क्रूस मार्ग यात्रा की प्रार्थना के बाद संत पापा का सम्बोधन
मैड्रिड स्पेन 20 अगस्त 2011 (सेदोक) मैड्रिड के प्लाज़ा दे सिबेलेस में 19 अगस्त को
आयोजित क्रूस मार्ग यात्रा की प्रार्थनाओं पर मनन चिंतन करने के बाद युवाओं को सम्बोधित
करते हुए संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने कहा- दुःखभोग और मृत्यु के पथ में येसु का अनुसरण
करते हुए हमने क्रूस मार्ग की प्रार्थना का समारोह गहन भक्तिभाव में सम्पन्न किया। लिटल
सिस्टर्स औफ द क्रोस की धर्मबहनों द्वारा तैयार टिप्पणियाँ जो निर्धनों और जरूरतमंदों
की सेवा करती हैं उन्होंने हमें येसु के महिमामय क्रूस के रहस्यों पर प्रवेश करने में
सहायता की है जहाँ येसु की प्रज्ञा पायी जाती है जो संसार का तथा उनलोगों का न्याय करते
हैं जो स्वयं को बुद्धिमान मानते हं। कलवारी की इस यात्रा में हमें चिंतन करने में सहायता
मिली है स्पेन के विभिन्न धर्मप्रांतों की धार्मिक विरासतों से मिली विस्मयकारी प्रतीकों
से। इन प्रतीकों में विश्वास और कला का संगम इस तरह हुआ है कि ये हमारे दिल में प्रवेश
कर हमें मनपरिवर्तन करने के लिए आह्वान करते हैं। जब विश्वास की दृष्टि शुद्ध और यथार्थ
है, सुन्दरता स्वयं को इनकी सेवा के लिए प्रस्तुत करती तथा हमारी मुक्ति के रहस्य को
इतनी अच्छी तरह से प्रस्तुत करने में समर्थ होती है कि यह मार्मिक रूप से प्रभावित करता
एवं हमारे दिलों का पूर्ण परिवर्तन कर देता है जैसा कि येसु की संत तेरेसा ने स्वयं अनुभव
किया था जब वह घायल येसु की छवि पर मनन चिंतन कर रही थीं।
संत पापा ने कहा जैसा
कि हम येसु के साथ कलवारी पर्वत पर उनके बलिदान के स्थल की ओर बढ़ रहे हैं संत पौलुस
के शब्द हमारे मन में आते हैं- ख्रीस्त ने मुझे प्यार किया और मेरे लिए स्वयं को दे दिया।
स प्रकार के निस्वार्थ प्रेम के सामने हम स्वयं को कृतज्ञता और आश्चर्य से भरे पूछते
हुए पाते हैं- हम उनके लिए क्या कर सकते हैं ? हम उन्हें क्या प्रत्युत्तर दें ? संत
योहन पहले पत्र में सार रूप में लिखते हैं- हम प्रेम का मर्म इसी से पहचान गये कि ईसा
ने हमारे लिए अपना जीवन अर्पित किया और हमें भी अपने भाईयों के लिए अपना जीवन अर्पित
करना चाहिए।
संत पापा ने कहा ख्रीस्त का दुःखभोग हमसे आग्रह करता है कि हम अपने
कंधे पर संसार की पीड़ा को लें, इस सुनिश्चित भाव में कि ईश्वर, मनुष्य और उसकी कठिनाईयों
से बहुत दूर नहीं हैं। वे हममें से एक बन गये ताकि वास्तव में मनुष्य के साथ पीड़ा झेलें।
इसलिए सब मानवीय पीड़ाओं में हम उनके साथ संयुक्त हैं जो अनुभव करते हैं और हमारे साथ
उस पीड़ा को ढोते हैं। वे सब पीड़ा में उपस्थित हैं। ईश्वर की सहानुभूतिपूर्ण प्रेम की
सांत्वना है और इसीलिए आशा का तारा उदित होता है।
संत पापा ने युवाओं से कहा
कि ख्रीस्त का प्रेम आपके आनन्द को बढ़ाये तथा उत्साहित करे ताकि आप उनकी खोज में जायें
जो आपसे कम भाग्यशाली हैं। आप अन्यों के साथ अपने जीवन को बाँटने के विचार के प्रति खुले
हैं इसलिए मानव पीड़ा के सामने अपने चेहरे को दूसरी और करते हुए पार नहीं हों क्योंकि
यहीं इसी परिस्थिति में ईश्वर उम्मीद करते हैं कि आप अपना सर्वोत्तम दें, प्रेम और सहानुभूति
दिखाने की आपकी क्षमता का प्रदर्शन करें। पीड़ा के विभिन्न रूपों ने इस क्रूस-मार्ग प्रार्थना
यात्रा के दौरान हमारी आँखों के सामने यह खोला है कि प्रभु हमें बुला रहे हैं कि हम अपने
जीवन को उनके पदचिह्नों पर चलते हुए अर्पित करें तथा उनकी सांत्वना और मुक्ति के चिह्न
बनें। दूसरों के साथ और दूसरों के लिए पीड़ा सहना, न्याय और सत्य के लिए कष्ट उठाना,
प्रेम की खातिर पीड़ा सहना और ऐसा व्यक्ति बनना जो वास्तव में प्यार करता है- ये मानवता
के बुनियादी कारक हैं और इनका परित्याग करने से यह मानव को ही नष्ट कर देगा। हम उत्साहपूर्वक
इन शिक्षाओं का स्वागत कर दैनिक अभ्यास करें।
संत पापा ने कहा कि हम ख्रीस्त
की ओर देखें जो क्रूस की कड़ी लकड़ी पर टँगे हैं और उनसे कहें कि हमें क्रूस की रहस्यमयी
प्रज्ञा सिखायें जिसके द्वारा मनुष्य जीता है। क्रूस असफलता का चिह्न नहीं है लेकिन प्रेम
में आत्मदान की अभिव्यक्ति है जो एक व्यक्ति के सर्वोच्च बलिदान तक जाता है। पिता ईश्वर
अपने क्रूसित पुत्र के आलिंगन द्वारा हमारे लिए इस प्रेम को दिखाना चाहते थे। प्रेम की
खातिर क्रूसित हुए। क्रूस अपने स्वरूप और अर्थ के द्वारा मनुष्यों के लिए पिता और पुत्र
दोनों के प्रेम का प्रतिनिधित्व करता है। यहाँ हम सर्वोच्च प्रेम के प्रतीक को पहचानते
हैं जो हमें प्रेम करना सिखाता है। यही सुसमाचार है जो दुनिया को आशा प्रदान करता है।
हम कुँवारी माता मरिया की ओर अपनी दृष्टि करें जो हमें कलवारी पर हमारी माता बनने के
लिए दी गयीं। हम उनसे कहें कि जीवन पथ पर अपनी ममतामयी संरक्षण में हमें धारण करें विशिष्ट
रूप से तब जब हम पीड़ा के अंधकार से गुजर रहे हैं ताकि जैसे वे क्रूस के तले दृढ़ रहीं
हम भी सुदृढ़ रहने में समर्थ हों।