2011-07-18 13:56:51

देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ करने से पूर्व संत पापा द्वारा दिया गया संदेश


कास्तेल गांदोल्फो, रोम 17 जुलाई 2011 (ज़ेनित) संत पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने रविवार 17 जुलाई को कास्तेल गांदोल्फो स्थित प्रेरितिक प्रासाद के भीतरी प्रांगण में देश विदेश से आये हजारों तीर्थयात्रियों और पर्यटकों के साथ देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया। उन्होंने रविवारीय परम्परा के अनुसार देवदूत संदेश प्रार्थना के पाठ से पूर्व इताली भाषा में तीर्थयात्रियों को सम्बोधित करते हुए कहाः

अतिप्रिय भाईयो और बहनो,

सुसमाचार के दृष्टान्त संक्षिप्त वर्णन हैं जिनका उपयोग येसु स्वर्ग के राज्य के रहस्यों की घोषणा करने के लिए करते हैं। प्रभु दैनिक जीवन की परिस्थितियों और प्रतीकों का प्रयोग करते हुए सबकुछ के यथार्थ नींव की ओर इंगित करना चाहते हैं- वे हमें दिखाते हैं.....ईश्वर जो कार्य करते हैं, जो हमारे जीवन में प्रवेश करते हैं और जो हमें अपने हाथ से ले चलना चाहते हैं।

दिव्य गुरु इन चिंतनों के साथ हमें आमंत्रित करते हैं कि हम सबसे पहले पिता ईश्वर को पहला स्थान देना पहचानें- क्योंकि वे जहाँ नहीं हैं वहाँ अच्छा नहीं हो सकता है। वे सबकुछ के निर्णायक प्राथमिकता हैं। स्वर्ग के राज्य का अर्थ वस्तुतः ईश्वर की प्रभुता है और इसका अर्थ है कि हम उनकी इच्छा को हमारे अस्तित्व के पथप्रदर्शक पैमाने के रूप में स्वीकार करें।

इस रविवार के सुसमाचार की विषयवस्तु में ईश्वर का राज्य है। स्वर्ग को सिर्फ इस अर्थ में नहीं समझा जाये कुछ ऊँचाई जो हमारे ऊपर है क्योंकि इस अनन्त स्थान का रूप मानव की आंतरिकता भी है। येसु स्वर्ग के राज्य की तुलना गेहूँ के खेत से करते हैं हमें समझाने के लिए कि हमारे अंदर कुछ बोया गया है जो छोटा और छिपा हुआ है, जिसमें अदम्य जीवंत शक्ति है।

बाधाओं के बावजूद बीज का विकास होगा और फल उत्पन्न होगा। यह फल तभी अच्छा होगा यदि जीवन की भूमि को दिव्य इच्छा के अनुसार अच्छी तरह से तैयार किया गया है। इसी कारण से अच्छे और जंगली बीज के दृष्टान्त में येसु हमें चेतावनी देते हैं कि जब बीज बोनेवाले ने बीज बो दिया है और सब लोग सो रहे हैं उनका शत्रु आया और जंगली बीज बो दिया। इसका अर्थ है कि हमें बपतिस्मा संस्कार पाने के दिन मिली कृपा की रक्षा करने के लिए तैयार रहना चाहिए, जो ईश्वर में हमारे विश्वास को पोषण प्रदान करती रहे तथा बुराई को जड़ जमाने से रोकती है। इस दृष्टान्त पर टिप्पणी करते हुए संत अगुस्टीन का पर्यवेक्षण है कि अनेक पहले जंगली बीज थे जो बाद में अच्छे बीज बनते हैं और फिर वे कहते हैं- यदि पहले जब वे बुरे थे उन्हें धैर्यपूर्वक सहन नहीं किया गया होता तो वे प्रशंसनीय परिवर्तन की स्थिति को प्राप्त नहीं करते।

प्रिय मित्रो, प्रज्ञा ग्रंथ जिसमें से आज का पहला पाठ लिया गया है, दिव्य होने की स्थिति और अवस्था के पहलू पर बल देता है। तुझे छोड़ कर और कोई ईश्वर नहीं। तू ही समस्त सृष्टि की रक्षा करता है...तू न्यायी है और न्याय से विश्व का शासन करता है। तू सबका स्वामी है और इसलिए सब पर दया करता है। स्तोत्र ग्रंथ का 86 भजन इसकी पुष्टि करता है- प्रभु तू भला है, दयालु है और अपने पुकारने वालों के लिए प्रेममय।

इसलिए यदि हम ऐसे महान और भले पिता की संतान हैं तो हमें उनके समान दिखने की कोशिश करनी चाहिए। यही वह लक्ष्य था जिसे येसु ने स्वयं को अपनी शिक्षा के साथ ही प्रस्तुत किया। वस्तुतः, उन्होंने उनसे कहा जो उन्हें सुनते हैं- तुम पूर्ण बनो जैसे तुम्हारा स्वर्गिक पिता पूर्ण है।

हम विश्वासपूर्वक माता मरिया की ओर मुखातिब हों जिनका हमने कल माऊंट कारमेल की पवित्रतम कुँवारी की उपाधि के साथ स्मरण किया ताकि वे हमें येसु का निष्ठापूर्वक अनुसरण करने और इस प्रकार ईश्वर की सच्ची संतान के रूप में जीवन जीने के लिए सहायता करें।

इतना कहने के बाद संत पापा ने देवदूत संदेश प्रार्थना का पाठ किया और सबको अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।








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