2011-08-29 14:41:00

देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व संत पापा द्वारा दिया गया संदेश


कास्तेल गोंदोल्फो रोम 29 अगस्त 2011 (सेदोक, जेनित) संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने रविवार 28 अगस्त को कास्तेल गांदोल्फो स्थित प्रेरितिक प्रासाद के भीतरी प्रांगण में देश विदेश से आये हजारों तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के साथ देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया। उन्होंने रविवारीय परम्परा के अनुसार देवदूत संदेश प्रार्थना के पाठ से पूर्व इताली भाषा में तीर्थयात्रियों को सम्बोधित करते हुए कहा-
अतिप्रिय भाईयो और बहनो,
आज के सुसमाचार पाठ में येसु अपने शिष्यों को समझाते हैं कि उन्हें येरूसालेम जाना होगा, नेताओं, महायाजकों और शास्त्रियों की ओर से बहुत दुःख उठाना, मार डाला जाना और तीसरे दिन जी उठना होगा। ऐसा प्रतीत होता है कि शिष्यों के दिल में हर चीज उलट पलट हो गयी है। यह कैसे संभव है कि ख्रीस्त, जीवित ईश्वर के पुत्र मरने तक दुःख उठायेंगे।

प्रेरित पेत्रुस फटकारने लगता है, वह इसे स्वीकार नहीं करता है इसलिए वह उनसे कहता है- प्रभु, यह आप पर कभी नहीं बीतेगी। जो प्रत्यक्ष प्रतीत होता है वह है पिता ईश्वर की प्रेममय योजना के मध्य भिन्नता, जो कि उस हद तक जाती है कि एकमात्र पुत्र का उपहार मानवजाति को बचाने के लिए क्रूस पर एकमात्र पुत्र का उपहार, और उम्मीदें, आकांक्षाएं, शिष्यों की योजनाएँ।

यह वाद विवाद आज भी होता है- जब एक व्यक्ति के जीवन की परिपूर्णता की दिशा केवल सामाजिक सफलता, शारीरिक और आर्थिक कल्याण की ओरर निर्देशित है तब एक व्यक्ति ईश्वर के अनुसार नहीं लेकिन मनुष्य के अनुसार सोचता है। संसार के अनुसार सोचने का अर्थ है कि ईश्वर को दरकिनार करना, उनकी प्रेममय योजना को स्वीकार नहीं करना, उनकी बुद्धिमतापूर्ण इच्छा को पूरा होने देने में बाधा खड़ी करना। येसु इसी कारण से पेत्रुस को फटकारते हुए कहते हैं- हट जाओ शैतान, तुम मेरे रास्ते में बाधा बन रहे हो।

प्रभु दिखाते हैं कि शिष्य बनने का मार्ग उनका अनुसरण करना है, जो क्रूसित हुए। तीनों सुसमाचारों में तथापि वे इसकी व्याख्या करते हैं कि यह क्रूस का चिह्न है। जैसा कि यह मार्ग स्वयं को खोना है यह मनुष्य के लिए जरूरी है और इसके बिना उसके लिए स्वयं को पा सकना संभव नहीं है।

येसु का यह निमंत्रण जैसा कि शिष्यों के लिए था यह हमारे लिए भी है। जो मेरा अनुसरण करना चाहता है वह आत्मत्याग करे और अपना क्रूस उठा कर मेरे पीछे हो ले। एक ईसाई येसु ख्रीस्त का अनुसरण करता है जब वह अपने क्रूस को प्रेम से ग्रहण करता है और यह विश्व के सामने पराजय है तथा जीवन को खोना प्रतीत होता है। लेकिन एक ईसाई जानता है कि वह क्रूस अकेले नहीं लेकिन येसु के साथ ढोता हैं। प्रभु सेवक पौल षष्टम लिखते हैं- ख्रीस्त रहस्यमय तरीके से स्वयं क्रूस पर मृत्यु को स्वीकार करते हैं ताकि मानव के हृदय से स्वयं में पर्याप्त होने के पाप को मिटा सकें तथा पिता ईश्वर के प्रति बेटे की पूर्ण आज्ञाकारिता को प्रदर्शित कर सकें।

येसु स्वेच्छापूर्वक क्रूस को स्वीकार करते हुए सब मनुष्यों के क्रूस को ढोते हैं तथा सम्पूर्ण मानवजाति की मुक्ति का स्रोत बनते हैं। अलेक्जेन्ड्रिया के संत सिरील कहते हैं- विजयी क्रूस ने उसे आलोकित कर दिया है जो अज्ञानता के द्वारा अंधा बना दिया गया था, उसे मुक्त कर दिया है जो पाप का कैदी बन गया था, उसने सम्पूर्ण मानवजाति के लिए मुक्ति लाया है।

हम हमारी प्रार्थना को कुँवारी माता मरिया तथा संत अगुस्टीन के सिपुर्द करते हैं जिनका आज हम स्मरण कर रहे हैं ताकि हम में से प्रत्येक जन प्रभु का अनुसरण करने में समर्थ हो सकें और दिव्य कृपा को स्वयं में पूर्ण बदलाव लाने की अनुमति प्रदान करें। हमारी सोच-विचार के तौर तरीके का नवीनीकरण करें ताकि हम जान जायेंगे कि ईश्वर क्या चाहता है और उसकी दृष्टि में क्या भला, सुग्राह्य तथा सर्वोत्तम है।

इतना कहने के बाद संत पापा ने देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया और सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।







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