मैडरिडः ईश्वर में धुँधली पड़ती आस्था पर सन्त पापा ने व्यक्त की चिन्ता
मैडरिड, 20 अगस्त सन् 2011 (सेदोक): सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने चिन्ता जताई है कि
ईश्वर विषयक बातों पर आधुनिक समाज "स्मृति लोप" से ग्रस्त हो गया है।
स्पेन में
अपनी यात्रा के दूसरे दिन शुक्रवार को एल एसकोरियाल मठ में धर्मबहनों को उपदेश देते हुए
सन्त पापा ने ईश्वर में धुँधली पड़ती आस्था पर गहन चिन्ता व्यक्त की।
ग़ौरतलब
है कि कुछ समय पूर्व विश्वस्त काथलिक देश स्पेन में, फासीवादी तानाशाह फ्राँसिसको फ्राँको
के पतन के बाद से, स्पानी समाज पर काथलिक कलीसिया की पकड़ नाटकीय ढंग से कमज़ोर हुई है।
सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें विश्व युवा दिवस के समारोहों का नेतृत्व करने हेतु
इस समय स्पेन में हैं। अधिकांश पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों में धर्म के प्रति नित्य बढ़ती
उदासीनता की सन्त पापा ने चेतावनी दी।
विश्व युवा दिवस के महत्व पर उन्होंने
कहा, "आज, जब हम ईश्वर पर लगे एक प्रकार के ग्रहण, एक प्रकार के स्मृति लोप देख रहे हैं,
जिसमें हालांकि ख्रीस्तीय धर्म का पूर्णतया बहिष्कार नहीं किया जाता तथापि हमारे विश्वास
के समृद्ध कोष से इनकार किया जाता है जिसमें हमारी अपनी गहन अस्मिता के गुम हो जाने का
ख़तरा है, तब इस प्रकार के सम्मेलन और अधिक महत्वपूर्ण हो उठते हैं।"
काथलिक कलीसिया
के परमाध्यक्ष रूप में अपनी नियुक्ति के प्रथम क्षण से ही बेनेडिक्ट 16 वें ने, स्पेन
तथा अन्य पश्चिमी देशों में, ख्रीस्तीय धर्म के पुनर्जागरण को अपना विशिष्ट मिशन बना
लिया है। चूँकि सन्त पापा स्पेन की तीन यात्राएं कर चुके हैं, ऐसा समझा जा रहा है कि
यूरोप को उसकी ख्रीस्तीय धरोहर का स्मरण कराने तथा दैनिक जीवन में ईश्वर के महत्व की
प्रकाशना के लिये काथलिक कलीसिया के परमाध्यक्ष बेनेडिक्ट 16 वें ने स्पेन को ही अपनी
रणभूमि मान लिया है। यूरोप के अन्य देशों की तरह स्पेन में भी, विगत दशकों में, काथलिक
कलीसिया अपने प्रभाव को कम होता देख रही है। महिलाओं के प्रति उसकी स्थिति, समानता, समलिंगकामियों
के अधिकार और गर्भपात ने शिक्षित एवं सुविज्ञ मध्यम वर्ग के लोगों को कलीसिया से अलग
कर दिया है। यह स्वीकार करना पड़ता है कि कुछ ग़लतियाँ सन् 1936 से 1939 ई. तक स्पेन
के गृहयुद्ध के दौरान भी हुई जब काथलिक कलीसिया ने तानाशाह फ्राँको का साथ दिया था। सन्
1978 में फ्राँको के पतन तक कलीसिया उसकी सरकार के करीब रही थी किन्तु बाद में सम्बन्धों
में खटास आ गई। युद्ध की समाप्ति पर फ्राँको ने एल एसकोरियाल में "पराजितों की घाटी"
नाम से विख्यात एक स्थल पर अपने लिये एक विशाल स्मारक भी बनवाया लिया था। शुक्रवार, 19
अगस्त को, हालांकि सन्त पापा एल एसकोरियाल में थे किन्तु इस स्मारक की उन्होंने भेंट
नहीं की। अधिकांश स्पानी लोगों के लिये यह स्मारक युद्ध और उसके बाद के उत्पीड़न काल
का एक दुखद स्मारक है। ज़ापातेरो की वर्तमान सरकार इस स्मारक को पुनर्मिलन के स्मारक
रूप में प्रतिष्ठापित करना चाहती है तथा इस सिलसिले में उसने स्पानी काथलिक कलीसिया से
भी समर्थन मांगा है। प्राप्त समाचारों के अनुसार शुक्रवार को सन्त पापा बेनेडिक्ट 16
वें के साथ औपचारिक मुलाकात के अवसर पर ज़ापातेरो ने इस समर्थन की पुनः मांग की थी।
वाटिकन के प्रवक्ता फादर फेदरीको लोमबारदी ने इस बात की पुष्टि की कि वाटिकन राज्य सचिव
कार्डिनल तारचिसियो बेरतोने के साथ बातचीत के समय स्पानी सरकार द्वारा उक्त प्रस्ताव
रखा गया था किन्तु वाटिकन ने इस पर अब तक कोई प्रतिक्रिया नहीं दर्शाई है।