वाटिकन सिटी, 9 जुलाई, 2011(ज़ेनित) विश्वास के सिद्धांतों के लिये बनी परिषद् के प्रीफेक्ट
कार्डिनल विलियम लेवादा ने कहा कि इटली के असीसी में होने वाले अंतरधार्मिक सम्मेलन
में संत पापा बेनेदिक्त सोलहवें विभिन्न धर्मों के प्रतिनिधियों और अविश्वासियों से न्याय
और शांति के लिये कार्य करने का आग्रह करेंगे। ज्ञात हो कि इस अंतरधार्मिक सभा का
आयोजन इस साल के अक्तूबर महीने में किया गया है। इसके पूर्व भी इसी तरह की दो महासभाओं
का आयोजन पूर्व पोप धन्य जोन पौल द्वितीय की अध्यक्षता में सम्पन्न किया जा चुका है।
कलीसिया के कई लोगों ने इस तरह की सभा के बाद संत पापा पर आरोप लगाया था कि वे सभी
धर्मों को बराबर मानने का आभास दे रहे हैं। कार्डिनल विलियम लेवादा ने इस बात को
स्वीकार किया कि कई लोगों ने संत पापा की बातों और पहलों का ग़लत अर्थ निकाला है। उनका
कहना है कि " ऐसा नहीं है कि अंतरधार्मिक एकता के लिये विश्वास की सच्चाइयों को छुपाने
का प्रयास किया जा रहा है पर प्रयास वैसा है जैसा कि धन्य जोन पौल द्वितीय और अंतरकलीसियाई
पैट्रियार्क ने कहा था कि येसु ही हमारी शांति हैं और इसी शांति के पथ पर पूरी कलीसिया
को चलना है।" कार्डिनल लेवादा की बातों का सार है कि " दुनिया के सब लोग येसु में
एक होने के लिये बुलाये गये हैं और कलीसिया को चाहिये कि वह इस एकता में खमीर का कार्य
करे। वह सिर्फ ईशवचन का प्रचार न करें पर सभी ईसाइयों को ईश्वर में एक करने का जीवन्त
साक्ष्य दे और यही शांति का सच्चा रास्ता हो। " इसके अलावा कार्डिनल ने असीसी की
महासभा के दूसरे दिन की विषयवस्तु के बारे में बताते हुए कहा कि " सत्य के तीर्थयात्री,
शांति के तीर्थयात्री " हमें इस बात की ओर इंगित करता है कि शांति की आशा तब ही की जा
सकती है जब हम सत्य हमारा मानदंड या आधार हो। " लोकाचार और दिव्य शब्द, धर्म और
विवेक का आधार अंततः येसु मसीह हैं अर्थात् दिव्य शब्द । इसी लिये ख्रीस्तीय धर्म दूसरों
के साथ अपना संबंध बनाने में सक्षम है। सत्य के बिना शांति संभव नहीं है दूसरे शब्दों
में "शांति के लिये आवश्यक है सत्य का मानदंड ।"