाघर में क्रिसमस के अवसर पर गाये जा रहे ‘मगनीफिकात’ को सुन कर ईश्वरीय उपस्थिति का अनुभव किया था।

प्यारे भाइयो एवं बहनों आज मैं आपलोगों को आमंत्रित करता हूँ ताकि आप इस महत्त्वपूर्ण ‘सुन्दरता के पथ’ जरिये अपना रिश्ता ईश्वर के साथ मजबूत करें। मैं आप लोगों से यह भी कहना चाहता हूँ कि आप इन कलाकृतियों को सुरक्षित रखें।

इन ऐतिहासिक एवं कलाओं से पूर्ण स्थानों के दर्शन करने से सांस्कृतिक रूप से तो हम लाभान्वित होते ही हैं आपका संबंध ईश्वर से भी सुदृढ़ होता है और यह एक कृपा का समय बन जाता है। आज मैं स्त्रोत्र रचयिता के समान पिता ईश्वर को एक बात बताना चाहता हूँ कि ईश्वर के घर में जीवन बिताना कितना आनन्दादायक होता। मैं अपना पूरा जीवन उसकी मंदिर की सुन्दरता के अवलोकन में बिता दूँगा। मैं विश्वास करता हूँ ईश्वर हमें इस बात के लिये मदद दें कि हम प्रकृति और कलाओं की सुन्दरता से प्रकाश पायें और दूसरों के लिये प्रकाश बन सकें।

इतना कहकर संत पापा ने अपना संदेश समाप्त किया।

उन्होंने हज़ारों तीर्थयात्रियों तथा उपस्थित लोगों को प्रभु की कृपा और शांति की कामना करते हुए अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।











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