देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व संत पापा द्वारा दिया गया संदेश
कास्तेल गोंदोल्फो रोम 8 अगस्त 2011 (सेदोक, एशिया समाचार) संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें
ने रविवार 7 अगस्त को कास्तेल गांदोल्फो स्थित प्रेरितिक प्रासाद के भीतरी प्रांगण में
देश विदेश से आये लगभग 3 हजार तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के साथ देवदूत संदेश प्रार्थना
का पाठ किया। उन्होंने रविवारीय परम्परा के अनुसार देवदूत संदेश प्रार्थना के पाठ से
पूर्व इताली भाषा में तीर्थयात्रियों को सम्बोधित करते हुए कहा- अतिप्रिय भाईयो और
बहनो, इस रविवार के सुसमाचार पाठ में हम येसु का साक्षात्कार करते हैं जो लोगों
को विदा कर एकान्त में प्रार्थना करने के लिए पहाड़ी पर चढे और उन्होंने पूरी रात प्रार्थना
में व्यतीत किया। प्रभु लोगों और शिष्यों से परे पिता ईश्वर के साथ अपनी अंतरंगता तथा
संसार के कोलाहल से हटकर शांत चित्त होकर प्रार्थना करने की जरूरत को दिखाते हैं। उनके
इस कदम को लोगों के प्रति आदर की कमी या शिष्यों को अकेला छोड़ना के रूप में नहीं देखा
जाना चाहिए। वस्तुतः संत मत्ती हमें बताते हैं- ईसा ने शिष्यों को बाध्य किया कि वे नाव
पर चढ़कर उन से पहले उस पार चले जायें, इतने में वे स्वयं लोगों को विदा कर देंगे और
फिर उनसे मिलेंगे. सन्धया होने पर ईसा अकेले थे। नाव उस समय तट से दूर जा चुकी थी वह
लहरों से डगमगा रही थी क्योंकि वायु प्रतिकूल थी। और यहाँ रात के चौथे पहर में येसु
समुद्र पर चलते हुए शिष्यों की ओर आये। शिष्यों ने उन्हें समुद्र् पर चलते हुए देखा वे
घबरा गये और यह कहते हुए यह कोई प्रेत है डर के मारे चिल्ला उठे। येसु ने उनसे कहा- ढारस
रखो, मैं ही हूँ डरो मत। इस प्रसंग की महान सार्थकता को कलीसियाई धर्माचार्यों ने
समझा। समुद्र प्रतीक है वर्तमान जीवन और प्रत्यक्ष संसार की अस्थिरता का। तूफान प्रतीक
है उन अनेक समस्याओं का जो मानव को प्रताड़ित करती हैं। नाव, प्रतीक है कलीसिया का जिसकी
नींव ख्रीस्त हैं तथा जिसका नेतृत्व प्रेरितों द्वारा किया जा रहा है। येसु शिष्यों को
सिखाना चाहते हैं कि वे जीवन की प्रतिकूलता का सामना साहसपूर्वक करें। ईश्वर पर भरोसा
रखें, उन पर जिन्होंने नबी एलियाह के लिए होरेब पर्वत पर मन्द समीर की सरसराहट में स्वयं
को प्रकट किया था।
तूफान को शांत करने के प्रसंग के साथ पेत्रुस का यह वृत्तांत
जारी रहता है। प्रभु के लिए अपने प्रेम के अतिरेक में उन्होंने कहा- प्रभु, यदि आप ही
हैं तो मुझे पानी पर अपने पास आने की आज्ञा दीजिए। किन्तु वह प्रचण्ड वायु देख कर डर
गया और जब डूबने लगा तो वह चिल्ला उठा- प्रभु मुझे बचाइए।
संत अगुस्टीन, प्रेरित
पेत्रुस के इस प्रसंग पर चिंतन करते हुए अपनी टिप्पणी में कहते हैं- प्रभु समीप हैं और
अपना हाथ बढ़ाकर हमारे हाथ को थाम लेते हैं। हम अपनी शक्ति से नहीं उठ सकते हैं। हम अपनी
ओर बढ़ रहे उनके हाथ को थाम लें। वे यह कथन न केवल पेत्रुस के लिए लेकिन हमारे लिए भी
कहते हैं।
पेत्रुस अपनी शक्ति से पानी पर नहीं चलते हैं लेकिन दिव्य शक्ति के
बल पर जिसपर वे विश्वास करते हैं। जब उस पर संदेह हावी हो गया, जब उसने येसु को देखना
बंद कर दिया, जब वह प्रचण्ड वायु देखकर डर गया, जब वह प्रभु के शब्दों पर पूर्ण रूप
से भरोसा नहीं करने लगा तो वह उनसे दूर होने लगा और डूबने लगा। महान चिंतक रोमानो
गुआरदिनी लिखते हैं कि प्रभु सदैव हमारे समीप है क्योंकि वे हमारे अस्तित्व के मूल हैं।
तथापि, हमें ईश्वर के साथ हमारे संबंध की, दूरी और समीपता के दो खंभों के मध्य जाँच करनी
चाहिए। प्रिय मित्रो, नबी एलियाह के अनुभव, जिन्होंने उसके सामने से प्रभु केआगे
बढ़ने को सुना, प्रेरित पेत्रुस के विश्वास और मेहनत, प्रभु हमें समझाते हैं कि हम उन्हें
पुकारें या खोंजें इससे पहले ही प्रभु स्वयं हमारे पास आते हैं, स्वर्ग को नीचे लाते
हैं और अपना हाथ बढ़ाते हैं और हमें अपनी ऊँचाई तक उठाते हैं। वे हमारे लिए प्रतीक्षा
करते हैं कि हम उनपर पूरी तरह भरोसा करें। हम कुँवारी माता मरियम का आह्वान करें
जो ईश्वर पर पूर्ण भरोसा का उदाहरण हैं। बहुत सारी चिंताएँ समस्याएँ और कठिनाईयाँ हमारे
जीवन रूपी समुद्र को बाधित करती हैं, इनके मध्य भी प्रभु के आश्वासन भरे शब्दों को हम
सुने- ढारस रखो, मैं ही हूँ, डरो मत, ताकि हमारे हृदय में उनके प्रति हमारा विश्वास बढ़े।
इतना कहने के बाद संत पापा ने देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया और सबको अपना प्रेरितिक
आशीर्वाद प्रदान किया।